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जानिए पितृदोष के संकेत और निवारण हेतु उपाय

पितृदोष के संकेत और निवारण हेतु  उपाय

  • पितृ दोष होने पर घर के सभी सदस्य आपस में झगड़ते हैं। बेवजह क्लेश रहता हैं।
  • सभी तरह से सम्पनता के बावजूद कष्ट मिलना।
  • मेहमान घर से कभी संतुष्ट होकर नहीं जाते हैं।
  • परिवार के मुखिया का बार बार बीमार होना।
  • संतान प्राप्ति (होने) में परेशानी या संतान से सम्बन्ध ख़राब होना।
  • हरे पेड़ पौधा घर में सुख जाना या उसका विकास नहीं होना।
  • सारी सम्पनता के बाबजूद शादी विवाह होने में दिक्कत होना या वैवाहिक सुख नहीं मिलना।
  • परिवार धीरे धीरे छोटा होना।
  • कारोबार या नौकरी में योग्यता के वाबजूद उसका रिजल्ट नहीं मिलना।
  • घर में असमय किसी का मृत्यु होना या दुर्घटना होना। अकाल मृत्यु, गर्भपात भी इसकी निशानी हैं
अगर आपके साथ या किसी मित्र/परिचित के साथ यह सब समस्या हैं तो किसी योग्य, अनुभवी ज्योतिषाचार्य को कुंडली को दिखवाये और उनके सुझाव अनुसार उपाय कुछ वर्षो तक करें तब ही पितृदोष खत्म होगा । 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से जानिए पितृ दोष को दूर करने का  साधारण उपाय--
    Know-the-signs-and-prevention-of-Pitradosh-जानिए पितृदोष के संकेत और निवारण हेतु उपाय
  1. अमावस्या को घर के आंगन में ईशान कोण में घी का दीपक जलावे शाम को 6:00 से 8:00 बजे के बीच में......
  2. जब भी घर में कोई श्राद्ध हो तब तर्पण जरूर करवाएं.......
  3. अमावस्या को गौ सेवा जरूर करे......
  4. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके प्रार्थना करें नित्य स्नान के बाद प्रार्थना हे पितृ  देवता मुझे क्षमा करें ऐसा करने से आपको बहुत लाभ मिलेगा ।

जाने और समझें श्राद्ध पक्ष (महालय/कनागत/पितृपक्ष) में ब्राह्मण भोजन क्यों हैं आवश्यक

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना एक जरूरी परंपरा है। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के बाद ब्राह्मण भोज कराने का विधान बताया गया है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, श्राद्ध वाले दिन पितर लोग खुद ब्राह्मण वेष धारण कर भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए श्राद्धकर्म कराने वाले हर व्यक्ति को ब्राह्मण भोज अवश्य कराना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर पितर संबंधित व्यक्ति को श्राप देकर चले जाते हैं।श्राद्ध कर्म करने वाले संबंधित व्यक्ति को ब्राह्मण भोज के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
श्राद्ध के निमित्त भोजन में रखें इन सावधानियां को
  • -खीर पूरी अनिवार्य है।
  • -जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है।
  • -ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिए।
  • -गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है।
  • -तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है।
  • -तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।
श्राद्ध के भोजन में क्या न बनाएं या परोसें 
  • -चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा
  • -कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, प्याज और लहसन
  • -बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, खराब अन्न, फल और मेवे

ब्राह्मणों का आसन कैसा हो 
  • -रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बैठाएं।
  • -लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बैठाएं।

ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है। इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितृ भी चलते हैं।श्राद्ध तिथि पर सबसे पहले ब्राह्मणों को आमंत्रित करें।

