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11 मई को शनि देव होंगे वक्री, इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव

11 मई, 2020 को शनिदेव अपनी मार्गी चाल को छोड़ कर वक्री होने जा रहे हैं। 142 दिनों तक यानि 29 सितंबर तक वे इसी अवस्था में रहेंगे तत्पश्चात वे फिर से मार्गी हो जाएंगे। शनि देव, सोमवार, 11 मई 2020 को सुबह के 9 बजकर 27 मिनट से वक्री हो जाएंगे और फिर बुधवार, 29 सितंबर 2020 को 10 बजकर 30 मिनट से फिर से मार्गी हो जाएंगे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के मतानुसार शनि की ये बदलती चाल आम जनमानस की तनाव बढ़ाने वाली साबित होगी। आमतौर पर शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्षों तक वास करते हैं। 24 जनवरी 2020 को शनि ने धनु से मकर राशि में प्रवेश किया था। 
   ज्योतिष विशेषज्ञ पण्डित दयानन्द शास्त्री जी मानते हैं की जब शनि वक्री अवस्था में आते हैं तो बहुत कष्ट  दुख देते हैं। जिन राशियों पर शनि की नज़र होती है, उनको बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी कहा जा सकता है की उनके जीवन से सुख-शांति सदा के लिए समाप्त हो जाती है। शनि न्याय के देवता हैं। जब वे वक्री होते हैं तो वे अपना अशुभ प्रभाव सबसे पहले उन राशियों पर डालते हैं जिन पर साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है। यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि अशुभ भाव में हैं तो आप पर दुखों का कहर टूटने वाला है। अगर शनि शुभ भाव में हैं तो कोई भी आपका अमंगल नहीं कर सकता।
Shani-Dev-will-be-retrograde-on-May-11-2020-know-the-effects-and-remedies-are-inauspicious-effects-of-Saturn-on-5-zodiac-signs- 11 मई को शनि देव होंगे वक्री, जानिए प्रभाव एवम उपाय- इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव    11 मई 2020 को शनि अपनी राशि मकर में वक्री हो जाएंगे। इसके बाद 13 मई को शुक्र और फिर 14 मई को बृहस्पति भी वक्री हो रहे हैं। इसके अलावा, 18 जून को बुध उलटी चाल से चलने लगेंगे। गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून के बीच ये चारों ग्रह एक ही समय पर प्रतिगामी यानी वक्र रहेंगे। ग्रहों की यह स्थिति 15 जुलाई तक कालपुरुष कुंडली में बने काल सर्प दोष के साथ परस्पर व्याप्त होती है जिसका परिणाम चिंताजनक हो सकता है।

जांने ओर समझें  प्रतिगामी शनि के परिणाम को–
प्रतिगामी शनि उन कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए शक्ति प्रदान करते है जिन्हें अतीत में अधूरा छोड़ दिया गया था। शनि भारत की कुंडली में नौवें और दसवें भाव के स्वामी हैं, अर्थात योगकारक ग्रह हैं। शनि 11 मई से 29 सितंबर 2020 तक मकर राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के नौवें भाव में है।  भारतीय पंचाग गणना अनुसार 11 मई से 2020 से शनि वक्री होगे। आगामी 143 दिनों तक वक्री रहकर गोचर में पर प्रभाव देंगे। न्याय के देवता है जातक के कर्मों के मुताबिक राजा और रंक बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ते। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि  कोरोना महामारी चलते कालाबाज़ारी जमाखोरी और मुनाफाखोरी करने की पृवत्ति में लिप्त व्यापारियों पर सत्ता और प्रशासन का शिकंजा कसेगा। 
इन 143 दिनों में उद्योग के क्षेत्र में शनै शनै सुधार आरम्भ होगा उद्योगपतियों और मजदूरों में विश्वास पैदा होने से परस्पर एक दूसरे को सहयोग करेंगे एवम उद्योग सम्बन्धी कार्य सुचारू शुरू होंगे । सम्भवतः श्रम कानूनों में भी सरकार कुछ ऐतिहासिक परिवर्तन करते हुए संगठित एवं असंगठित मज़दूरों के पक्ष में करेगी, ऐसे संकेत शनि दे रहे है। सभी वणिज व्यापार क्षेत्र एवम जनता के बीच कानून की परिपालना सख्त प्रशासनिक रवैये व अनुशासन के कारण चुस्त दुरुस्त दिखाई देगी। देश की सुरक्षा के मामलों में सतर्कता व त्वरित कठोरतम कार्यवाही देखने को मिलेगी। गरीबों एवम मेहनतकशों में असुरक्षा की भावना भी पनपेगी भयाक्रांत वातावरण कुल मिलाकर देश मे पसरेगा। सम्पूर्ण देश में शिक्षा एवम स्वास्थ्य के क्षेत्र ने नवीनतम दिशा निर्देश जारी होने की संभावना है ।
         पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस अवधि में कार्यपालिका विधायी पालिका व न्यायपालिका में जनहित के गम्भीर विषयों को लेकर भारी टकराव तथा आम जनता में व्याप्त अस्थिरता के कारण भारी जनाक्रोश होगा। सत्ताधारियो को नम्र होकर झुकना पड़ेगा। इस बीच यातायात की सभी सेवाएं, अंतरराष्ट्रीय हवाई, घरेलू हवाई सेवाएं सुचारू रूप से शुरू होगी रेल व सड़क यातायात भी धीरे धीरे यथावत शुरू होगा। आवागमन सुचारू होकर प्रत्येक क्षेत्र में बाधित रुकी थमी गतिविधियों को गति प्रदान करेगा। देश पटरी पर आने लगेगा शनि सबको राहत देगे व्याप्त भय का वातावरण समाप्त होगा। शनि का प्रतिगमन जिम्मेदारियों और काम के बोझ के साथ एक कठिन अवधि को दर्शाता है। लेकिन यह लोगों को अपने कौशल को अधिक निखारने और यथार्थवादी एवं व्यवहारिक बनने में भी मदद करेगा। कोरोनावायरस के कारण आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए नए कानून और नीतियां बनाई जा सकती हैं। न्यायिक सुधार और न्यायिक ढांचे का पुनर्गठन भी हो सकता है।

इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव---
ज्योतिषशास्त्र में शनि को न्याय का कारक ग्रह माना गया है। शनि के वक्री होने का सबसे ज्यादा असर उन राशि के जातकों पर पड़ेगा जिन राशि पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होगी। अगर आपकी कुंडली में शनि अशुभ भाव में बैठा है तब आपको इसका कष्ट देखने को मिलेगा वहीं अगर आपकी कुंडली में शनि शुभ भाव में है तो आपको इसका  अशुभ असर देखने को नहीं मिलेगा।
वर्तमान दौर में धनु, मकर और कुंभ राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। वहीं 2 अन्य राशि मिथुन और तुला पर शनि की ढैय्या चल रही है। ऐसे में शनि के वक्री होने पर कुल पांच राशियों पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा। अन्य 7 राशियों के जातकों को घबराने की अवश्यकता नहीं है।
वक्री शनि को बली बनाने के इन उपायों से होगा लाभ --

शक्तिशाली है ये मन्त्र:---
कर्मफलदाता शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि मंत्र सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती हो या फिर ढैया सबके लिए शनि-मंत्र रामबाण उपाय है। शनिवार का दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शुभ दिन होता है। शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में बहुत सारे उपाय बताए गए हैं लेकिन जो शक्ति शनि मंत्र है वह अन्य किसी उपाय में नहीं है।

 शनि स्तोत्र :---
 नमस्ते कोणसंस्थाय पिडगलाय नमोस्तुते।
 नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते।।
 नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
 नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।
 नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते।
 प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
 शनि के इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इससे बेहतर कोई स्तोत्र नहीं है। इस स्तोत्र का कम से कम 11 बार पाठ करना चाहिए।

 वैदिक शनि मंत्र :---
 " ऊँ शन्नोदेवीर भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योर भिस्त्रवन्तुन : "

 पौराणिक शनि मंत्र :---
 "ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
 छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।"

 शनि महाग्रह मन्त्र :---
ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते मुनि सुव्रततीर्थ कराय बरुणयक्ष बहुरु-पिणीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ह्रीं ह्रः शनिमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारण सर्व शांति च कुरू कुरू हूं फट् ।।

 इस मन्त्र का जप 33 हजार करने का विधान दिया गया है।

शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार को सूर्योदय से पहले जगकर पीपल की पूजा करने से शनिदेव खुश होते हैं। शनिवार को पीपल के पेड़ में सरसों का तेल चढ़ाने से शनि देव अति प्रसन्न होते हैं। शनिवार को संध्याकाल में इन मंत्रों का जाप करने से शनि का प्रकोप शांत होता है। साथ ही शनिदेव को इस मंत्र से पूजा करने से जो भी शनि की महादशा भी खत्म होती है।
 शनि व्रत :---
 शनिवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करे और 19, 31 या 41 शनिवार तक करे। शनिवार के दिन प्रात: स्नान आदि करके काले रंग की बनियान धारण करे और सरसो के तेल का दान करे तथा तांबे के कलश मे जल, थोडे काले तिल​, लोंग​, दुध, शक्कर, आदि डाल के पीपल अथवा खेजडी के वृक्ष के दर्शन करते हुये पश्चिम दिशा कि तरफ़ मुख रखते हुये जल प्रदान करे. तथा "ॐ प्रां प्रीं प्रों स​: शनैश्चराय नम​: " इस बिज मंत्र का यथाशक्ति जाप करे। इस दिन भोजन में उडद दाल एवं केले और तेल के पदार्थ बनाये।
     भोजन से पुर्व भोजन का कुछ भाग काले कूत्ते या भिखारी को दे उसके बाद प्रथम 7 ग्रास उपरोक्त पदार्थ ग्रहण करे बाद में अन्य पदार्थ ग्रहण करे। अंतिम शनिवार को हवन क्रिया के पश्चात यथाशक्ति तील, छ्त्री, जुता, कम्बल​, नीला-काला वस्त्र​, आदि वस्तुओ का दान निर्धन व्यक्ति को करे। व्रत के दिन जल, सभी प्रकार के फल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ या औषध सेवन करने से व्रत नष्ट नहीं होता है। व्रत के दिन एक बार भी पान खाने से, दिन के समय सोने से, स्त्री रति प्रसंग आदि से व्रत नष्ट होता है।
  • – प्रत्येक शनिवार को शनि देव का उपवास रखें।
  • – शाम को पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
  • – शनि के बीज मंत्र ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः का 108 बार जाप करें।
  • – काले या नीले रंग के वस्त्र धारण करें।
  • – गरीबों को अन्न-वस्त्र दान करें।

