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2016 की पहली शनैश्चरी अमावस्या 9 जनवरी 2016 को, कष्ट दूर करने के ये हैं उपाय

     नया साल सभी के लिए कुछ ना कुछ नया और शुभ लेकर आता है। इस साल भी शनि दोष से पीडि़त या फिर अन्य ग्रहों की उल्टी चाल से ग्रस्त लोगों को अपनी पीड़ा दूर करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। नए साल 2016 की पहली शनिश्चरी अमावस्या 9 जनवरी 2016 को है। इसे लेकर शनि मंदिरों में तैयारियां शुरू की जा चुकी हैं। इसी के साथ पीडि़त लोग भी अपने कष्टों से निजात पाने के लिए खास उपाय कर सकते हैं। शनिश्चरी अमावस्या शनिवार को सुबह 7:40 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन 10 जनवरी 2016, रविवार सुबह 7:20 बजे तक रहेगी।

-January-9-2016-The-first-shaneshchari-amavasya-these-are-measures-2016 की पहली शनैश्चरी अमावस्या  9 जनवरी 2016 को, कष्ट दूर करने के ये हैं उपाय
 ये उपाय करें---- 

  1. सुंदरकांड का पाठ, हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। 
  2. सरसों या तिल के तेल के दीपक में दो लोहे की कीलें डालकर पीपल पर रखें।
  3. शनिदेव पर तिल या सरसों के तेल का दान करें। 
  4. चीटीं को शक्कर का बूरा डालें। 
  5. अपने वजन के बराबर सरसों का खली (पीना) गौशाला में डालें। 
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ श्री शनिस्तोत्रम्----- 
 यह स्तोत्र जातकों के हर प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला है। यह स्तोत्र मानसिक अशांति, पारिवारिक कलह व दांपत्य सुख में दरार पाटने में समर्थ है। यदि इस स्तोत्र का 21 बार प्रति शनिवार को लगातार 7 शनिवार को पाठ किया जाये साथ ही शनिदेव का तैलाभिषेक से पूजन किया जाए तो निश्चय ही इन बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
 ‘‘तुष्टोददाति वैराज्य रुष्टो हरति तत्क्षणात्’’ धन्य है शनिदेव। शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं भी आशुतोष बन गये। प्रस्तुत स्तोत्र ज्वलंत उदाहरण है।
-January-9-2016-The-first-shaneshchari-amavasya-these-are-measures-2016 की पहली शनैश्चरी अमावस्या  9 जनवरी 2016 को, कष्ट दूर करने के ये हैं उपाय       राजा दशरथ शनि से युद्ध करने उनके पास गये थे, किन्तु धन्य है शनिदेव - जिसने शत्रु को मनचाहा वरदान देकर सेवक बना लिया। विशेष कहने की आवश्यकता नहीं, स्वयं शनि-स्तोत्र ही इसका प्रमाण है। अत: इसका स्तवन, श्रवण से लाभान्वित हो स्वयं को कृतार्थ करना चाहिए। शनि का प्रकोप शान्त करने के लिए पुराणों में एक कथा भी मिलती है कि महाराजा दशरथ के राज्यकाल में उनके ज्योतिषियों ने उन्हें बताया कि महाराज, शनिदेव रोहिणी नक्षत्र को भेदन करने वाले हैं। 
       जब भी शनिदेव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करते हैं तो उस राज्य मेें पूरे बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है। इससे प्रजा का जीवित बच पाना असम्भव हो जाता है। महाराज दशरथ को जब यह बात ज्ञात हुई तब वह नक्षत्र मंडल में अपने विशेष रथ द्वारा आकाश मार्ग से शनि का सामना करने के लिए पहुँच गये। शनिदेव महाराज दशरथ का अदम्य साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए और वरदन मांगने के लिए कहा। शनिदेव को प्रसन्न देख महाराज दशरथ ने उनकी स्तुति की और कहा कि हे शनिदेव! प्रजा के कल्याण हेतु आप रोहिणी नक्षत्र का भेदन न करें। शनि महाराज प्रसन्न थे और उन्होंने तुरन्त उन्हें वचन दिया कि उनकी पूजा पर उनके रोहिणी भेदन का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा और उसके साथ यह भी कहा कि जो व्यक्ति आप द्वारा किये गये इस स्तोत्र से मेरी स्तुति करेंगे, उन पर भी मेरा अशुभ प्रभाव कभी नहीं पड़ेगा। 
 श्री शनि चालीसा----- 
 शनि चालीसा का पाठ सबसे सरल है। अतः यहां सर्वाधिक प्रचलित चालीसा प्रस्तुत की जा रही है। शनि चालीसा भी हनुमान चालीसा जैसे ही अति प्रभावशाली है। शनि प्रभावित जातकों के समस्त कष्टों का हरण शनि चालीसा के पाठ द्वारा भी किया जा सकता है। सांसारिक किसी भी प्रकार का शनिकृत दोष, विवाह आदि में उत्पन्न बाधाएं इस शनि चालीसा की 21 आवृति प्रतिदिन पाठ लगातार 21 दिनों तक करने से दूर होती हैं और जातक शांति सुख सौमनस्य को प्राप्त होता है। अन्य तो क्या पति-पत्नी कलह को भी 11 पाठ के हिसाब से यदि कम से कम 21 दिन तक किया जाये तो अवश्य उन्हें सुख सौमनस्यता की प्राप्ति होती है।
 श्री शनि चालीसा---- 
 दोहा---- 
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज। 
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।। 