ध्यान रखें

  1. ब्राह्मण देवता को दक्षिण दिशा में ही ​​बैंठाएं, क्योंकि दक्षिण दिशा में ही पितर लोग वास करते हैं। हाथ में अक्षत, फूल, जल और तिल लेकर संकल्प कराएं।
  2. गाय, कुत्ते, चींटी तथा देवगण को भोजन अर्पित करने के बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
  3. ब्राह्मण देवता को दोनों हाथों से ही भोजन परोसें, एक हाथ से परोसा भोजन पितर को नहीं मिलता है।
  4. बिना ब्राह्मण भोज के पितर श्राप देकर अपने लोक को लौट जाते हैं। भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को कपड़े, अनाज और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें। इतना ही नहीं ब्राह्मण भोज के पश्चात उन्हें उनके द्वार तक छोड़ें।
  5. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ब्राह्मणों के साथ पितर भी अपने लोक को चले जाते हैं। ब्राह्मण भोज के बाद खुद तथा अपने रिश्तेदारों को भी भोजन जरूर कराएं।
  6. पितृ पक्ष में अगर कोई भिक्षा मांगे तो उसे आदर के साथ भोजन कराएं। कुत्ते और कौए का भोजन, कुत्ते और कौए को ही खिलाएं। दामाद, भांजे और बहन को भोजन कराए बिना पितर भी भोजन नहीं करते हैं।
  7. श्राद्ध के दिन यदि कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण, अतिथि या साधु-सन्यासी घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए। श्राद्धकर्त्ता को घर पर आये हुए ब्राह्मणों के चरण धोने चाहिए। फिर अपने हाथ धोकर उन्हें आचमन करना चाहिए। तत्पश्चात उन्हें आसनों पर बैठाकर भोजन कराना चाहिए।
  8. पितरों के निमित्त अयुग्म अर्थात एक, तीन, पाँच, सात इत्यादि की संख्या में तथा देवताओं के निमित्त युग्म अर्थात दो, चार, छः, आठ आदि की संख्या में ब्राह्मणों को भोजन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए। देवताओं एवं पितरों दोनों के निमित्त एक-एक ब्राह्मण को भोजन कराने का भी विधान है।
वायु पुराण में बृहस्पति अपने पुत्र शंयु से कहते हैं-
जाने और समझें श्राद्ध पक्ष (महालय/कनागत/पितृपक्ष) में ब्राह्मण भोजन क्यों हैं आवश्यक-Know-and-understand-why-Brahmin-food-is-necessary-in-Shraddha-Paksha-Mahalaya-Kanagat-Pitrupaksha“जितेन्द्रिय एवं पवित्र होकर पितरों को गंध, पुष्प, धूप, घृत, आहुति, फल, मूल आदि अर्पित करके नमस्कार करना चाहिए। पितरों को प्रथम तृप्त करके उसके बाद अपनी शक्ति अनुसार अन्न-संपत्ति से ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिए। सर्वदा श्राद्ध के अवसर पितृगण वायुरूप धारण कर ब्राह्मणों को देखकर उन्ही आविष्ट हो जाते हैं इसीलिए मैं तत्पश्चात उनको भोजन कराने की बात कर रहा हूँ। वस्त्र, अन्न, विशेष दान, भक्ष्य, पेय, गौ, अश्व तथा ग्रामादि का दान देकर उत्तम ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिए। द्विजों का सत्कार होने पर पितरगण प्रसन्न होते हैं।”
रखें इन बातों का ध्यान श्राद्ध का खाना बनाते समय 
पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए 
(अपने पूर्वजों के लिए) श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष में अनुष्‍ठान किया जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मण भोजन का बहुत महत्व है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध वाले दिन पितृ स्वयं ब्राह्मण के रूप में उपस्थित होकर भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए अपने पितरों के श्राद्ध के दिन घर में ब्राह्मण भोज जरूर कराना चाहिए। हालांकि शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध का भोजन बनाते समय बहुत सावधानी रखना चाहिए नहीं तो पितृ नाराज भी हो सकते हैं। जी हां श्राद्ध का खाने बनाते समय पूरी शुद्धता के साथ हर चीज साफ और स्वच्छ होनी चाहिए। आइए जानिए श्राद्ध का भोजन बनाते और खिलाते समय किन बातों का ध्यान समय रखना चाहिए तभी पितरों का आशीर्वाद हैं।