शनि हुए मार्गी, जानिए अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होगा

हिंदू मान्यताओं में ग्रहों और नक्षत्रों की चाल का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इनके स्थान परिवर्तन का असर इंसान के जीवन पर भी पड़ता है। यह अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है। ग्रहों के न्यायधीश और व्यक्ति को कर्मों के आधार पर फल देने वाले शनि अपनी चाल बदलेंगे। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि भारतीय ज्योतिष के नौ ग्रहों में से एक प्रमुख न्यायप्रिय शनि ग्रह का वक्री होना प्रमुख घटना है। शनि एक राशि में 30 महीने, गुरू 13 महीने, राहु केतु 18 महीने और अन्य ग्रह दिनों के हिसाब से रहते हैं। शनि इस समय धनु राशि में वक्री अवस्था में गोचर है। शनि 30 अप्रैल 2019 से वक्री चल रहे है। 
    आज 18 सितंबर को शनि धनु राशि में वक्री से मार्गी हो जाएगा। शनि जो धनु राशि में उल्टा चल रहे थे 18 सितंबर से सीधा चलने लगेगा। शनि के सीधा को शुभ माना जाता है। दो ग्रह राहु- केतु को छोड़कर 18 सितंबर से सभी ग्रह मार्गी रहेंगे। शनि के मार्गी  शनिदेव का वक्री अथवा मार्गी होना पृथ्वीवासियों के प्रति बड़ी घटना के रूप में देखा जाता है। जिस राशि पर भ्रमण करने के मध्य ये वक्री रहते हैं, उन्हें काफी मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। शनि के मार्गी होने से पिछले कुछ समय से चली आ रही परेशानियां खत्म होगी। शनि के मार्गी होने से खासतौर पर मेष और सिंह राशि वालों के लिए कई सुखद समाचार मिलेगा।

Saturn-is-Margi-know-how-Margi-Saturn-will-affect-your-zodiac-in-the-next-5-months.-शनि हुए मार्गी, जानिए अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होगा
      आज दोपहर 18 सितंबर 2019 (बुधवार) से शनि भी अपनी चाल बदलकर उलटी से सीधी मार्ग यानी मार्गी चाल पर होंगे। इस तरह करीब 142 दिन बाद धनु राशि में चल रहे शानि देव अब उल्टी चाल छोड़कर सीधी चाल चलना शुरू करेंगे। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि शनिदेव 30 अप्रैल 2019 को वक्री हुए थे। अपने कुल 142 दिन के इस वक्रत्वकाल में शनि ने लगभग सभी राशियों को कार्यों में अड़चन, आर्थिक संकट, रोग, पारिवारिक जीवन में समस्याएं, दाम्पत्य सुख में कमी जैसी अनेक परेशानियों से लोगों का सामना हुआ है। लेकिन अब आज 18 सितंबर से शनि के धनु राशि में मार्गी होने से सभी राशि वालों को राहत महसूस होगी। शनि के मार्गी होने से जीवन की बाधाएं समाप्त होंगी, धन आगमन के बंद रास्ते खुलेंगे और प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होगा। राजनीति में उथल-पुथल  देखने को मिल सकती है। डिप्रेशन व अकारण ही घटनाएं बढ़ सकती हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार 18 सितम्बर 2019 (बुधवार) दोपहर 2 बजकर 15 मिनट पर शनि ने अपनी चाल बदल दी हैं और धनु राशि में सीधी चाल चलेंगे। इस राशि में शनि अगले पांच महीने यानी 24 जनवरी 2020 तक सीधी चाल से चलते हुए शनि मकर राशि में प्रवेश करेंगे।  
जानिए आने वाले अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होने वाला है
  1. मेष - इस राशि के जातक को शनि के स्थान परिर्वतन करने से भाग्य का सहयोग मिलेगा। चीजें बेहतर होंगी। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी और करियर भी अच्छा बनेगा। नए अवसर प्राप्त होंगे। कारोबार के सिलसिले में की गई यात्रा लाभप्रद रहेगी। शत्रु पक्ष निर्बल रहेंगे। मित्रों से सहयोग मिलेगा। रुके हुए कार्य आज पूरे हो सकते हैं, प्रयास कीजिए। आपकी कोई इच्छा आज पूरी होने वाली है भाग्य 90 प्रतिशत साथ दे रहा है। माता-पिता और गुरुओं का आशीर्वाद मिलेगा। ध्यान रखें--अष्टम ढैया से निकले शनि को मना लें, आप संकट में आ सकते हैं।
  2. वृषभ- शनि की बदली हुई चाल इस राशि के लिए शुभ है। जातकों को धन लाभ होगा। नये काम शुरू करने के लिए भी समय शुभ है। मन अस्थिर रहेगा और विचारों के भंवर में डूबते रहेंगे। लेखकों और कलाकारों के लिए दिन सृजनात्मक रहेगा। वैसे आज संभलकर काम करें, काम में बाधा आ सकती है। स्थान परिवर्तन का योग बना है। यात्रा में असुविधा हो सकती है। गुरु मंत्र का जप करें। भाग्य 53 प्रतिशत तक साथ देगा।स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। नौकरी से जुड़ी दिक्कतें खत्म होंगी। वाणी पर संयम रखें और विवाद से दूर रहें। कष्ट से छुटकारा मिलेगा।  ध्यान रखें-- परेशानियां तो आएंगी पर शनि मंत्र को जपने से आपको परेशानी कम होगी।
  3. मिथुन- इस राशि के जातक के लिए भी अगले 5 महीने फलदायी हैं। विवाह से जुड़ी  समस्याओं का हल मिलेगा। रूके हुए काम पूरे होंगे। जीवनसाथी का भरपूर साथ मिलेगा। जिन लोगों का अपने जीवनसाथी के साथ मनमुटाव था वो खत्म हो जाएगा। विशिष्ट लोगों से संपर्क बनेंगे जिनका भविष्य में लाभ भी मिल सकता है। कारोबार के लिहाज से यात्रा सुखद रहेगी। उन्नति का समाचार मिलेगा। आज जो भी कीजिए दिल खोलकर कीजिए, शत्रु निर्बल रहेंगे। सेहत अच्छी रहेगी। वैसे इस दौरान किसी से कर्ज लेने से बचें। ध्यान रखें --घरेलू समस्याओं से जूझना पड़ेगा। शनि को मनाने की तैयारी करें।
  4. कर्क- इस राशि के जातक को लंबी बीमारी से राहत मिलेगी। आय में बढोत्तरी होगी। कार्यक्षेत्र में व्यस्तता रहेगी। कारोबार में धन लाभ होगा। आज का कर्म आपके कल का भविष्य बनाएगा अतः सोच-समझकर काम करें और निर्णय लें।कानूनी और सरकारी मसलों में कोई जोखिम नहीं ले। विरोधियों से दूर रहें। अधिकारी वर्ग से लाभ होगा। ध्यान रखें -- इस अवधि में कष्टों से मुक्ति मिलेगी किन्तु शनि की भक्ति को भुलाकर भी छोड़े नहीं।
  5. सिंह- इस राशि के जातक को संतान का भरपूर साथ और प्यार मिलेगा। धन अर्जित करने में सफलता मिलेगी। अपने और अपने संतान के स्वास्थ्य का ध्यान जरूर रखें।इस आप सकारात्मक उर्जा से भरपूर रहेंगे। काम में रुचि रहेगी और जो भी करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। मित्रों और सज्जनों से सहयोग मिलेगा। विरोधी भी आज सहयोग मांगने पर मदद करेंगे। कुल मिलाकर स्थिति सामान्य और सुखद रहने वाली है। किसी प्रकार की जल्दबाजी से बचें। ध्यान रखें -- ढैया से होगी मुक्ति, अब मिलेगी कष्टक में मुक्ति।
  6. कन्या- माता का साथ मिलेगा। यह समय घर और गाड़ी लेने के लिए भी अच्छा रहने वाला है। जीवनसाथी से विवादों में ना उलझें। यात्रा में असुविधा हो सकती है। वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। अपने सामान का ध्यान रखें, खोने का भय है। कठिन परिश्रम करना पड़ेगा।धार्मिक कार्यों में रूचि रहेगी। विदेश जाने की संभावना बन सकती है। ध्यान रखें -- सावधानी रखें।अच्छे दिन गए ।इस राशि वालो के लिए परेशानियों का आगमन होने वाला है।
  7. तुला- आपके लिए शनि का मार्गी चाल शुभ रहने वाला है। भाई-बहनों से प्रेम बढ़ेगा और शुभ समाचार मिलेंगे। कला और मनोरंजन में रुचि रहेगी। धर्म-कर्म के काम में मन लगेगा। आसपास की यात्रा लाभदायक रहेगी। कार्यक्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी मित्रों से सहयोग मिलेगा। बुजुर्गों व साधु-संतों से आशीर्वाद प्राप्त होगा।आय में वृद्धि हो सकती है। पदोन्नति का भी योग बन रहा है। आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। पैतृक संपत्ति विवाद खत्म होगा। ध्यान रखें -- इस राशि वालो। हो जाओ खुश। आ रहे हैं अच्छे दिन कर ले अपनी मन की सभी इच्छा पूरी।
  8. वृश्चिक- संपत्ति के मामले में आपको लाभ मिल सकता है। परिश्रम अधिक है। मान-सम्मान में वृद्धि का योग है। कार्यक्षेत्र में व्यस्तता बढ़ेगी। नए अवसर व नए लोगों से परिचय होगा। सक्रिय रहें, सुअवसर को हाथ से न जाने दें। पारिवारिक मामलों में धन खर्च कर सकते हैं। खराब रिश्तों में सुधार होगा और मान-सम्मान बढ़ेगा। रूके हुए काम पूरे होंगे। ध्यान रखें -- आपको शनि की अच्छी दृष्टि के लिए अभी आपको ढाई साल और इंतजार करना होगा।  
  9. धनु- आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। नई नौकरी तलाश रहे हैं तो इसमें सफलता के योग हैं और आप सकारात्मक बने रहेंगे। शादीशुदा लोग जीवनसाथी को लेकर परेशान हो सकते हैं। भविष्य की चिंता सताएगी। संघर्ष अधिक करना पड़ेगा। व्यर्थ की भागदौड़ रहेगी। मन दुविधा में रहेगा। बिजनेस बढ़ेगा और आर्थिक तौर पर मजबूत होंगे। ध्यान रखें -- इस राशि वालों को शनि की साढ़ेसाती की वजह से किसी शुभ समाचार के मिलने में देरी हो सकती है।
  10. मकर- आपके लिए विदेश जाने की पूरी संभावना बन रही है। धार्मिक यात्राओं पर भी जा सकते हैं। पैसों से जुड़ी कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जीवनसाथी से मनमुटाव की आशंका रहेगी। किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए जल्दबाजी से बचें और वाणी पर संयम रखें। ध्यान रखें -- इस राशि के जातकों के सभी कार्यों के पूरा होने में विलम्ब होगा।
  11. कुंभ- आपके लिए अगले कुछ दिन लाभ वाले हैं। इच्छापूर्ति होगी। सोचे हुए कार्य पूर्ण होंगे। किसी बड़े अधिकारी का समर्थन प्राप्त होगा। कार्यक्षेत्र में प्रभाव और जिम्मेदारी बढ़ेगी। अचानक लाभ से प्रसन्न होंगे। कोई डील करने जा रहे हैं तो अपनी बुद्धि और चतुराई से लाभदायक सौदा कर सकते हैं।नौकरी में परिवर्तन के योग के साथ मान-सम्मान बढ़ेगा। रूके हुए धन प्राप्त होंगे। प्रेम संबंधो में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।  शनिदेव इस राशि वालों पर मेहबान हैं। आपका कल्याण करेंगे।
  12. मीन- आपके लिए अगले कुछ दिन मिलेजुले रहने वाले हैं। परिश्रम और संघर्ष के बाद सफलता मिलेगी जिससे आनंदित होंगे। विरोधी साजिश कर सकते हैं, लेकिन आपका अहित नहीं कर पाएंगे। जीवनसाथी से आनंद और खुशी मिलेगी।काम को लेकर कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। वैसे समय के साथ आप इनसे निपटने में भी कामयाब होंगे। नौकरीपेशा लोग खुश रहेंगे। ध्यान रखें -- इस राशि के जातकों के काम के बीच कोई बाधा नहीं आएगी पर काम आधा अधूरा ही बनेगा।