 चौपाई---- 
 जयति-जयति शनिदेव दयाला। 
 करत सदा भक्तन प्रतिपाला।। 

चारि भुजा तन श्याम विराजै। 
 माथे रतन मुकुट छवि छाजै।। 

परम विशाल मनोहर भाला। 
 टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।। 

कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै। 
 हिये माल मुक्तन मणि दमकै।। 

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। 
 पल विच करैं अरिहिं संहारा।। 

पिंगल कृष्णो छाया नन्दन। 
 यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।

 सौरि मन्द शनी दश नामा। 
 भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।। 

जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं। 
 रंकहु राउ करें क्षण माहीं।। 

पर्वतहूं तृण होई निहारत। 
 तृणहंू को पर्वत करि डारत।। 

राज मिलत बन रामहि दीन्हा। 
 कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।। 

बनहूं में मृग कपट दिखाई। 
 मात जानकी गई चुराई।। 

लषणहि शक्ति बिकल करि डारा। 
 मचि गयो दल में हाहाकारा।। 

दियो कीट करि कंचन लंका।
 बजि बजरंग वीर को डंका।। 

नृप विक्रम पर जब पगु धारा। 
 चित्रा मयूर निगलि गै हारा।। 

हार नौलखा लाग्यो चोरी।
 हाथ पैर डरवायो तोरी।।

 भारी दशा निकृष्ट दिखाओ। 
 तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।

 विनय राग दीपक महं कीन्हो। 
 तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।। 

हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी। 
 आपहुं भरे डोम घर पानी।। 

वैसे नल पर दशा सिरानी। 
 भूंजी मीन कूद गई पानी।। 

श्री शकंरहि गहो जब जाई। 
 पारवती को सती कराई।। 

तनि बिलोकत ही करि रीसा। 
 नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।। 

पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी। 
 बची द्रोपदी होति उघारी।। 

कौरव की भी गति मति मारी। 
 युद्ध महाभारत करि डारी।। 

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। 
 लेकर कूदि पर्यो पाताला।। 

शेष देव लखि विनती लाई। 
 रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।। 

वाहन प्रभु के सात सुजाना। 
 गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।। 

जम्बुक सिंह आदि नख धारी। 
 सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।। 

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। 
 हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।। 

गर्दभहानि करै बहु काजा। 
 सिंह सिद्धकर राज समाजा।।

 जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै। 
 मृग दे कष्ट प्राण संहारै।। 

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। 
 चोरी आदि होय डर भारी।। 

तैसहिं चारि चरण यह नामा। 
 स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।। 

लोह चरण पर जब प्रभु आवैं। 
 धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।। 

समता ताम्र रजत शुभकारी। 
 स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।। 

जो यह शनि चरित्रा नित गावै। 
 कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।। 

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
 करैं शत्राु के नशि बल ढीला।। 

जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
 विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।। 

पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत। 
 दीप दान दै बहु सुख पावत।। 