क्या हो श्राद्ध हेतु भोजन निर्माण की दिशा 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि श्राद्ध का खाना बनाते समय दक्षिण की तरफ मुंह करके खाना नहीं बनाना चाहिए। पूर्व की तरफ मुंह करके ही खाना बनाना चाहिए। आप किस दिशा की ओर मुंह करके खाना बनाते हैं और किस दिशा की ओर मुंह करके खाना खाते हैं, इस पर कई बातें निर्भर करती हैं क्योंकि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में सब से महत्वपूर्ण हिस्सा रसोई को माना जाता है।आपका रसोई घर में किसी भी दिशा में हो, लेकिन खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व दिशा की ओर ही रहे, ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए।
सम्भव हो तो करें चांदी के बर्तनों का प्रयोग (भोजन बनाने और खिलाने हेतु) 
शास्त्रों में चांदी को सबसे पवित्र, शुद्ध और अच्‍छी धातु माना गया है। श्राद्ध में ब्राह्मणों को चांदी के बर्तन में भोजन कराने से बहुत पुण्य मिलता है। इसमें भोजन कराने से समस्त दोषों और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। अगर चांदी के बर्तन में रखकर पानी पितरों को अर्पण किया जाए तो वे संतुष्ट होते हैं। चांदी की थाली या बर्तन उपलब्ध न हो तो सामान्य कागज की प्लेट या दोने-पत्तल में भी भोजन खिलाया जा सकता हैं।
बिना चप्‍पल के बिना बनाए रसोईघर में श्राद्ध का भोजन 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि श्राद्ध का भोजन बनाते समय चप्‍पल (जूते) पहनने से बचना चाहिए।जैसा कि आजकल अधिकांश घरों में होता हैं। यदि कोई अन्य व्यक्ति (हलवाई या कारीगर) भी  ऐसे में श्राद्ध का भोजन बनाये तो ध्यान रखें, जूते ना पहने हो। हां आप लकड़ी की चप्‍पल पहनकर भोजन निर्माण कर सकते हैं क्‍योंकि लकड़ी को शुद्ध माना जाता है। पुरातन समय में चमड़े का जूता पहनना, कई धार्मिक कारणों से मान्य नही था। इसलिए खड़ाऊ का ही इस्तेमाल किया जाता था। सम्भव हो तो आप भी खाना बनाते समय लकड़ी के खड़ाऊ का इस्‍तेमाल करें।
समझें श्राद्ध में खीर का महत्व
श्राद्ध में खीर का विशेष महत्‍व है, लेकिन कोशिश करें कि खीर गाय के दूध से बना हो। भैंस के दूध को प्रयोग नही करना चाहिए। श्राद्ध में दूध, दही, घी का इस्तेमाल किया जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि दूध, दही, घी गाय का ही हो। पंडितों के अनुसार खीर सभी पकवानों में से उत्तम है। खीर मीठी होती है और मीठे खाने के बाद ब्राह्मण संतुष्ट हो जाते हैं जिससे पूर्वज भी खुश हो जाते हैं। पूर्वजों के साथ-साथ देवता भी खीर को बहुत पसंद करते हैं इसलिए देवताओं को भोग में खीर चढ़ाया जाता हैं।
लहसुन और प्‍याज से बचें
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर  में बनाना चाहिए।  मूली, बैंगन, आलू, अरबी आदि जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों के श्राद्ध के दिन नहीं बनाई जाती है।
इस दिन उड़द की दाल के बड़े, दूध घी से बने पकवान, चावल की खीर, बेल पर लगने वाले मौसमी सब्जियां जैसी लौकी, तोरी, भिंडी, सीताफल और कच्चे केले की सब्जी ही बनानी चाहिए। श्राद्ध के दिन प्याज, लहसुन रहित सात्विक भोजन ही घर बनाना चाहिए, जिसमें देसी-घी, दूध से बने व्यंजन, चावल, पूरी, बेल पर लगने वाली मौसमी सब्जियां जैसे कि तोरई, लौकी आदि सब्जी ही बनानी चाहिए।
नमक का करें सही इस्‍तेमाल
भोजन की शुद्धता के लिए नॉर्मल नमक की बजाय आपको सेंधा नमक का इस्‍तेमाल अच्‍छा माना गया है। आयुर्वेद में रोजाना सेंधा नमक को प्रयोग में लाने की बात कही गई है क्योंकि यह सबसे शुद्ध होता है और इसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।  श्राद्ध में ब्राह्माण भोजन से पहले अग्नि को भाग जरूर करना चाहिए, इसेस ब्राह्माण द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों को मिलता है, ब्रह्माराक्षस उसे दूषित नहीं कर पाते है।
क्या आप सभी में से किसी ने कभी सोचा है कि हम श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण को भोजन क्यों कराते हैं ? इस रीति के पीछे क्या राज है ?भारत देश में प्रचलित अनेक परम्पराएं काफी पुरातन समय से चली आ रही है। पहले समाज चार वर्गों में बांटा गया था।ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र।