आइये जाने और समझें दुर्घटनाओं का योग को--- (क्यों होते हैं एक्सीडेंट/दुर्घटना)

अक्सर हम सभी स्वयं अपने जीवन में और अपने आस-पास के लोगों के जीवन में बहुत बार एक्सीडैंट या दुर्घटनाओं को होते देखते हैं जो सामान्य रूप से चल रहे जीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर देते हैं वाहन से होने वाले एक्सीडैंट तो अक्सर हमारे सामने आते ही रहते हैं, कई बार समान्य रूप से रास्ते में चल रहे लोग दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं तो कई बार घर बैठे ही दुर्घटनाएं हो जाती हैं तो कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनके साथ अक्सर चोट आदि लगने की घटनाएं होती ही रहती हैं इन दुर्घटनाओं को लेकर जब हमने उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से ग्रहों के संबंध में बात की तो उन्होंने बताया कि मंगल, शनि और राहू के समीकरण से फिलहाल दुर्घटनाओं और मौत के मामले बढ़े हैं। 
        आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से इस विषय में विस्तार से— आइये जाने और समझें को--- 
आइये जाने और समझें दुर्घटनाओं का योग को--- (क्यों होते हैं एक्सीडेंट/दुर्घटना)-Let-understand-the-sum-of-accidents       ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि दुर्घटनाओं का गणित समझने के लिए हमें अपने देश की कुंडली पर नजर डालनी होगी। देश की गोचर कुंडली में 26 अक्टूबर से शनि लग्न कुंडली की धनु राशि पर यानी अष्टम भाव में आ गया है। अष्टम भाव मृत्यु का भाव होता है। मंगल कन्या राशि पर है यानी लग्न कुंडली के पंचम भाव में है। राहू कर्क पर है यानी लग्न कुंडली के तीसरे भाव पर है। इस स्थिति में मंगल और राहू दोनों ही शनि को देख रहे हैं और शनि इन्हें देख रहा है। वहीं सूर्य गोचर कुंडली में तुला राशि पर हैं, यानी लग्न राशि के छठवें भाव में हैं। तुला में होने के कारण सूर्य नीच का है। इस तरह शनि, राहू और मंगल का समीकरण व सूर्य का नीच राशि में होने से दुर्घटनाएं व मृत्यु के मामले तेजी से बढ़े हैं। 
       सभी नौ ग्रहों में एक शनि ऎसा ग्रह है जो सबसे अधिक समय तक एक राशि में रहता है. इसी तरह गोचर में कभी न कभी ग्रहों का संबंध एक साथ बनता है,जैसे अभी मंगल और शनि का युति संबंध बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और मंगल दोनों ही क्रूर एवं पाप ग्रह माने जाते हैं.जहां एक और मंगल बहुत उग्र, क्रोधी हैं और इनकी प्रकृति तमस गुणों वाली मानी गई है. इसी प्रकार अपनी धीमि गति से चलते हुए शनिदेव अपना असरदार प्रभाव देते हैं, अपने अद्वितीय तेज से दोनों ही ग्रह सभी को प्रभावित करते से दिखाई देते हैं. यह सभी पर ऊर्जावान कार्रवाई, आत्मविश्वास तथा अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं. शनि और मंगल आपस में एक-दूसरे के शत्रु हैं. मृत्यु के कारक शनि और रक्त के कारक ग्रह मंगल एक दूसरे का के साथ युति में होना बहुत सी परेशानियों का कारण बन सकता है. 
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शनि तोड़ेगा हड्डी और मंगल निकालेगा खून---
 ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि लोहे के स्वामी माना जाता है। इस कारण वाहन का प्रयोग करने वालों को सावधानी बरतनी होगी। शनि की इस स्थिति से हड्डी टूटने या इस तरह की अन्य समस्याएं सामने आएंगी, वहीं मंगल खून निकालता है। इसके अलावा सूर्य का नीच राशि में होना और राहू का कर्क में होना इन दुर्घटनाओं को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है. जन्म कुंडली में इन दोनों ग्रहों की युति यानी एक ही भाव में साथ होना अच्छा संकेत नही माना जाता है .गोचर में भी शनि और मंगल की अशुभ युतियां देखी जा सकती हैं जिनका असर कुछ खास अच्छा नहीं होता है. इन ग्रहों का शत्रु के साथ होना अच्छा नहीं माना जाता है. यह दुघर्टना और संकट का सूचक बनते हैं | 
        शनि मंगल का दृष्टि संबंध बनना और षडाष्टक योग बनाना आपदाओं का कारण हो सकता है. हाल फिलहाल बनने वाला मंगल का शनि के साथ कन्या राशि में यह योग इस समय अनेक परेशानियों, दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है. प्राकृतिक आपदाएं और राष्ट्रों का आपसी मतभेद बढ़ सकता है. आतंकी घटनाओं में तेजी की संभावना देखी जा सकती है | मंगल का राशि परिवर्तन का असर सभी पर दिखाई दे सकता है. मंगल राशि परिवर्तन और शनि के साथ युति से अचानक सफलता और वाणी एवं चतुराई में तेजी देखी जा सकती है. अनावश्यक गुस्सा और मानसिक तनाव बढ़ सकता है. नए उत्तरदायित्व मिल सकते हैं और व्यवसायियों को धन लाभ होने के योग बनते हैं. रूके हुए कार्य मेहनत से करने पर ही पूरे होंगे. वाहन, मशिनरी के क्रय- विक्रय से लाभ हो सकता है इस समय में दुर्घटना और धन हानि के योग भी बन सकते हैं. भूमि प्रॉपर्टी से संबंधित लोगों के लिए ये समय अच्छा रह सकता है. व्यर्थ के विवाद का सामना भी करना पड़ सकता है| 
       वर्तमान में ग्रहों की स्थिति पर नजर डाले तो इस आधार पर मंगल का शनि से योग बना रहा है. ग्रहों की यह स्थिति राष्ट्र के मौजूदा घटना क्रम व वर्तमान उथल-पुथल का कारण बन सकती हैं. सांसारिक जीवन में आजीविका, नौकरी, कारोबार, सेहत या संबंधों के लिए मिले जुले परिणाम देने वाला हो सकता है |दशम व्यापार-व्यवसाय भाव का स्वामी शनि से दृष्ट होकर कुंभ राशि में सप्तमस्थ होने से स्त्री वर्ग पर अत्याचार नहीं रुकेंगे, वहीं बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आएगी।घटना-दुर्घटनाओं में कमी के योग कम ही हैं। शत्रु पक्ष पर प्रभाव में वृद्धि होगी। यह समय शासन-प्रशासन के लिए कड़ी परीक्षा का रहेगा। राजनेताओं को सावधानीपूर्वक चलना होगा। कहीं भूकंप या रेल दुर्घटनाओं के योग बनेंगे। शनि लोहे का कारक होता है व वक्र गति से चलने से उक्त समय सावधानी का रहेगा। शनि का राशि परिवर्तन देश के लिए खतरे का भी संकेत है।
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कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनके साथ अक्सर चोट आदि लगने की घटनाएं होती ही रहती हैं ज्योतिष के दृष्टिकोण से कुछ विशेष ग्रह योग ही एक्सीडैंट की घटनाओं का कारण बनते हैं तो आज हम एक्सीडैंट या दुर्घटना के पीछे की ग्रहस्थितियों के बारे में चर्चा करेंगे – ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि “ज्योतिष में “मंगल” को दुर्घटना, एक्सीडेंट या चोट लगना, हड्डी टूटना, जैसी घटनाओं का कारक ग्रह माना गया है “राहु” आकस्मिक घटनाओं को नियंत्रित करता है इसके आलावा “शनि” वाहन को प्रदर्शित करता है तथा गम्भीर स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है अब यहाँ विशेष बात यह है के अकेला राहु या शनि दुर्घटना की उत्पत्ति नहीं करते जब इनका किसी प्रकार मंगल के साथ योग होता है तो उस समय में दुर्घटनाओं की स्थिति बनती है। 
      शनि,मंगल और राहु,मंगल का योग एक विध्वंसकारी योग होता है जो बड़ी दुर्घटनाओं को उत्पन्न करता है। जिस समय गोचर में शनि और मंगल एक ही राशि में हो, आपस में राशि परिवर्तन कर रहे हों या षडाष्टक योग बना रहे हों तो ऐसे समय में एक्सीडैंट और सड़क हादसों की संख्या बहुत बढ़ जाती है ऐसा ही राहु मंगल के योग से भी होता है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि,मंगल और राहु,मंगल का योग होता है उन्हें जीवन में बहुत बार दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है अतः ऐसे व्यक्तियों को वाहन आदि का उपयोग बहुत सजगता से करना चाहिए। किसी व्यक्ति के साथ दुर्घटना होने में उस समय के गौचर ग्रहों और ग्रह दशाओं की बड़ी भूमिका होती है जिसकी चर्चा हम आगे कर रहें हैं” 
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 जानिए क्या आपकी पत्रिका में हैं दुर्घटना योग ??? 
 ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जन्म पत्रिका से भी जाना जा सकता है दुर्घटनाओं के बारे में। यदि हमें पूर्व से जानकारी हो जाए तो हम संभलकर उससे बच सकते हैं। दुर्घटना तो होना है लेकिन क्षति न पहुँच कर चोट लग सकती है। जिस प्रकार हम चिलचिलाती धूप में निकलें और हमने छाता लगा रखा हो तो धूप से राहत मिलेगी, उसी प्रकार दुर्घटना के कारणों को जानकर उपाय कर लिए जाएँ तो उससे कम क्षति होगी। इसके लिए 6ठा और 8वाँ भाव महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें बनने वाले अशुभ योग को ही महत्वपूर्ण माना जाएगा। किसी किसी की पत्रिका में षष्ठ भाव व अष्टमेश का स्वामी भी अशुभ ग्रहों के साथ हो तो ऐसे योग बनते हैं। वाहन से दुर्घटना के योग के लिए शुक्र जिम्मेदार होगा। लोहा या मशीनरी से दुर्घटना के योग का जिम्मेदार शनि होगा। आग या विस्फोटक सामग्री से दुर्घटना के योग के लिए मंगल जिम्मेदार होगा। 
     चौपायों से दुर्घटनाग्रस्त होने पर शनि प्रभावी होगा। वहीं अकस्मात दुर्घटना के लिए राहु जिम्मेदार होगा। अब दुर्घटना कहाँ होगी? इसके लिए ग्रहों के तत्व व उनका संबंध देखना होगा। 
  1. · षष्ठ भाव में शनि शत्रु राशि या नीच का होकर केतु के साथ हो तो पशु द्वारा चोट लगती है।
  2.  · षष्ठ भाव में मंगल हो व शनि की दृष्टि पड़े तो मशीनरी से चोट लग सकती है। 
  3. · अष्टम भाव में मंगल शनि के साथ हो या शत्रु राशि का होकर सूर्य के साथ हो तो आग से खतरा हो सकता है।
  4.  · चंद्रमा नीच का हो व मंगल भी साथ हो तो जल से सावधानी बरतना चाहिए।
  5.  · केतु नीच का हो या शत्रु राशि का होकर गुरु मंगल के साथ हो तो हार्ट से संबंधित ऑपरेशन हो सकता है।
  6.  · ‍शनि-मंगल-केतु अष्टम भाव में हों तो वाहनादि से दुर्घटना के कारण चोट लगती है। 
  7. · वायु तत्व की राशि में चंद्र राहु हो व मंगल देखता हो तो हवा में जलने से मृत्यु भय रहता है। 
  8. · अष्टमेश के साथ द्वादश भाव में राहु होकर लग्नेश के साथ हो तो हवाई दुर्घटना की आशंका रहती है। 
  9. · द्वादशेश चंद्र लग्न के साथ हो व द्वादश में कर्क का राहु हो तो अकस्मात मृत्यु योग देता है। 
  10. · मंगल-शनि-केतु सप्तम भाव में हों तो उस जातक का जीवनसाथी ऑपरेशन के कारण या आत्महत्या के कारण या किसी घातक हथियार से मृत्यु हो सकती है।
  11.  · अष्टम में मंगल-शनि वायु तत्व में हों तो जलने से मृत्यु संभव है। 
  12. · सप्तमेश के साथ मंगल-शनि हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं। इस प्रकार हम अपनी पत्रिका देखकर दुर्घटना के योग को जान सकते हैं। यह घटना द्वितीयेश मारकेश की महादशा में सप्तमेश की अंतरदशा में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में घट सकती है। उसी प्रकार सप्तमेश की दशा में द्वितीयेश के अंतर में अष्टमेश या षष्ठेश के प्रत्यंतर में हो सकती है। जिस ग्रह की मारक दशा में प्रत्यंतर हो उससे संबंधित वस्तुओं को अपने ऊपर से नौ बार विधिपूर्वक उतारकर जमीन में गाड़ दें यानी पानी में बहा दें तो दुर्घटना योग टल सकता है। 