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। 
 शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।। 

 दोहा--- 
 प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय। 
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।। 

चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
 नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।। 
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दशरथ कृत शनि स्तोत्र---- (हिन्दी पद्य रूपान्तरण)----
 हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।
 कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।। 

स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे। 
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।।
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। 

हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले। 
हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।। 

भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। 

हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले। 
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।।

 तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे। 
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।।

 हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।
 हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।।

 हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे। 
 हैं पूज्य चरण तेरे। स्वीकारो नमन मेरे।। 

हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी। 
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी।। 

विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।
 स्वीकारो नमन मेरे। हे पूज्य देव मेरे।। 

अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी। 
तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी।। 

संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले। 
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे।। 

नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।
 हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो।। 

हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले। 
 स्वीकारो भजन मेरे।
 स्वीकारो नमन मेरे।। 

जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि। 
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये।। 

उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।।

 हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता। 
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता।। 

डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले। 
 स्वीकारो नमन मेरे। शनि पूज्य चरण तेरे।। 

हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर। 
हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर।। 

देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।
 स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। 

होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै। 
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै।। 

सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले। 
 स्वीकारो नमन मेरे। 
 हैं पूज्य चरण तेरे।। 
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आरती श्री शनिदेव की----  कर्मफल दाता श्री शनिदेव की भक्ति और आरती करने से हर प्रकार के कष्टों का शमन हो जाता है। श्री शनिदेव को काला कपड़ा और लोहा बहुत प्रिय है। उन्हें आक का फूल बहुत भाता है। शनिवार और अमावस्या तिथि को उनको उड़द, गुड़, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना लाभप्रद रहता है। श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करने से सब प्रकार की प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाता हैं। 
 दोहा---- 
 जय गणेश, गिरजा, सुवन, मंगल करण कृपाल।
 दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल।। 
 जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहं विनय महाराज। 
 करहंु कृपा रक्षा करो, राखहुं जन की लाज।। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

प्रेम विनय से तुमको ध्याऊं, सुधि लो बेगि हमारी।। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

देवों में तुम देव बड़े हो, भक्तों के दुख हर लेते। 
रंक को राजपाट, धन-वैभव, पल भर में दे देते। 
तेरा कोई पार न पाया तेरी महिमा न्यारी। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

वेद के ज्ञाता, जगत-विधाता तेरा रूप विशाला। 
कर्म भोग करवा भक्तों का पाप नाश कर डाला। 
यम-यमुना के प्यारे भ्राता, भक्तों के भयहारी। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

स्वर्ण सिंहासन आप विराजो, वाहन सात सुहावे। 
श्याम भक्त हो, रूप श्याम, नित श्याम ध्वजा फहराये।
 बचे न कोई दृष्टि से तेरी, देव-असुर नर-नारी।। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

उड़द, तेल, गुड़, काले तिल का तुमको भोग लगावें। 
लौह धातु प्रिय, काला कपड़ा, आक का गजरा भावे।
 त्यागी, तपसी, हठी, यती, क्रोधी सब छबी तिहारी। 
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।। 

शनिवार प्रिय शनि अमावस, तेलाभिषेक करावे। 
शनिचरणानुरागी मदन तेरा आशीर्वाद नित पावे। 
छाया दुलारे, रवि सुत प्यारे, तुझ पे मैं बलिहारी।
 आरती श्री शनिदेव तुम्हारी।।