    सभी के अपने अलग-अलग कार्य नियत थे। ब्राह्मण का कार्य पूजा-पाठ और वेद पठन थाl ब्राह्मण की आय का साधन, जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत चलने वाले सभी संस्कारों को करना था,जिसमें मिली दक्षिणा से वह अपने परिवार और उसकी आवश्यकता को पूरा करता था। क्षत्रिय वर्ग के लोगों का कार्य समाज की रक्षा करना और संचालन करना था। समाज की नीतियों को संभालना था। अपने देश और धर्म की रक्षा करना क्षत्रिय का फर्ज थाl देश की रक्षा के लिए युद्ध करने का अधिकार क्षत्रिय वर्ग को थाl शस्त्र चलाने का अधिकार इनके पास सुरक्षित था। तृतीय वर्ग वैश्य वर्ण के लोगों का कार्य रोजगार करना और व्यापार करना था। साहूकार से लेकर,दुकानदार तक सभी इसी वर्ण में आते थे और उनकी आय का साधन उनका अपना व्यापार था। सभी वर्ग के लोग अपना अपना कार्य करते थे।
    चौथा वर्ग शूद्र था,जिस वर्ण के लोगों का कार्य सफाई करना था। चूँकि,शूद्र का कार्य समाज और मुहल्ले की सफाई का था,तो स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से लोग इन्हें छूते नहीं थे,क्योंकि उस समय गटर-पाइप लाइन्स नहीं थे। मल,मूत्र और गंदगी सीधा नाली में ही होती थी। शौचालय भी ऐसे होते जिसमें मल एकत्रित रहता था। उसको भरकर ये लोग नाली में बहा देते थे। तो कीटनाशक भी कहाँ थे उस समय,गोबर और कंडे जलाकर कीटाणु खत्म कर दिए जाते थे,तो कीटाणु ना फैले इसलिए,सफाईकर्मी को छूने की मनाही थी,लेकिन धीरे-धीरे कुरूतियों के कारण शूद्र को कुलीन और मलिन समझ कर समाज से नीचा और तुच्छ समझा जाने लगा,जो बनाई गई वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध और अनुचित था।
    अब बात करते हैं,प्रथम वर्ण यानी ब्राह्मण की,तो यह सबसे पूजनीय वर्ण था,इसलिए समाज में प्रथम स्थान मिला। उस समय वर्ण व्यवस्था के साथ ही चलती थी संस्कार व्यवस्था। १६ संस्कार,जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सभी संस्कार जुड़े थेl इन सभी का संचालन का कार्य ब्राह्मण को था,क्योंकि संस्कार विधा के लिए वेद पढ़ने जरूरी थे। वेद पाठन ब्राह्मण का कार्य था। ब्राह्मण को याचन हेतु मिली दक्षिणा से संतुष्ट रहना होता था। संतोष और ईश्वर भक्ति ही उनकी पहचान थी। 
   ब्राह्मणों को माँगना धर्म के विरुद्ध था,इसलिए हर वर्ग का व्यक्ति,जो समाज का हिस्सा था,श्रद्धा से हर कार्य में प्रथम भाग ब्राह्मण को दे उसे सन्तुष्ट करता था।भगवान की भक्ति और चिंतन में लीन रहने के कारण धरती पर ईश्वर को खुश करने हेतु,व्यक्ति ब्राह्मण को ही साधक मानते थे। अपितु,वर्ण व्यवस्था की हानि से जहाँ सभी वर्ग के नीति और कार्यो में हस्तक्षेप हुआ,सभी व्यवस्था गड़बड़ा गई। अब व्यक्ति किसी वर्ण और कार्य के बंधन से मुक्त हो अपनी रुचि अनुसार कार्य करने लगे। संस्कारों का पतन हो गया,सभी व्यवस्था क्षीण हो गई।
ब्राह्मण को भोजन इसलिए कराया जाता था,क्योंकि उसकी व्यक्तिगत आय का कोई जरिया नहीं था। वैवाहिक कार्य में भी नियमानुसार चार महीने का निषेध था,तो इन चार मास में जब कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता था,तब उसकी आय का जरिया सिर्फ चढ़ावा या दक्षिणा ही थी। मृत्यु के जो भी संस्कार होते हैं,वो अलग ब्राह्मण करवाते थे, क्योंकि उसकी अलग विधा और नियम होते थे। जो शुभ कार्य कराने वाले ब्राह्मण होते थे,वो इन चार महीने को आपकी भाषा में बेरोजगार समझ-बोल सकते हैं।
     अब जो शिक्षित वर्ग `किसी गरीब को खाना खिला दो,श्राद्ध करने से बेहतर है`,ऐसी सोच रखते हैं,वो पढ़कर फिर सोचें कि शास्त्रों में जो भी वर्णन है,उसके पीछे बहुत गहरे राज और बहुत सोच-विचार कर ही बनाया गया होगा। 
    अपने घर के पितर को अगर हम एक दिन भोज नहीं दे सकते तो क्या हम सही कर रहे हैं ? मृत्यु जितना शाश्वत सच है, शास्त्र और पुराण भी उतना ही सत्य है। हम यही संस्कार अपनी पीढ़ी को स्थानांतरित कर रहे हैं। तो,अपनी मृत्यु के पश्चात का दृश्य अभी से सोंचकर चलें।  पाश्चात्यता को उतना ही अपनाएं,जितना हितकर होl बिना सोचे और जाने किया गया अनुसरण गति को नहीं,दुर्गति को आमंत्रण देता है।