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कुंडली बताती हे दुर्घटना योग (एक्सीडेंट के कारण) —
  1.  पहनने-ओढ़ने के साथ तेज रफ्तार से वाहन चलाना यह सभी प्रमुख शौक होते हैं। नए से नया वाहन लेना यह हरेक का सपना होता है मगर क्या चाहने भर से या केवल सपना देखने से वाहन सुख मिलता है। नहीं! वाहन सुख के लिए भी ग्रह योगों का प्रबल होना जरूरी है।
  2.  यदि चतुर्थ भाव प्रबल हो, शुक्र की राशि हो या शुक्र की दृष्टि में हो तो नया व मनचाहा वाहन प्राप्त होता है।
  3.  यदि चतुर्थ भाव में शनि की राशि हो और शनि यदि नीचस्थ या पाप प्रभाव में हो तो सेकंडहैंड वाहन मिलता है। 
  4. यदि चतुर्थ का स्वामी लग्न, दशम या चतुर्थ में हो तो माता-पिता के सहयोग से, उनके नाम का वाहन चलाने को मिलता है। च
  5. तुर्थेश यदि कमजोर हो तो वाहन सुख या तो नहीं मिलता या फिर दूसरे का वाहन चलाने को मिलता है। 
  6. चतुर्थेश युवावस्था में हो (डिग्री के अनुसार) तो वाहन सुख जल्दी मिलता है, वृद्ध हो तो देर से वाहन सुख मिलता है।  
  • वाहन की खराबी : चतुर्थेश यदि पाप ग्रह हो, कमजोर हो, पाप प्रभाव में हो तो वाहन प्राप्त होने पर भी बार-बार खराब हो जाता हैं। मंगल खराब हो तो (चतुर्थेश होकर) इंजन में गड़बड़ी, शनि के कारण कल-पुर्जों में खराबी, राहु की खराबी से टायर पंचर होना व अन्य ग्रहों की कमजोरी से वाहन की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी आना दृष्टिगत होता है। 
  •  दुर्घटना योग : वाहन है तो दुर्घटना, चोट-खरोंच का भय बना ही रहता है। यदि सेंटर हाउस का स्वामी, लग्न, अष्टम भाव मजबूत है मगर तीसरा भाव या उसका स्वामी कमजोर हो तो वाहन के साथ छोटी-मोटी टूट-फूट हो सकती है, व्यक्ति को भी छोटी-मोटी चोट लग सकती है। यदि लग्न व सेंटर हाउस का स्वामी दोनों पाप प्रभाव में हो, तीसरा भाव खराब हो मगर अष्टम भाव मजबूत हो तो दुर्घटना तो होती है, मगर जान को खतरा नहीं रहता। यदि अष्टम भाव व तीसरा भाव कमजोर हो तो भयंकर दुर्घटना के योग बन हैं जिससे जान पर भी बन सकती है। शनि के कारण दुर्घटना में पैरों पर चोट लग सकती है, जब कि मंगल सिर पर चोट करता है। 
  •  उपाय : यदि कुंडली में एक्सीडेंट योग दिखें तो उस ग्रह को मजबूत करें, वाहन जीवन भर सावधानी से चलाएँ और वाहन के रख-रखाव का विशेष ध्यान रखें। इंश्योरेंस अवश्य कराएँ। 
  •  विशेष : वाहन सुख प्राय: चतुर्थेश की दशा-महादशा-अंतरदशा में प्राप्त होता है। उसी तरह दुर्घटना योग भी तृतीयेश-अष्टमेश की दशा-महादशा में बनते है अत: पूर्वानुमान कर सावधानी बरती जा सकती है। 

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जानिए कैसे लगाएं जन्म कुंडली से दुर्घटना का पूर्व अनुमान -- 
 जब किसी जातक की कम कुंडली में लग्न, चन्द्रमा और सूर्य :12 वा , 8 वा , ४ भाव दुर्घटना का संबंध लग्न और लग्नेश से रहता है। लग्न जातक के स्वयं का होता है। लग्न में शुभ ग्रह होना चाहिये हैं। अशुभ ग्रह हानि पहुंचाते हैं। शुभ ग्रह स्थित होने से ,और दृष्टि होने से सुरक्षा होती है। अकारक ग्रह या मारक ग्रह जब भी लग्न या लग्नेश पर गोचर करता है तब दुर्घटना होने के योग बनते है। अकारक ग्रह या मारक ग्रह की यदि दशा-अंतर्दशा चल रही हो, तो जातक को कष्ट और दुर्घटना होने के योग बनते है। मंगल ग्रह जातक को दुर्घटना में अधिक चोट आती या रक्त भी बहता है।
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 ऐसे जानिए दुर्घटना का समय :
 ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि ग्रह का गोचर लग्न पर हो ,वही समय दुर्घटना का होता है। इसी तरह से आने वाली दुर्घटना का पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है। ग्रह मंगल और शनि दुर्घटनाओं के योग बनाते हैं दुर्घटनाओं के लिए कुछ और योग :--- लग्न या दूसरे घर में राहु और मंगल, लग्न में शनि, लग्न में मंगल ग्रह, तीसरे घर में मंगल या शनि ग्रह ,5 वीं भाव में, मंगल या शनि .दशा अवधि:12 वा , 8 वा , 4 भाव की ग्रह की महादशा ,अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा,अवधि के दौरान दुर्घटना हो सकती है या अस्पताल में भर्ती हो सकते है। 
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कुछ विशेष योग – 
 यदि कुंडली में शनि मंगल का योग हो और शुभ प्रभाव से वंछित हो तो जीवन में चोट लगने और दुर्घटनाओं की स्थिति बार बार बनती है। शनि मंगल का योग यदि अष्टम भाव में बने तो अधिक हानिकारक होता है ऐसे व्यक्ति को वाहन बहुत सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। यदि कुंडली में शनि और मंगल का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब भी चोट आदि लगने की समस्या समय समय पर आती है। कुंडली में राहु, मंगल की युति भी दुर्घटनाओं को बार बार जन्म देती है यह योग अष्टम भाव में बनने पर बहुत समस्या देता है। यदि मंगल कुंडली के आठवें भाव में हो तो भी एक्सीडेंट आदि की घटनाएं बहुत सामने आती हैं। मंगल का नीच राशि (कर्क) में होना तथा मंगल केतु का योग भी बार बार दुर्घटनाओं का सामना कराता है। 
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जानिए जन्म कुंडली से दुर्घटना काल – 
 एक्सीडैंट की घटनाएं कुछ विशेष ग्रहस्थिति और दशाओं में बनती हैं--- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि व्यक्ति की कुंडली में मंगल जिस राशि में हो उस राशि में जब शनि गोचर करता है तो ऐसे में एक्सीडैंट की सम्भावना बनती हैं। कुंडली में शनि जिस राशि में हो उस राशि में मंगल गोचरवश जब आता है तब चोट आदि लगने की सम्भावना होती है। जब कुंडली में मंगल जिस राशि में हो उसमे राहु गोचर करे या राहु जिस राशि में कुंडली में स्थित हो उसमे मंगल गोचर करे तो भी एक्सीडैंट की स्थिति बनती है। जब जन्मकुंडली में दशावश राहु और मंगल का योग हो अर्थात राहु और मंगल की दशाएं एक साथ चल रही हों ( राहु में मंगल या मंगल में राहु ) तो भी एक्सीडेंट होने का योग बनता है ऐसे समय में वाहन चलाने में सतर्कता बरतनी चाहिए | =========================================================== 
जानिए आपकी जन्म कुंडली में दुर्घटना होने के योग--- 
 दुर्घटना का जिक्र आते ही जिन ग्रहों का सबसे पहले विचार करना चाहिए वे हैं शनि, राहु और मंगल यदि जन्मकुंडली में इनकी स्थिति अशुभ है (6, 8, 12 में) या ये नीच के हों या अशुभ नवांश में हों तो दुर्घटनाओं का सामना होना आम बात है। 
  1. शनि : ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि का प्रभाव प्राय: नसों व हड्डियों पर रहता है। शनि की खराब स्थिति में नसों में ऑक्सीजन की कमी व ‍हड्डियों में कैल्शियम की कमी होती जाती है अत: वाहन-मशीनरी से चोट लगना व चोट लगने पर हड्डियों में फ्रैक्चर होना आम बात है। यदि पैरों में बार-बार चोट लगे व हड्डी टूटे तो यह शनि की खराब स्थिति को दर्शाता है। 
  2.  राहु : राहु का प्रभाव दिमाग व आँखों पर रहता है। कमर से ऊपरी हिस्से पर ग्रह विशेष प्रभाव रखता है। राहु की प्रतिकूल स्थिति जीवन में आकस्मिकता लाती है। दुर्घटनाएँ, चोट-चपेट अचानक लगती है और इससे मनोविकार, अंधापन, लकवा आदि लगना राहु के लक्षण हैं। पानी, भूत-बाधा, टोना-टोटका आदि राहु के क्षेत्र में हैं। 
  3.  मंगल : ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मंगल हमारे शरीर में रक्त का प्रतिनिधि है। मंगल की अशुभ स्थिति से बार-बार सिर में चोट है। खेलते-दौड़ते समय गिरना आम बात है और इस स्थिति में छोटी से छोटी चोट से भी रक्त स्राव होता जाता है। रक्त संबंधी बीमारियाँ, मासिक धर्म में अत्यधिक रक्त स्राव भी खराब मंगल के लक्षण हैं। अस्त्र-शस्त्रों से दुर्घटना होना, आक्रमण का शिकार होना इससे होता है।