शनि अमावस्या विशेष - जानिए जन्म कुंडली में शनि ग्रह और सातवें भाव का प्रभाव

शनि अमावस्या के लिए विशेष लेख--- (12 सितम्बर,2015 के लिए) 
Here-Saturn-in-the-birth-chart-and-the-impact-of-the-seventh-sense-or-meaning-  शनि अमावस्या विशेष - जानिए जन्म कुंडली में शनि ग्रह और सातवें भाव का प्रभाव           किसी भी जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है ।। 
           सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है. बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है. 
            किसी भी कुंडली का सातवाँ घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी | शादी के लिए दिशा कौन सी उपयुक्त रहेगी जहाँ प्रयास करने पर जल्द ही शादी हो सके | शुक्र बुध गुरु और चन्द्र यह सब शुभ ग्रह हैं | इन में से कोई एक यदि सातवें घर में बैठा हो तो शादी में आने वाली रुकावटें स्वत: समाप्त हो जाती हैं | अर्थात अधिक इन्तजार नहीं करना पड़ता परन्तु यदि इन ग्रहों के साथ कोई अन्य ग्रह भी हो तो शादी में व्यवधान अवश्य आता है | राहू मंगल शनि सूर्य यह सब अशुभ ग्रह हैं | इनका सातवें घर से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध शादी या दाम्पत्य के लिए शुभ नहीं होगा | फिर भी भविष्यवाणी करने के लिए ग्रह और उनकी राशि स्थिति पर विचार करना आवश्यक होगा है |

 ****** शनिदेव से सभी डरते हैं शनिदेव से सभी डरते हैं। 
उनकी कृपा पाने से सारे काम बन जाते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में शनिदेव को न्यायाधीश कहा गया है अर्थात अच्छे कर्म करने वाले को अच्छा तथा बुरे कर्म करने वाले को इसका दंड देने के लिए शनिदेव सदैव तत्पर रहते हैं। इसका निर्णय भी शनिदेव अन्य सभी देवों से जल्दी व त्वरित गति से करते हैं। यही कारण है कि गलत काम करने से लोग शनिदेव से डरते हैं।। शनि का अर्थ ही दुःख है | जिस समय हम दुःख की अवस्था में होते हैं तब शनि का समय समझे | इस काल को छोड़कर सभी काल क्षण भंगुर होते हैं | शनि के काल की अवधि लम्बी होती है | दुःख या शोक के समय, सेवा करते वक्त, कारावास में या जेल में और बुढापे में शनि का प्रभाव सर्वाधिक होता है |
 ******शनि आपकी कुंडली में प्रभावों को बढ़ा देते हैं।। 
 यदि शनि आपकी कुंडली में उच्च स्थान पर बैठे हैं तो ये संबंधित स्थान के प्रभावों को बढ़ा देते हैं लेकिन अगर यह नीच स्थान पर बैठे हों तो जातक को उस स्थान से संबंधित क्षेत्रों में सचेत रहने की अवश्यकता होती है। शनि देव और शनि ग्रह लोक मानस में इतना रच-बस गए हैं कि जब-जब शनिदेव की बात चलती है तो वह शनि ग्रह पर केंद्रित होकर रह जाती है।। 
 ******** शनि देव कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं 
 कहते हैं शनि की कृपा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है। लेकिन शनि देव इंसान के कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनि की अनुकंपा पानी हो तो अपना कर्म सुधारें, आपका जीवन अपने आप सुधर जायेगा। शनिदेव दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। अच्छा करने वालों की सुरक्षा भी शनिदेव करते हैं।। 
 ***** जानिए शनि ग्रह के प्रभाव वाले जातक के व्यवसाय को--- 
 जन्म कुंडली में शनि ग्रह से प्रभावित होने वाले जातक उत्पादन प्रबंधक, हार्डवेयर इंजीनियर, टैक्नीशियन, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, विदेशी भाषा अनुवादक, कंप्यूटर प्रोग्रामर, प्राइवेट डिटैक्टिव, लैब टैक्नीशियन, स्टील फैक्ट्री मालिक आदि कार्य में अपना नाम रोशन करते हैं।। 
 ****** शनि देव जी न्याय प्रिय देव हैं 
 कुछ पापी मनुष्य पाप करने के उपरांत भी बच जाते हैं और अपने पापों की सजा न पा कर वह बहुत प्रसन्न होते हैं कि उनका गलत कार्य करने के पश्चात बाल तक बांका नहीं हुआ मगर वह यह भुल जाते हैं कि शनि देव जी न्याय प्रिय देव हैं। जो दंड उनको मिलना था उसे बड़ा देने के लिए उसे छोड़ देते हैं और फिर भी मानों बच जाते हैं तो उसकी अगली पीढ़ी को बहुत ही बेरहमी से पीसते हैं। शनि आत्म सीमा, अनुशासन और योजना के माध्यम से शक्ति प्रदान करते हैं। किसी भी जातक पर यह अपना प्रभाव किस प्रकार से छोड़ेंगे यह उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। कुण्डली में जिस भी भाव या स्थान में शनि बैठे होते हैं उसी स्थान से ज्ञात होता है कि कहां पर कड़ी चुनौती का सबक मिलेगा। शनि की स्थिति ही व्यक्ति की राह में आने वाली कठिन चुनौतियों और सीमाओं को दर्शाती है। 
 ****** जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता है।
           किसी भी जन्म कुंडली में लग्न आपका अपना शरीर है और सातवाँ घर आपके पति या पत्नी का परिचायक है | यदि खूबसूरती का प्रश्न हो तो सब जानते हैं कि राहू और शनि खूबसूरती में दोष उत्पन्न करते हैं | गुरु मोटापा बढाता है | शुक्र के कमजोर होने से शरीर में खूबसूरती और आकर्षण का अभाव रहता है | मंगल शरीर के किसी अंग में कमी ला सकता है और राहू सच को छिपा कर आपको वो दिखाता है जो आप देखना चाहते हैं | सातवां भाव अगर पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन होता है,स्त्री जातक की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु का कारण बनती है,परंतु ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस की द्रिष्टि अगर शुभ होती है तो पति पत्नी की आपस की सामजस्य अच्छी बनती है,और अगर सूर्य चन्द्रमा की आपस की १५० डिग्री,१८० डिग्री या ७२ डिग्री के आसपास की युति होती है तो कभी भी किसी भी समय तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध किसी प्रकार से आपसी युति बना ले तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार का शिकार हो सकता है,स्त्री की कुंडली में सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन बातों का फल सही नही मिलता है,इसके लिये कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग देखना भी जरूरी होता है।।