पितृपक्ष (श्राद्ध) में नवीन कार्य और खरीददारी से होते हैं हमारे पितृ प्रसन्न

श्राद्घ पक्ष को लेकर लोगों में यह गलत धारणा बनी हुई कि यह अशुभ समय होता है। इस दौरान कोई नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए। इन दिनों नई चीज खरीदने से पितर नाराज होते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि पितर पक्ष में खरीदी गयी चीजें पितरों को समर्पित होता है जिसका उपयोग करना अनुचित है क्योंकि वह प्रेत का अंश होता है।पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग के प्रति आदरपूर्वक कृतज्ञता निवेदित करना ही श्राद्ध कहलाता है। इन 16 दिनों में अनैतिक, आपराधिक, अमानवीय और हर गलत कार्य से बचना चाहिए ना कि शुभ और पवि‍त्र कार्यों से।  अत : इन 16 दिनों यह भ्रम त्याग देना चाहिए कि यह दिन अशुभ हैं। बल्कि यह दिन सामान्य दिनों से अधिक शुभ हैं क्योंकि हमारे पूर्वज हमारे साथ हैं, हमें देख रहे हैं। लोगों की इस धारणा के कारण पितृ पक्ष में व्यापार की गति धीमी पड़ जाती है। जबकि शास्त्रों में कहीं भी इस प्रकार का उल्लेख नहीं मिलता है कि श्राद्घ पक्ष में खरीदारनी नहीं करनी चाहिए।
गलत मानसिकता/भ्रांति हैं पितृपक्ष के बारे में
पितृपक्ष के इन 16 दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, उपनयन संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं होते हैं। इतना ही नहीं, श्राद्ध पक्ष में नई वस्तुओं की खरीद को भी वर्जित किया गया है। इस मानते हैं कि इन 16 दिनों में नया मकान, वाहन आदि का क्रय नहीं करना चहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 16 दिनों तक चलने वाला पितृ पक्ष श्राद्ध का मृत्यु से संबंध होता है, इसलिए श्राद्ध पक्ष को शुभ नहीं माना जाता है। जिस प्रकार हम अपने परिजनों की मृत्यु पर शोकाकुल रहते हैं, शुभ और मांगलिक कार्यों नहीं करते हैं, ठीक वैसे ही पितृ पक्ष में होता है।
अशुभ ओर अमंगलकारी नहीं पितृपक्ष
पितृपक्ष (श्राद्ध) में नवीन कार्य और खरीददारी से होते हैं हमारे पितृ प्रसन्न-shopping-and-new-work-in-Pitrupaksha-Shraddha-is-good-as-astrologyश्राद्घ पक्ष को अशुभ मनाना उचित नहीं है क्योंकि श्राद्घ पक्ष गणेश चतुर्थी और नवरात्र के बीच आता है। हमारे समाज में यह बहुत बड़ी भ्रांति या गलतफहमी फैली हुई हैं की पितृपक्ष में शुभ कार्य या खरीददार नही करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ काम की शुरूआत से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इस आधार पर देखा जाए तो श्राद्घ पक्ष अशुभ नहीं है। श्राद्घ पक्ष में पितर पृथ्वी पर आते हैं और वह देखते हैं कि उनकी संतान किस स्थिति में हैं। परिवार के पितर द्वारा उनकी संतान या वंशज द्वारा नई चीज खरीदने  पर खुश होती है क्योंकि उन्हें पता चलता है कि उनकी संतान सुखी हैं। 
       ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी कहते हैं कि पितर पक्ष में नई चीज खरीदना शुभ तब नहीं होता है जब आप नई चीजें खरीदते हैं और उसमें मस्त हो जाते हैं। अपनी खुशियों के साथ पितरों का ध्यान भी करें तो श्राद्घ पक्ष में खरीदारी करने में कोई बुराई नहीं है। नई कार, बाईक, घर, ज्वैलरी आदि हमारी उन्नति और खुशी देख हमारे पूर्वज भी जरूर खुश होंगे और श्राद्ध का असली मकसद पूरा होगा वहीं दूसरी ओर कंपनियों द्वारा इस मौके दिये जाने वाले ढेरों ऑफर्स से भी फायदा हो जाएगा। 
पितरों का पृथ्वी पर आना अशुभ कैसे हो सकता है
वे अब सशरीर हमारे बीच नहीं है किसी और लोक के निवासी हो गए हैं अत: वे पवि‍त्र आत्मा हैं। उनका सूक्ष्म रूप में आगमन हमारे लिए कल्याणकारी है। जब हमारे पितृ हमें नवीन खरीदी करते हुए देखते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है कि हमारे वंशज सु्खी और संपन्न हैं। अगर हमारी समृद्धि बढ़ रही है तो ऐसे में उनकी आत्मा को भला क्यों क्रोध या क्लेश होगा? श्राद्ध पक्ष पितरों की शांति और प्रसन्नता के लिए मनाया जाने वाला परंपरागत पर्व है। श्राद्ध के दिनों में खरीददारी करना एवं अन्य शुभ कार्य करना मंगलकारी एवं लाभदायक है। क्योंकि पितृ हमेशा गणेश आराधना और देवी पूजा के बीच में आते हैं। पितरों के आभासी उपस्थिति में यदि किसी वस्तु की खरीददारी की जाए तो उनका आशीर्वाद  प्राप्त होता है। पितरों का आशीर्वाद अत्यधिक फलदायक रहता है।
जमकर उठाएं श्राद्घ पक्ष मे खरीददारी का लाभ
सभी क्षेत्र में व्यापार की गति बढ़ाने के लिए श्राद्घ पक्ष में व्यापारियों की तरफ से कई बेहतरीन ऑफर दिये जाते हैं। अगर आप इस ऑफर का लाभ उठाना चाहते हैं तो मन से सभी प्रकार के शंका आशंका ओर अशुभ विचारों को निकाल दीजिए और जमकर खरीदारी कीजिए। ऐसा हम इस आधार पर कह रहे हैं क्योंकि वैदिक ज्योतिष विज्ञान में कहा गया है कि शुभ मुहूर्त में खरीदारी करने से किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि आप जिन चीजों की खरीदारी करते हैं उससे आपको सुख मिलता है और उन चीजों में वृद्घि होती है।इसके विषय में कहा जाता है कि इस योग में जो भी काम किया जाता है उसमें वृद्घि होती है। इन शुभ मुहूर्त में आप अपनी चाहत के अनुसार खरीदारी कर सकते हैं।ऐसा करने से पित्र प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
जानिए वर्ष 2019 में श्राद्घ पक्ष के शुभ मुहूर्त
इस वर्ष श्राद्घ पक्ष के दौरान कई शुभ मुहूर्त बने हुए हैं जिसमें खरीदारी करना आपके लिए सुखद रहेगा।  ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार इस वर्ष श्राद्ध के 15 दिनों में से सात दिन खरीदारी के लिए विशेष योग बन रहे हैं।
  • 16 सितंबर 2019 को सुबह 7:38 मिनट तक रवि योग, 18 को दिनभर सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा जो दूसरे दिन सूर्योदय के पहले तक रहेगा। 
  • वहीं 21 सितंबर 2019 को रवि योग सूर्योदय से शाम 6:10 बजे तक बन रहा है। 22 को रवि योग सूर्योदय से शाम 4:32 बजे तक रहेगा। 
  • 24 सितम्बर 2019 को रवि योग भी होने से यह दिन खरीदारी एवं नया काम शुरू करने के लिए भी उत्तम है।
  • 25 सितम्बर को सर्वार्थसिद्धि योग और 26 को दोपहर 3:03 तक रहेगा। 27 सितम्बर 2019 को सुबह 6:21 से शाम 4 बजे तक सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा।