 क्या करें :
 मंगलवार का व्रत करें, मसूर की दाल का दान करें। उग्रता पर नियंत्रण रखें। मित्रों की संख्या बढ़ाएँ। मद्यपान व माँसाहार से परहेज करें। अपनी ऊर्जा को रचनात्मक दिशा दें।
 कब-कब होगी परेशानी : 
जब-जब इन ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा आएगी, तब-तब संबंधित दुर्घटनाओं के योग बनते हैं। इसके अलावा गोचर में इन ग्रहों के अशुभ स्थानों पर जाने पर, स्थान बदलते समय भी ऐसे कुयोग बनते हैं अत: इस समय का ध्यान रखकर संबंधित उपाय करना नितांत आवश्यक है। 
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जन्म कुंडली में आठवाँ भाव अथवा अष्टमेश, मंगल तथा राहु से पीड़ित होने पर दुर्घटना होने के योग बनते हैं. सारावली के अनुसार शनि, चंद्रमा और मंगल दूसरे, चतुर्थ व दसवें भाव में होने पर वाहन से गिरने पर बुरी दुर्घटना देते हैं. जन्म कुंडली में सूर्य तथा मंगल चतुर्थ भाव में पापी ग्रहों से दृष्ट होने पर दुर्घटना के योग बनते हैं. सूर्य दसवें भाव में और चतुर्थ भाव से मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तब दुर्घटना होने के योग बनते हैं. निर्बली लग्नेश और अष्टमेश की चतुर्थ भाव में युति हो रही हो तब वाहन से दुर्घटना होने की संभावना बनती है. लग्नेश कमजोर हो और षष्ठेश, अष्टमेश व मंगल के साथ हो तब गंभीर दुर्घटना के योग बनते हैं. जन्म कुंडली में लग्नेश कमजोर होकर अष्टमेश के साथ छठे भाव में राहु, केतु या शनि के साथ स्थित होता है तब गंभीर रुप से दुर्घटनाग्रस्त होने के योग बनते हैं. 
   जन्म कुंडली में आत्मकारक ग्रह पापी ग्रहों की युति में हो या पापकर्तरी में हो तब दुर्घटना होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली का अष्टमेश सर्प द्रेष्काण में स्थित होने पर वाहन से दुर्घटना के योग बनते हैं. जन्म कुंडली में यदि सूर्य तथा बृहस्पति पीड़ित अवस्था में स्थित हों और इन दोनो का ही संबंध त्रिक भाव के स्वामियों से बन रहा हो तब वाहन दुर्घटना अथवा हवाई दुर्घटना होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव तथा दशम भाव पीड़ित होने से व्यक्ति की गंभीर रुप से दुर्घटना होने की संभावना बनती है. 
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ऐसे बनते हैं घाव तथा चोट लगने के योग --- 
 यह मंगल की पीड़ित अवस्था के कारण होने की संभावना अधिक रहती है. जन्म कुंडली में यदि मंगल लग्न में हो और षष्ठेश भी लग्न में ही स्थित हो तब शरीर पर चोटादि लगने की संभावना अधिक होती है. जन्म कुंडली में मंगल पापी होकर आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर चोट लगने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में यदि मंगल, शनि और राहु की युति हो रही हो तब भी चोट अथवा घाव होने की संभावना बनती है. चंद्रमा दूसरे भाव में हो, मंगल चतुर्थ भाव में हो और सूर्य दसवें भाव में स्थित हो तब चोट लगने की संभावना बनती है. 
    जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित हो, आठवें भाव में शनि स्थित हो और दसवें भाव में चंद्रमा स्थित हो तब चोट लगने की अथवा घाव होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली के छठे भाव में मंगल तथा चंद्रमा की युति हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है. चंद्रमा तथा सूर्य जन्म कुंडली के तीसरे भाव में होने से भी चोट लगने की संभावना बनती है. कुंडली का लग्नेश तथा अष्टमेश शनि और राहु या केतु के साथ आठवें भाव में स्थित हो तब भी चोट लगने की संभावना बनती है. लग्नेश, चतुर्थेश तथा अष्टमेश की युति होने पर भी चोट लगने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली के लग्न में ही छठे भाव का स्वामी राहु या केतु के साथ स्थित हो. जन्म कुंडली के छठे अथवा बारहवें स्थान में शनि व मंगल की युति हो रही हो. जन्म कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो या लग्नेश की पापी ग्रह से युति हो और मंगल दृष्ट कर रहा हो. 
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30 नवंबर 2017 से आएगी कमी--- 
 ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री का कहना है कि 30 नवंबर से इन मामलों में कुछ कमी आ सकती है क्योंकि मंगल कन्या राशि से हटकर तुला में प्रवेश करेगा। हालांकि बहुत ज्यादा फर्क तो नहीं, लेकिन दुर्घटनाओं के मामले में राहत जरूर मिलेगी। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इन उपायों से होगा लाभ-- यदि आपकी कुंडली में उपरोक्त ग्रहस्थितियां बन रही हैं या बार बार दुर्घटनाओं का सामना हो रहा है तो यह उपाय श्रद्धा से करें लाभ होगा। .. ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि ग्रहों के इस मेल से बचने के लिए भगवान् हनुमान जी की आराधना करें। श्वान की सेवा करें। 
    ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यह शनि की बुरी दृष्टि से बचने का सबसे सरलतम किंतु स्बासे ज्यादा प्रभावशाली उपाय है। सूर्य को जल दें और सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करें। अधिक बेहतर है कि सूर्य गायत्री मंत्र से हवन करें। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि उपासना अवश्य करें। शनि के बीज मंत्र का कम से कम एक माला जाप करें (ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः)। इसके अलावा शनि उपवास कर सकते हैं, शनि चालीसा का पाठ कर सकते हैं और यदि संभव हो तो घर पर शनि शांति पाठ या शनि यज्ञ भी करवाया जाना फलदायी सिद्ध होगा। ये है मंत्र- ॐ भास्कराय विद्महे, महातेजाय धीमहि तन्नो सूर्य:प्रचोदयात्....

जानिए कैसे लोगों को शनिदेव बनाते है संपन्न और धनवान

Here-how-to-make-people-rich-with-Shani-जानिए कैसे  लोगों को शनिदेव बनाते है संपन्न और धनवानशनिदेव की अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण यह प्रकाशहीन हैं। इसी कारण लोग शनिदेव को अंधकारमयी, भावहीन, गुस्सैल, निर्दयी और उत्साहहीन भी मान बैठते हैं परंतु शनि ग्रह ईमानदार लोगों के लिए यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं। 
         शनि अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक हैं। शनि ही धन-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं। कहते हैं शनि देव पापी व्यक्तियों के लिए अत्यंत कष्टकारक हैं। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे जीवन पूरी तरह से डगमगा सकता है परंतु शनि कुछ लोगों के अत्यंत शुभ और श्रेष्ट फल देता है। 
 आइए जानते हैं शनिदेव कैसे लोगों को धनी बनाते है--- 
  1. जो लोग अपने हाथ-पांव के नाखून निरंतर अंतराल पर काटते हैं व नाखुनों में मैल नहीं जमने देते शनि उनका सैदेव कल्याण करते हैं। 
  2. जो लोग पौष माह में गरीबों को काले चने, काले तिल, उड़द, काले कपड़े आदि का नि:स्वार्थ दान करते हैं शनि उनसे प्रसन्न रहते हैं।
  3. जो लोग जेष्ठ माह में धूप से बचने के लिए काले छातों का दान करते हैं शनिदेव उन पर अपनी छत्र छाया बनाए रखते हैं। 
  4. जो लोग कुत्तों की सेवा करते हैं अथवा कुत्तों को भोजन देते हैं और उन्हें सताते नहीं हैं शनिदेव उन्हें कष्टों से मुक्ति देते है। 
  5. जो लोग नेत्रहीनों को राह दिखाकर उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं शनिदेव उनके लिए उन्नति के मार्ग खोलते हैं। 
  6. जो लोग शनिवार का उपवास रखकर अपने हिस्से का भोजन गरिबों को दान करते हैं शनि उनके भण्डार भरते हैं। 
  7. जो लोग मछली का सेवन नहीं करते तथा मछलियों को दाना डालते हैं शनिदेव उनसे सदैव प्रसन्न रहते हैं। 
  8. जो लोग रोज़ संपूर्ण स्नान कर स्वयं को साफ़ व पवित्र रखते हैं शनिदेव उन्हें कभी कष्ट नहीं देते। 
  9. जो लोग सफाई कर्मियों को सम्मान व आर्थिक अनुदान देते हैं शनिदेव उनको धन प्रदान करते हैं। 
  10. जो लोग मेहनतकश मजदूरों का हक नहीं मारते शनिदेव उन्हें कभी कष्ट नहीं देते। 
  11. जो लोग वृद्ध स्त्रियों को माता समान सम्मान देते हैं शनिदेव उनकी सहयता हेतु तत्पर रहते हैं। 
  12. जो लोग पीपल व बरगद का नियमित पूजन करते हैं निश्चित ही शनिदेव उनसे प्रसन्न रहते हैं। 
  13. जो लोग नियमित शिवलिंग का पूजन करते हैं शनिदेव उनका सदैव ध्यान रखते हैं। 
  14. जो लोग पितृ श्राद्ध कर कौए को भोजन देते हैं शनि खुश होकर उनके कष्ट हरते हैं। 
  15. जो लोग धर्म मार्ग से लक्ष्मी अर्जित करते हैं शनि उन्हें अटूट लक्ष्मी का वर देते हैं। 
  16. जो लोग असहाय वृद्धों को आर्थिक अनुदान देते हैं शनिदेव उनके भंडार भर देते हैं।
  17. जो लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं शनिदेव उनके रक्षक बन जाते हैं। 
  18. जो लोग विकलांगो की सहयता करते हैं शनि उनका सैदेव कल्याण करते हैं। 
  19. जो लोग शराब व मदपान से दूर रहते हैं शनिदेव उनसे सैदेव प्रसन्न रहते हैं। 
  20. जो लोग शाकाहार अपनाते हैं शनि उनका कुटुंब सहित कल्याण करते हैं। 
  21. जो लोग सातमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं शनि उनके भाग्य खोल देते हैं। 
  22. जो लोग ब्याजखोरी से दूर रहते हैं शनि उनकी सैदेव सहयता करते हैं।
  23. जो लोग कोढ़ियों की सेवा करते हैं शनि उनके सभी कष्ट हर लेते हैं।