         ज्योतिषीय द्रष्टि से जातक की शादी के लिए उसकी कुंडली का सप्तम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है | सप्तम भाव के आदर पर ही विद्धवान ज्योतिषी जातक की शादी ओर पत्नी सुख के बारे में अपनी भविष्यवाणी कहते है | हम देखते है की कभी कभी सुन्दर स्वस्थ्य ओर धनवान होने के बाद भी किसी किसी जातक अथवा जातिका का विवाह नहीं होता है तो इसका कारण उसका सप्तम भाव अथवा सप्तमेश बिगड़ा हुआ है ओर यह भाव बिगड़ा हुवा कैसे है यह हम आगे कुछ ज्योतिषीय जानकारी के माध्यम से पता करेंगे | आगे जों भी कारण लिखा है उनको आप स्वयं देखे पढ़े ओर समझे ओर कुंडली देखकर विचार करेगे तो पाएंगे की ज्योतिष कितनी सटीक है |
  1.  ------यदि सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है। 
  2. -----सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है। 
  3. ----कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है। 
  4. ------यदि सप्तम भाव में सम राशि है। 
  5. ----सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है। 
  6. ----सप्तमेश बली है। 
  7. -----सप्तम में कोई ग्रह नही है। 
  8. -----किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है। 
  9. ----दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
  10.  -----सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।।