जानिए पितृपक्ष में पितरों के लिए पिण्डदान और श्राद्ध कैसे करें

शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख सौभाग्य की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयास किये, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। इसे उतारने में कुछ अधिक खर्च भी नहीं होता। श्राद्ध की तिथियों में लोग अपने पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर करते है और उन्हें जल और पिंड दान देते हैं। वर्षभर में केवल एक बार अर्थात् उनकी मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न करने और गौ ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है।
     श्राद्ध साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ अपने कुल देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है. हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि है जिसमें श्राद्ध कर्म किये जाते हैं इन्हीं दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इन दिनों में तमाम पूर्वज़ जो शशरीर परिजनों के बीच मौजूद नहीं हैं वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किये जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं।
कौन कहलाते हैं पितृ
पितर वे व्यक्ति कहलाते है, जो इस धरती पर जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है, उन्हें पितृ कहते हैं। ये विवाहित हों या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष जिनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितृ कहा जाता है । परिवार के दिवंगत सदस्य चाहे वह विवाहित हों या अविवाहित, बुजूर्ग हों या बच्चे, महिला हों या पुरुष जो भी अपना शरीर छोड़ चुके होते हैं उन्हें पितर कहा जाता है। मान्यता है कि यदि पितृरों की आत्मा को शांति मिलती है तो घर में भी सुख शांति बनी रहती है और पितृ बिगड़ते कामों को बनाने में आपकी मदद करते हैं लेकिन यदि आप उनकी अनदेखी करते हैं तो फिर पितृ भी आपके खिलाफ हो जाते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी आपके बनते हुए काम बिगड़ने लग जाते हैं। कई पुराणों और ग्रंथों में गया में पिंडदान और श्राद्ध का महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां पितरों का कर्म करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है। इसलिए पितृपक्ष में बड़ी संख्या में लोग गया जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिंडदान के लिए केवल गया ही एक मात्र जगह नहीं है बल्कि इसके अलावा भी कुछ ऐसी जगह हैं जहां पिंडदान किया जाता हैं।
जानिए पितृपक्ष में पितरों के लिए पिण्डदान और श्राद्ध कैसे करें-Know-how-to-perform-pindadaan-and-shraadh-for-ancestral         भारत में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र,उज्जैन, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जहां पिंडदान किया जा सकता है। लेकिन शास्त्रों में पिंडदान के लिए इनमें से तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। जिसमें बद्रीनाथ भी शामिल है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। दूसरा हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। तो तीसरा जिसे सबसे मुख्य माना गया है वो है गया। बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है। जिसे पितृ-पक्ष मेला कहा जाता है। पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के पास और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
क्या होता है पिंडदान 
विद्वानों के मुताबिक, किसी वस्तु का गोलाकर रूप पिंड कहा जाता है। इसी तरह प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा गया है। पिंडदान के समय मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ, जिसमें जौ या चावल के आंटे को गूंथकर बनाया गया जाता है वह गोलाकृति पिंड कहलाता है। दक्षिणाभिमुख होकर, आचमन कर जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बनाए गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितृरों को अर्पित करना ही पिंडदान कहलाता है। पिंडदान के समय जल में काले तिल, जौ, कुशा और सफेद फूल मिलकार उस जल से विधिपूर्वक तर्पण करने से पितृ तृप्त होते हैं। 
      श्राद्ध के बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है।श्राद्ध पक्ष के दिनों में पूजा और तर्पण करें। पितृरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें और उसमें से एक ग्रास गाय, दूसरा हिस्सा कुत्ते, तीसरा टुकड़ा कौए और एक भाग मेहमान के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। जो श्रद्धा पूर्वक किया जाएं उसे श्राद्ध कहते हैं। पुराणों के अनुसार मनुष्य का अगला जीवन पिछले संस्कारों से बनता है। श्राद्ध कर्म इस भावना से किया जाता है, कि अगला जीवन बेहतर हो। जिन पितरों का हम श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करते हैं, वे हमारी मदद करते हैं।
          पितृपक्ष (महालय या श्राद्धपक्ष) के दिनों के बारे में माना जाता है कि पूर्वज अपने परिवारों में आते हैं और इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है उनका श्राद्ध अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि जाते समय पितर भूखे न जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी भोजन का अंश निकालते हैं। मान्यता है कि कुत्ता और कौवा यम के नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराती है। जो लोग जीवन रहते माता पिता की सेवा नहीं कर पाते, यदि वह चाहें तो अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा के साथ करके प्रसन्न कर सकते हैं।
क्या कहता हैं वेद और गुरुड़ पुराण "पितृपक्ष" के बारे में 
वेदों में कहा गया है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितृ मृत्यु लोक में आ जाते हैं और कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। पितृपक्ष में अपने पितृरों के निमित्त जो श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वह सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। वेदों के अनुसार, मनुष्यों के पास यह एक मौका होता है कि यदि उनसे अपने पूर्वजों के प्रति कोई गलती हुई हो तो वह इस दौरान उसके लिए क्षमा मांग लें। पितृ भी इस दौरान अपने बच्चों की सभी गलतियों को माफ कर देते हैं और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। 
क्या करें ताकि मिलता रहे पितृरों का आशीर्वाद ओर कृपा 
हर वर्षभाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारम्भ करके आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिन तक अपने पितृरों को तर्पण देने का साथ साथ विशेष तिथि को उनका श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिस किसी भी माह की तिथि को अपने परिजन या माता पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध आदि करने के अलावा आश्विन कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिस स्त्री के कोई पुत्र न हो, वह स्वयं ही अपने पति का श्राद्ध कर सकती है। इस प्रकार करने से यथोचित रूप में पितृ व्रत पूर्ण होता है।