जानिए धनु राशि में शनिदेव के आगमन का आपकी राशि पर प्रभाव

Know-your-zodiac-impact-of-the-arrival-of-Saturn-in-Sagittarius-जानिए धनु राशि में शनिदेव के आगमन का आपकी राशि पर प्रभावशनि देव, 26 जनवरी, 2017 को लगभग 21:34 बजे वृश्चिक राशि से धनु राशि में गोचर/प्रवेश करेगा/करने जा रहे है । धनु राशि के स्वामी देव गुरु बृहस्पति है , गोचर का प्रभाव ज्योतिष शास्त्र में चंद्र राशि पर आधारित होता है , राशियों के हिसाब से यह उतना अधिक सटीक नहीं होता है जितना वास्तविक प्रभाव आपकी व्यक्तिगत जन्मकुंडली में जन्म के समय ग्रहों के गोचर और ग्रहो के शुभ अशुभ पराभव पर निर्भर करता है। अतः आप अपनी जन्म कुंडली के आधार पर ही कोई उपाय करे।शनि की कुल दशा 19 वर्ष होती है और इसके अलावा साढ़ेसाती तथा दो ढैय्या का समय जोड़ा जाए तो शनि किसी के भी जीवन को लगभग 31 साल तक प्रभावित करता है। 
               शनि 30 वर्ष में उसी राशि में पुन: लौटता है। इसी लिए किसी के जीवन में तीन से अधिक बार साढ़ेसाती नहीं लगती। अक्सर एक व्यक्ति 3री साढ़ेसाती के आस पास परलोक चला जाता है। यही कारण है कि जीवन में अधिकतर उपाय शनि के ही किए जाते हैं। शनि को ग्रहों में सर्वोच्च न्यायाधीश कहा गया है जो अनुचित कार्य करने वालों को समय आने पर दंड देता है। शनि को सूर्य पुत्र भी कहा जाता है परंतु जब कुंडली में यह दोनों ग्रह ,एक ही भाव में हों या परस्पर दृष्टि संबंध हो तो अनिष्ट फल देते हैं। यह वह ग्रह है जो राजा को रंक बना देता है और जमीन से आसमान पर भी ले जाता है। यह शत्रु भी है और मित्र भी। शुक्र की राशि तुला में शनि उच्चस्थ होते हैं और मेष में नीचस्थ। जिस भाव में बैठते हैं उसका भला करते हैं परंतु 3री, 7वीं और 10वीं दृष्टि से अनिष्टता प्रदान करते हैं। कभी एक परिमाण से फलादेश का परिणाम नहीं देखा जाता। 
          ग्रहो का गोचर लिखते समय स्थान और देश का भी ध्यान रखना चाहिए इस समय हम शनि देव का गोचर भारत वर्ष के दिल्ली शहर से कर रहे है विभिन्न देशो में उसके आक्षांस और देशांतर को भी ध्यान में रखना चहिये जैसे भारत वर्ष में शनि देव का धनु राशि में गोचर 26 जनवरी 2017 को रात्रि 10 :40 बजे कर रहे है , साथ ही शनि देव धनु राशि में 6 अप्रैल 2017 को वक्री हो जायेगे जब कोई ग्रह वक्री होता है तो उसकी चाल उल्टी जो जाती है जिससे शनि देव का गोचर धनु राशि से वृश्चिक राशि में 21 जून 2017 को होगी ,वृश्चिक राशि में शनि देव 25 अगस्त 2017 को मार्गी होंगे और धनु राशि में पुनः प्रवेश 26 अक्टूबर 2017 को करेगे इसके उपरांत वह 24 जनवरी 2020 को धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेगे। शनि देव की चाल बहुत ही मंद गति से होती है धनु राशि में यह 2.5 साल रहने के बाद 24 जनवरी, 2020 को मकर राशि में प्रवेश करेगे ।
वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करने से मकर राशि के जातकों के लिए शनि की साढ़े साती प्रारम्भ हो जाएगी । वृश्चिक राशि वाले जातको के लिये यह अंतिम चरण की साढ़े साती होगी तथा तुला राशि वाले जातक साढ़े साती से मुक्त हो जायेंगे। शनि के धनु राशि मे आते ही कन्या राशि के जातको की लघु कल्याणि ढ्य्या आरम्भ होगी तथा वृष राशि वाले जातको की अष्ठम शनि की ढ्य्या आरम्भ हो जायेगी।
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रोग, शोक और संकटों को दूर करने वाले शनि देव का राशि परिवर्तन सभी राशि के जातकों को प्रभावित करेगा। ढैया और साढ़ेसाती से पीड़ित राशियों के जातकों के जीवन में हलचल मच सकती है। कहते हैं कि साढ़ेसाती के समय न्याय प्रिय ग्रह शनि व्यक्ति को उसके पूर्व जन्म व वर्तमान में किए गए शुभ और अशुभ कर्मों का फल देते हैं। इसलिए कुछ लोगों को यह समय बहुत ही सुखदायी तो कुछ के लिए बहुत ही कष्टदायी होता है। 
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क्या होती है शनि की साढ़ेसाती व शनि की ढैया---- 
आमतौर पर शनि एक राशि पर ढाई वर्ष तक रहते हैं। जिस राशि में शनि प्रवेश करते हैं उस राशि में और उससे पहले एवं बाद की राशि वाले व्यक्ति को अधिक प्रभावित करते हैं। शनि की इस स्थिति को साढ़ेसाती कहा जाता है। किसी व्यक्ति की राशि से शनि जब चौथे या आठवें घर में होते हैं तो उनकी ढैया होती है। साढ़ेसाती की तरह ढैया को भी कष्टकारी माना जाता है। ढैया कुल ढाई साल की होती है। 
 शनि की साढ़ेसाती व शनि की ढैया की शांति के उपाय--- 
पण्डित"विशाल" दयानन्द शास्त्री के अनुसार जिन राशि वालों के लिए शनि की ढैया या साढ़ेसाती चल रही हो उन्हें सुन्दरकांड, रामायण या हनुमान चालीसा का नित्य पाठ तथा शनि का व्रत करना चाहिए। शनिवार को प्रात:काल पीपल के वृक्ष में जलदान तथा सायंकाल दीपदान करना चाहिए। काले घोड़े की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुली में धारण करनी चाहिए। शनिवार का व्रत तथा शनि का दान करना चाहिए। 
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शनि की ढैय्या --- 
मेष राशि पर शनि का अष्टम ढैय्या,वही 2 नवम्बर से आरंभ है और लगभग अढ़ाई साल रहेगा। इस राशि के लोगों के खर्चे बढ़ सकते हैं। सिंह राशि में चतुर्थ ढैय्या शुरू हुआ है जो 26 अक्तूबर ,2017 तक रहेगा। कुल मिला कर तुला राशि की साढ़ेसाती की अवधि 9 सितम्बर,2009 से 26 अक्तूबर 2017 तक है। वृश्चिक में इसका प्रभाव 15 नवम्बर 2011 से आरंभ हुआ है और 24 जनवरी 2020 तक रहेगा। इसी प्रकार धनु राशि की साढ़ेसाती जो 2 नवम्बर 2014 से शुरु हुई है, वह 17 जनवरी 2023 तक रहेगी। 
          इन राशियों या इनसे संबंधित तिथियों के अलावा यदि कोई आपको साढ़ेसाती या ढैय्या के बारे कुछ और बताता है तो वह गलत है। 2017 वर्ष मे शनि का गोचर बहुत अस्थिर रहेने वाला है क्योकि यह कुछ समय के लिये वक्री हो कर पुनः वृश्चिक राशि मे आ जायेगा और दोबारा लगभग ऑक्तूबर तक मार्गी होकर धनु राशि मे प्रवेश करेगा । शनि का गोचर केवल चंद्र राशि से 3,6,11 भावो मे ही शुभ फल देता है इस प्रकार शनि के धनु राशि मे आने से कुम्भ ,वृष तथा तुला राशि के जातको को शुभ फल मिलने सम्भव है । 
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जानिए शनिदेश का प्रभाव --- 
शनि देव एक न्याय प्रिय ग्रह है ,शनि के नक्षत्र हैं,पुष्य,अनुराधा, और उत्तराभाद्रपद.यह दो राशियों मकर, और कुम्भ का स्वामी है। तुला राशि में २० अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के २० अंश प परमनीच है नीलम शनि का रत्न है।शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है। आपकी कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है। किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से अपनी जन्मकुंडली दिखा कर ही उपाय करे । भारतीय ज्योतिष में शनि को नैसर्गिक अशुभ ग्रह माना गया है। शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है। पाश्चात्य ज्योतिष भी है। 
        अगर व्यक्ति धार्मिक हो, उसके कर्म अच्छे हों तो शनि से उसे अनिष्ट फल कभी नहीं मिलेगा। शनि से अधर्मियों व अनाचारियों को ही दंड स्वरूप कष्ट मिलते हैं। शनि सूर्य,चन्द्र,मंगल का शत्रु है , बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार,कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है, रोग , शोक ,भय , दंड , न्याय , धन , कर्ज , दुःख , दारिद्र्य , सम्पन्नता और विपन्नता , असाध्य रोग , अत्यंत सज्जनता और दुर्दांत अपराधी , अति इमानदार और अत्यंत धोखेबाज इत्यादि का कारक शनि देव को माना गया है।
 ये होगा शनि देव का धनु राशि में गोचर का प्रभाव ---- 