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जानिए की क्यों किसी जन्म कुंडली के सप्तम भाव में स्थित शनि विवाह के लिए शुभ नहीं होता....??? 
 सप्तम भाव किसी भी जातक की लग्न कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न से सातवाँ भाव ही दाम्पत्य व विवाह-कारक माना गया है। इस भाव एवं इस भाव के स्वामी के साथ ग्रहों की स्थिति व दृष्टि संबंध के अनुसार उस जातक पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ता है। 
  1.  ----- हमारी वैदिक ज्योतिष में सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर माना जाता है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है। इस भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से देरी से होती है।
  2.  -----यदि सप्तम भाव में शनि, नीच राशि मे हो तो तब यह संभावना रहती है कि व्यक्ति काम पीड़‍ित होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उम्र में उससे अधिक बड़ा होता है। शनि के साथ सूर्य की युति अगर सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है एवं कलह से घर अशांत रहता है। 
  3.  -----ध्यान रखें शनि जिस कन्या की कुण्डली में सूर्य या चन्द्रमा से युत या दृष्ट होकर लग्न या सप्तम में होते हैं उनकी शादी में भी बाधा आती है। शनि जिनकी कुण्डली में छठे भाव में होता है एवं सूर्य अष्ठम में और सप्तमेश कमजोर अथवा पाप पीड़‍ित होता है,उनके विवाह में भी काफी बाधाएँ आती हैं। 
  4.  -----शनि और राहु की युति जब सप्तम भाव में होती है तब विवाह सामान्य से अधिक आयु में होता है, यह एक ग्रहण योग भी है। इस प्रकार की स्थिति तब भी होती है जब शनि और राहु की युति लग्न में होती है और वह सप्तम भाव पर दृष्टि डालते हैं। किसी जन्मपत्रिका में शनि-राहु की युति होने पर या सप्तमेश शुक्र अगर कमजोर हो तो विवाह अति विलम्ब से होता है। जिन कन्याओं के विवाह में शनि के कारण देरी हो उन्हें हरितालिका व्रत करना चाहिए या जन्म कुण्डली के अनुसार उपाय करना लाभदायक रहता है।
  5.  -----यदि चन्द्रमा के साथ शनि की युति हो तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को जन्म देता है। सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह एवं गृहस्थी के लिए सुखकारक नहीं होते हैं। नवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में जब शनि और चन्द्र की युति हो तो शादी 30 वर्ष की आयु के बाद ही करनी चाहिए क्योंकि इससे पहले शादी की संभावना नहीं बनती है।
  6.  ----जिनकी कुण्डली में चन्द्रमा सप्तम भाव में होता है और शनि लग्न में,उनके साथ भी यही स्थिति होती है। इनकी शादी असफल होने की प्रबल संभावना रहती है। जिनकी कुण्डली में लग्न स्थान से शनि द्वादश होता है और सूर्य द्वितीयेश होता है या लग्न कमजोर होने पर शादी बहुत विलम्ब से होती है। ऐसी स्थिति बनती है कि वह शादी नहीं करते।। 
  7.  -----यदि सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में हो अथवा नीच, शत्रुक्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा। सप्तम भाव में शनि पार्टनर को नीरस बनाता है, मंगल से तनाव होता है, सूर्य आपस में मतभेद पैदा करता है। सप्तम भाव में बुध-शनि दोनों नपुंसक ग्रहों की युति व्यक्ति को भीरू (डरपोक) तथा निरुत्साही बनाते हैं। यदि इन ग्रह स्थितियों के कोई अन्य परिहार (काट) अथवा उपाय जन्मकुंडली में उपलब्ध नहीं हों तो विवाह नहीं करें।।।
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 हनुमान जी सेवा, भक्ति और आराधना से दूर करें अपनी जन्मकुंडली में शनिग्रह के दोष को---
  1.  ---- हनुमान जी की आराधना से आप खुशियों का वरदान पा सकते हैं। मंगलवार को बजरंगबली की पूजा के लिए बेहद उत्तम माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो बजरंगबली की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं।
  2.  ------ यदि धन का संचय न हो पा रहा हो अथवा घर में बरकत न हो पा रही हो तो लाल चंदन, लाल गुलाब के फूलों एवं रोली को लाल कपड़े में बांध कर एक सप्ताह के लिए घर पर बने बजरंगबली के मंदिर में रख दें। एक सप्ताह पश्चात उस कपड़े को घर की तथा दुकान की तिजोरी में रख दें। 
  3.  -----पवन पुत्र बजरंगबली की हनुमान चालिसा का पाठ करने से मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर होता है। 
  4.  ----- हमारी वेदिक ज्योतिष के मतानुसार बजरंगबली के भक्तों को शनि की साढ़सती और ढैय्या में अशुभ प्रभाव नहीं झेलने पड़ते। हनुमान या बजरंगबली का नाम स्मरण करने मात्र से आप जीवन में आ रही तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। 
  5. ---- पवनपुत्र बजरंगबली को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पण करने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं और शीघ्र ही अपने भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। 
  6.  ----- किसी भी मंगलवार के दिन पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ कर उन्हें शुद्ध जल से साफ करें। कुमकुम, अष्टगंध और चंदन मिलाएं। किसी बारीक तीले से श्री राम का नाम उन पत्तों पर लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं और बजरंगबली के मंदिर में जाकर बजरंगबली को पहनाएं। ऐसा करने से जीवन में आने वाली समस्त समस्याओं का समाधान होगा।
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