जानिए श्राद्ध कर्म क्या हैं ??? कब, क्यों और कैसे करें श्राद्ध कर्म

शास्त्र का वचन है-
"श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्" 
Know-what-works-memorial-service-when-why-and-how-karma-memorial-जानिए श्राद्ध कर्म क्या हैं ???कब, क्यों और कैसे करें श्राद्ध कर्म ???अर्थात पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। मित्रों, आगामी 28 सितम्बर 2015 ( सोमवार) से महालय "श्राद्ध पक्ष" प्रारम्भ होने जा रहा है। इन सोलह (16) दिनों पितृगणों (पितरों) के निमित्त श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। किन्तु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार "पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:" अर्थात देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए कर्म से। 
 ***** पित्र पक्ष(श्राद्धपक्ष) में पितृदोष ( कालसर्प योग/दोष) के निवारण के लिए उज्जैन स्थित गयाकोठी तीर्थ उनके लिए वरदान हैं जो गया जाकर पित्र दोष शांति नहीं करवा सकते हैं।। इस प्राचीन तीर्थ पर पितृदोष शांति का शास्त्रोक्त निवारण के लिए आप पंडित दयानन्द शास्त्री से संपर्क कर सकते हैं।।
 **** पितृदोष --- वह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है। 
      विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है। हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है। समान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते है तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को तमाम कठनाइयों का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है ।।। 
  जैसे -----घर में सदस्यों का बिमार रहना ।।
मानसिक परेशानी ।।
सन्तान का ना होना।। 
कन्या संतान का अधिक होना या पुत्र का ना होना।। 
पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होना ।।। 
जीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकना।। 
प्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आना ।। 
जातक पर कर्ज का भार होना।। 
सफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जाना ।। 
प्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलना।। 
आकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि।।। 

 **** आजकल बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग(दोष) भी देखा जाता है वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता जिसकी वजह से मनुष्य के जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।।। 
 पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस प्रकार की समस्या (पितृदोष/ कालसर्प योग या दोष निवारण के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं)।। 
उज्जैन स्थित गया कोठी तीर्थ , प्राचीन सिद्धवट तीर्थ जो पवित्र शिप्रा नदी के किनारे स्थित हैं, पर इस दोष का शास्त्रोक्त विधि विधान से निवारण करवाया जाता हैं।।।
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जानिए श्राद्ध कर्म कब, क्यों और कैसे करें ??? 
 भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए--- 
 ***पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। 
 *** ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं। 
 ****पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। 
 **** हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है की इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है।
 **** शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए। 
 ***** हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। 
 **** इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। 
 **** जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं। 
 ***आश्विन कृष्ण प्रतिपदा:---- इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। 
 ****इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। 
 **** यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं। 
 *** पंचमी:--- जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए। 
 *** नवमी:---सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
 **** एकादशी और द्वादशी:--- एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं।। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो। 
 **** चतुर्दशी:---इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है। जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है। 
****सर्वपितृमोक्ष अमावस्या:--- पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है। 
 पितृपक्ष में विशेष ध्यान रखे इन बातों का --- 
 ---पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। 
 ----जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं। -
----विशेष:--- 
  1. श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है---- देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।। (वायु पुराण) ।। 
  2. श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है। 
  3. ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितृ रहते हैं। 
  4.  पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। 
  5. यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है। 
  6. हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। 
  7. मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है। 
  8. श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। 
  9. श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए ब्राह्मण भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।
  10. पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है। 
  11. यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा। गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है। 
  12. पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा। यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा। 
  13. दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्यरसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा। 
  14. सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है। तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं। 
  15. श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाती है।
  16. इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। 
  17. गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। 
  18. जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। 
  19. श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें। 
  20. पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।
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