शनि देव के धनु राशि में गोचर का देश दुनिया पर व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा , इस प्रभाव के तहत विभिन्न देशों के राजनीतिक हलकों, उच्च शिक्षा से जुड़े विभिन्न संस्थान, धर्म, धार्मिक स्थल, दुर्घटना , दैवीय आपदा के साथ राजनितिक उथल पुथल देखने को मिलेगी। जब गोचर शनि चंद्र लग्न से चैथे, सातवें और दसवें स्थान में जाता है, तो उसे कंटक शनि कहते है तब साधारण रूप से कंटक शनि मानसिक दुःख की वृद्धि करता है, जीवन को अव्यवस्थित बनाता है और इस कारण नाना प्रकार के दुःखों का सामना करवाता है। जब गोचर का शनि चंद्र लग्न से चैथे स्थान में होता है, तब जातक के निवास स्थान में अवश्य ही परिवर्तन होता है और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ जाता है।
         चंद्र लग्न से जब गोचर का शनि सातवें स्थान में होता है, तब जातक का परदेश वास होता है और यदि वह सप्तम स्थान पर चर राशि का हो, तो यह फल अवश्य ही होता है। चंद्र लग्न से यदि गोचर का शनि दसवें स्थान में होता है, तब जातक के व्यवसाय एवं नौकरी आदि में गड़बड़ी होती है और असफलताएं मिलती हैं। इस प्रकार कुंडली में स्थित अशुभ शनि के प्रभाव, गोचर शनि के दुष्प्रभाव तथा दशा-अंतर्दशाओं में होती है 
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जानिए किस राशि पर कट होगा प्रभाव शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का :- 
शनि साढ़े साती की गणना चंद्र राशि के अनुसार अर्थात जन्म के समय जिस राशि में चंद्रमा होता है उससे वर्तमान में अर्थात गोचर में शनि की स्थिति के अनुसार होती है अर्थात जन्म कालिक चंद्र राशि से गोचर भ्रमण के दौरान शनि जब द्वादश भाव में आता है तो “साढ़े साती” का प्रारंभ हो जाता है और चंद्र राशि तथा चन्द्र राशि से दूसरे भाव में जब तक रहता है तब साढ़े साती बनी रहती है और जब तीसरी राशि में प्रवेश करता है तो साढ़े साती समाप्त हो जाती है। इस समय शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव तुला , वृश्चिक और धनु राशि पर है। मकर राशि के जातकों के लिए “शनि साढ़े साती” प्रारम्भ हो जाएगी| तुला राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव अंतिम चरण है जो 26 जनवरी 2017 को समाप्त हो जाएगा। परंतु शनि की चाल वक्री व मार्गी होने के कारण तुला राशि वालों को इस प्रभाव से पूरी तरह मुक्ति 26 अक्तूबर 2017 को ही मिलेगी। तुला राशि की साढ़ेसाती की अवधि 9 सितम्बर,2009 से 26 अक्तूबर 2017 तक है |
 वृश्चिक राशि :- इस राशि पर साढ़ेसाती 15 नवम्बर 2011 को आरंभ हुई थी और 2 नवम्बर 2014 से दूसरा चरण आरंभ हो गया है। यहां शनि अपनी शत्रु राशि में नीच चंद्रमा के साथ रहेगा। वृश्चिक में इसका प्रभाव 15 नवम्बर 2011 से आरंभ हुआ है और 24 जनवरी 2020 तक रहेगा। धनु राशि वालों की साढ़ेसाती 2 नवंबर 2014 को आरंभ हुई है यानी इसका प्रथम चरण शुरू हो चुका है। धनु राशि की साढ़ेसाती जो 2 नवम्बर 2014 से शुरु हुई है, वह 17 जनवरी 2023 तक रहेगी। 
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जानिए किस राशि पर होगा शनि की ढैय्या का प्रभाव---- 
 वर्तमान में शनि देव की ढैया का प्रभाव मेष , सिंह राशि पर रहेगा , मेष राशि पर शनि का अष्टम ढैय्या,वही 2 नवम्बर से आरंभ है और लगभग अढ़ाई साल रहेगा। इस राशि के लोगों के खर्चे बढ़ सकते हैं। सिंह राशि में चतुर्थ ढैय्या शुरू हुआ है जो 26 अक्तूबर ,2017 तक रहेगा। 
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 जानिए शनि देव का धनु राशि में गोचर का सभी राशियों पर क्या होगा प्रभाव - 
 शनिदेव किसी के जीवन में क्या फल देगा, शुभ प्रभाव होंगे या अशुभ , इसका विवेचन, कुंडली के 12 भावों, 12 राशियों,27 नक्षत्रों, शनि की दृष्टि, उसकी गति, वक्री या मार्गी स्थिति, कारकत्व, जातक की दशा, गोचर , साढ़ेसाती या ढैय्या, ग्रह के नीच, उच्च या शत्रु होने या किसी अन्य ग्रह के साथ होने , ग्रह की डिग्री ,विशेष योगों, कुंडली के नवांश आदि के आधार पर किया जाता है, केवल एक सूत्र से नहीं। शुक्र की राशि तुला में शनि उच्चस्थ होते हैं और मेष में नीचस्थ। जिस भाव में बैठते हैं उसका भला करते हैं परंतु 3री, 7वीं और 10वीं दृष्टि से अनिष्टता प्रदान करते हैं। केवल राशियों के फलादेश से परिणाम नहीं देखा जाता क्योंकि कुल 12 रशिया है और 1 ही नाम से 12 करोड़ से अधिक लोग आते है कोई राजा है कोई रंग है कई महलो में रह रहे है कई खुले आसमान में कई लोग जेल में है तो कई हॉस्पिटलों में अपने कर्म भोग रहे है इसलिए ग्रहों का गोचरीय प्रभाव अपनी जन्म पत्रिका ही जाने। 
जानिए आपकी राशि पर कैसा होगा शनि का असर--- 
  1. मेष: इस राशि वालों के लिए पूरा साल उठापटक व अस्थिरता वाला रहेगा। स्वास्थ्य ठीक रहेगा, लेकिन नौकरी व व्यवसाय में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। 
  2. वृष: इस साल बीमारियां बार-बार परेशान करेंगी। बनते हुए काम में बार-बार रुकावटें आएंगी। नौकरी व व्यवसाय की स्थिति भी अच्छी नही रहेगी। 
  3. मिथुन: धन प्राप्ति के योग बनेंगे। खर्च भी ज्यादा होगा। घर-परिवार में सुख-शांति का माहौल होगा। परिवार व मित्रों से पूरा सहयोग मिलेगा। 
  4. कर्क: छठवें भाव का शनि मध्यम फल देगा। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। संतान व परिवार की ओर से परेशानी हो सकती है। बिजनेस बढ़ाने की योजना पर काम होगा। 
  5. सिंह: इस राशि के लिए उम्मीदों से भरा साल होगा। स्वास्थ्य अच्छा होगा। पुराने रोगों से मुक्ति मिलेगी। विवादों का निबटारा होगा। रुका हुआ पैसा मिल सकता है। 
  6. कन्या: कन्या राशि वालों के लिए यह साल चुनौतियों से भरा होगा। छोटे-छोटे कामों के लिए भी पूरी कोशिश करनी पड़ेगी। बैंक बैलेंस में कोई खास इजाफा नही होगा। 
  7. तुला: इस राशि वालों को शनि मिश्रित फल देगा। स्वास्थ्य ठीक रहेगा, लेकिन पैसों को लेकर उठापटक करनी पड़ सकती है। काम का दबाव ज्यादा रहेगा। 
  8. वृश्चिक: इस राशि के लिए यह साल कुछ खास नही रहेगा। नौकरी और बिजनेस में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। स्टूडेंट्स को उनकी मेहनत का फल मिलेगा। 
  9. धनु: हेल्थ को लेकर समस्याएं रहेंगी साथ ही बिजनेस में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। मेहनत के मुताबिक परिणाम नही मिलेंगे। फिजूलखर्ची पर नियंत्रण रखें। 
  10. मकर: व्यर्थ की यात्रा। बिजनेस में उतार-चढ़ाव। नया घर खरीदने का मन बन सकता है। दुश्मन नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। नौकरी में प्रमोशन के चांस बन सकते हैं। 
  11. कुंभ: आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी। इनकम के सोर्स बनेंगे। परिवार व दोस्तों के सहयोग से तरक्की मिल सकती है। परिवार में कोई शुभ प्रसंग आ सकता है। 
  12. मीन: बिजनेस में सफलता के योग। नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है। अजनबी लोगों पर भरोसा न करें। कोई अपना ही आपको धोखा दे सकता है। विरोधी परास्त होंगे। 
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इन उपायों से होगा लाभ--- 
जब भी जीवन में शनि की दशा हो या शनि अगोच्रस्थ हो तो सुन्दर काण्ड का पाठ.हनुमान और शनि चालिसा का पाठ, दशरथ कृत शनि स्त्रोत्र का पाठ ,शनि मन्दिर मे पूजन दान,तिल, सरसो तेल से शिवलिगँ का अभिषेक , महामृत्युन्जय जप ,शनि के मँत्र का जप,माँ काली ,कालरात्री की पूजा,कुता , कोऑ, कबुतर, चीटीँ और गाय को नियमित भोजन दे ,श्री कृष्ण की पूजन , ,अमावस्या की पूजा की पूजा दान,छाता या जूते का दान करना इनमें से कोई भी उपाय नियमित रूप से करने से शनि के अशुभ प्रभावो में कमी आती है ।

जानिए ज्योतिष और उदर रोग (पेटदर्द ) का सम्बन्ध (ज्योतिषीय कारण)

 Learn-Astrology-and-abdominal-disease-abdominal-pain-concerned-astrological-reasons-जानिए ज्योतिष और उदर रोग (पेटदर्द ) का सम्बन्ध (ज्योतिषीय कारण)ज्योतिष शास्त्र ग्रहों के चलन, उनके समागम या वियोग से सामान्य जन जीवन, पृथ्वी व मनुष्य जाति पर होने वाले शुभाशुभ प्रभावों का निर्धारण तथा उससे होने वाले परिवर्तनों (सुख-दुख) का ज्ञान कराता है। आकाशीय पिंडों, ग्रहों के परिचालन द्वारा उत्पन्न होने वाले योगों की गणना एवं उनसे होने वाले दुष्प्रभावों को गणना द्वारा प्रतिपादित करना इस शास्त्र का प्रमुख उद्देश्य है जिनमें दुखरूपी व्याधि, अनिष्ट कृत्य, किसी कार्य में विलंब तथा संखरूपी व्याधि परिहार, मांगलिक कार्य इत्यादि का संपादन करता है। ज्योतिष शास्त्र में अनेक प्रकार के रोगों का वर्णन किया गया है। आयुर्वेद के अनुसार कहा है कि ”शरीर व्याधि मन्दिर“ अर्थात शरीर रोगों का घर है। जब रोग होंगे तब रोग के प्रकार होंगे, किस अवस्था में कौन सा रोग होगा इसका वर्णन ज्योतिष के होरा शास्त्र में वर्णित है। षड्यन वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र जिसे वैदिक वांङमय के मतानुसार वेदों के नेत्र रूप में निर्देशित किया गया है। अर्थात बिना इस शास्त्र के ज्ञान के हमें काल ज्ञान नहीं हो सकता। यजुर्वेद के इस मंत्र द्वारा यह कामना की गयी है -
भद्रं कर्मेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य जत्राः। 
स्थिरैरजै तुष्टवा सस्तनूभित्र्यशेयहि देवहितं यदायुः।। 
            ज्योतिष शास्त्र में अनेक प्रकार के रोगों का वर्णन किया गया है। आयुर्वेद के अनुसार कहा है कि ”शरीर व्याधि मन्दिर“ अर्थात शरीर रोगों का घर है। जब रोग होंगे तब रोग के प्रकार होंगे, किस अवस्था में कौन सा रोग होगा इसका वर्णन ज्योतिष के होरा शास्त्र में वर्णित है। मनुष्य स्वस्थ व दीर्घ जीवनयापन करता है। इसके लिए आवश्यक है कि समय से पूर्व उचित निदान, यह तभी संभव हैं जब कारण के मूल का ज्ञान बहुत से रोगों के कारण ज्ञात हो जाते हैं पर बहुतों के कारण अंत तक नहीं ज्ञात होते। रोगों का संबंध पूर्व जन्म से भी होता है। आचार्य चरक लिखते हैंः कर्मजा व्याध्यः केचित दोषजा सन्ति चापरे। 
 त्रिषठाचार्य ने भी लिखा है- जन्मांतरम् कृतं पापं व्यधिरुपेण जायते। अर्थात कुछ व्याधियां पूर्व जन्मों के कर्मों के प्रभाव से होती हैं तथा कुछ व्याधियां शरीरस्थ दोषों (त्रिदोष-वात, पित्त, कफ) के प्रभाव से होती हैं। आचार्य कौटिल्य का कथन है कि सभी वस्तुओं का परित्याग करके सर्वप्रथम शरीर की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि शरीर नष्ट होने पर सबका नाश हो जाता है। महर्षि चरक ने भी उपनिषदों में वर्णित तीन ऐषणाओं के अतिरिक्त एक चैथी प्राणेप्रणा की बात कही है जिसका अर्थ है कि प्राण की रक्षा सर्वोपरि है। 
जैसा कि महाभारत के उद्योग पर्व में कहा गया है- मृतकल्पा हि रोगिणः। रोगस्तु दोष वैषम्यं दोष साम्यम रोगत। (अष्टांग हृदय 1/20) शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन तीन दोषों को संतुलित रखना पड़ता है क्योंकि सब रोगों का कारण त्रिदोष वैषम्य ही है। सभी रोगों के साक्षात कारण प्रकुपित दोष ही हैं । हमारे आचार्यों ने मनुष्य के प्रत्येक अंगों की स्थिति ज्ञात करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में काल पुरुष की कल्पना की है, काल पुरुष के अंगों में मेषादि राशियों का समावेश किया गया हैः काल पुरुष के अंग सिर मेष मुख वृष बांह मिथुन हृदय कर्क उदर सिंह कटि कन्या वस्ति तुला गर्दन वृश्चिक उरु धनु जानु मकर जंघा कुंभ चरण मीन जातक स्कंध में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को लग्नादि बारह भावों में विभक्त कर द्वादश भाव तनु, धन, सहज, सुहृत, सतु, रिपु, जाया, मृत्यु, धर्म, कर्म, आय व व्यय के नाम से जाने जाते हैं। इन बारह भावों में छठा भाव रिपु भाव है। इसे रोग भाव भी कहा जाता है। 
          छठे भाव से रोग व शत्रु दोनों का विचार किया जाता है। आठवें व बारहवें भाव तथा भावेश का भी संबंध रोग से होता है। पेट दर्द (उदर रोग विकार) उत्पत्र करने में भी शनि एक महत्वपुर्ण भुमिका निभाता हैं। सूर्य एवं चन्द्र को बदहजमी का कारक मानते हैं, जब सूर्य या चंद्र पर शनि का प्रभाव हो, चंद्र व बृहस्पति को यकृत का कारक भी माना जाता है। इस पर शनि का प्रभाव यकृत को कमजोर एवं निष्क्रिय प्रभावी बनाता हैं। पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067) के अनुसार बुध पर शनि के दुष्प्रभाव से आंतों में खराबी उत्पत्र होती हैं। वर्तमान में एक कष्ट कारक रोग एपेण्डीसाइटिस भी बृहस्पति पर शनि के अशुभ प्रभाव से देखा गया है। शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता हैं। जब शुक्र शनि द्वारा पीडि़त हो तो जातक को धातु सम्बंधी कष्ट होता है। जब शुक्र पेट का कारक होकर स्थित होगा तो पेट की धातुओं का क्षय शनि के प्रभाव से होगा।बहुत आश्चर्य का विषय है की पेट का रोग और ज्योतिष द्वारा समाधान कैसे संभव है , लेकिन यह हर प्रकार से संभव है ! 
          आज के इस युग में हर व्यक्ति उदर रोग से ग्रसित है ,किसी की समस्या ज्यादा , किसी की कम , लेकिन हर कोई परेशान है ,जो व्यक्ति ज्योतिष में रूचि या विश्वास रखते है उनके लिए यह एक जानकारी है की आप अपने कुंडली को देख कर मालूम कर सकते है की आप अपनी कुंडली के किस ग्रह से कब प्रभावित हो सकते है | ज्योतिष शास्त्र में उदर का स्थान कालपुरुष की कुंडली में उदर का स्थान पंचम भाव है जिसकी राशि सिंह है। सिंह राशि जो पंचम भाव का कारक हैः उससे प्रभावित अंग उदर है जिसमें मन्दाग्नि, गुल्म, पथरी, पाण्डुरोग, यकृत इत्यादि के रोग उत्पन्न होते हैं। अतिसार संग्रहणी, प्लीहा, उदरशूल, अरुचि या मुंह का स्वाद बिगड़ना, अजीर्ण इत्यादि। चिकित्सकों का विचार है कि वीर्य का देह में विशेष महत्व है, वीर्य के क्षीण होने पर वायु विकृत हो जाती है जिससे पाचन तंत्र बिगड़ जाता है तथा मन्दाग्नि, गैस या गुल्म सरीखे रोग पैदा होते हैं। उदर रोग के प्रमुख ज्योतिषीय कारण पराशर आचार्यों ने उदर रोग को निम्न प्रकार से रेखांकित किया है। षष्ठ भाव फलाध्याय में लिखते हैं कि षष्ठेश अपने घर, लग्न या अष्टम भाव में हो तो शरीर में व्रण (घाव) होता है। षष्ठ राशि में जो राशि हो उस राशि के आश्रित अंगों में रोग उत्पन्न होता है।
          राहु या केतु हो तो पेट में घाव होता है। जातकालंकार में लिखते हैं कि षष्ठेशे पापयुक्ते तनु निधन गते तनु निधनगते नु शरीरे व्रणास्युः जातक के जन्मांग चक्र में रोग का विचार मुख्यतः षष्ठ भाव, षष्ठेश, षष्ठ भावस्थ ग्रह, अष्टम भाव, अष्टमेश, अष्टम भावस्थ ग्रह, द्वादश भाव, द्वादशेश, द्वादशस्थ ग्रह, षष्ठेश से युक्त एवं दृष्ट ग्रहों द्वारा एवं मंगल ग्रह द्वारा किया जाता है। इसमें हमें ग्रह राशियों का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ये निर्बल, दोष युक्त या पुष्ट दोषयुक्त होकर रोगकारक, मारक या रोग निवारक बन जाते हैं। उदररोग के ज्योतिषीय कारण जो प्रमुख रूप से उदर रोग को निर्देशित करने में सहायक होते हैंः ƒ सूर्य, मंगल, शनि, राहु-केतु में से तीन ग्रहों का एक स्थान पर युति करना पेट में विकार देता है। ƒ नीच राशि का चंद्रमा लग्नस्थ होकर मंगल, शनि या राहु से दृष्ट हो तो उदर रोग देता है। ƒपंचम भाव का संबंध पाचन तंत्र, पाचन क्रिया से है। सूर्य को पाचन तंत्र का नियंत्रक माना जाता है। हमारे प्राचीन विद्वानों का मत है कि पाचन क्रिया में रश्मियों का महत्वपूर्ण योगदान है। जब भी सूर्य आभाहीन होता है उदर में गड़बड़ी देता है। ज्योतिष का नियम है- औषधि, मणि, मंत्राणां, ग्रह नक्षत्र तारिका। भाग्य काले भवेत्सिहि अभाग्यं निष्फलं भवेत्।। सत्य ही कहा गया है कि जहां भौतिक विज्ञान की सीमाएं समाप्त होती हैं वहीं से अध्यात्म विज्ञान की सीमाएं प्रारंभ होती हैं। 
 शनिकृत कुछ विशेष उदर रोग योगः- 
  •  1 कर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनिचंद्र से योग करें तो यकृत विकार के कारण पेट में गुल्म रोग होता है। 
  • 2 द्वितीय भाव में शनि होने पर संग्रहणी रोग होता हैं। इस रोग में उदरस्थ वायु के अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से बाहर मल के रुप में निकल जाता हैं। 
  • 3 सप्तम में शनि मंगल से युति करे एवं लग्रस्थ राहू बुध पर दृष्टि करे तब अतिसार रोग होता है। 
  • 4 मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में उदर मंे दर्द होता है। 
  • 5 सिंह राशि में शनि चंद्र की यूति या षष्ठ या द्वादश स्थान में शनि मंगल से युति करे या अष्टम में शनि व लग्र में चंद्र हो या मकर या कुंभ लग्रस्थ शनि पर पापग्रहों की दृष्टि उदर रोग कारक है। 
  • 6 कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति प्लीहा रोग कारक है। 

 बहुत आश्चर्य का विषय है की पेट का रोग और ज्योतिष द्वारा समाधान कैसे संभव है , लेकिन यह हर प्रकार से संभव है ! आज के इस युग में हर व्यक्ति उदर रोग से ग्रसित है ,किसी की समस्या ज्यादा , किसी की कम , लेकिन हर कोई परेशान है ,जो व्यक्ति ज्योतिष में रूचि या विश्वास रखते है उनके लिए यह एक जानकारी है की आप अपने कुंडली को देख कर मालूम कर सकते है की आप अपनी कुंडली के किस ग्रह से कब प्रभावित हो सकते है ! पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067) के अनुसार कुंडली में लगन में राहू और सप्तम स्थान में केतु हो तो व्यक्ति को लिवर में इन्फेक्शन होता है ! आठवे भाव में बुध सूर्य के साथ मकर राशि के हो के बैठा है तो निश्चित तोर पर उस व्यक्ति को पेशाब से सम्बंधित समस्या होती है जैसे किडनी में स्टोन या इन्फेक्शन होता है ! कुम्भ लगन में सूर्य हो तो वह व्यक्ति हमेशा एसिडिटी ,बदहजमी तथा पेट में तनाव रहता है ,लगन कुंडली के बारहवे भाव में सिंह राशि का केतु शनि हो तो बवासीर की समस्या तथा गुदा रोग होता है ,अगर बृहस्पति सप्तम या अष्टम भाव में हो तो पीठ तथा पैरो में दर्द देते है !
               कुंडली देख के तमाम उन समसयाओं का समधान हो सकता है जो देखने में तो कम लगता है लेकिन असधारण होता है !क्यो की हर ग्रह का प्रभाव का एक हिस्सा होता है ! और उस आधार पर किस ग्रह का प्रभाव किस अंग पर पड़ रहा है तथा उसका दुस्प्रभाव क्या होगा इसका अध्यन कर इनके रोगों से बचा जा सकता है ! उपचार कई तरीके से होता है जैसे ग्रहों की शान्ति , रत्न धारण कर ,दान तथा उपवास द्वारा हर रोग का उपचार संभव है ! उदर योग ज्योतिषीय दृष्टिकोण भी रोगों का कारण उदर रोग को माना जाता है। जब तक पाचन शक्ति अच्छी रहती है तब तक जातक का शरीर भी हृष्ट पुष्ट रहता है। पाचन शक्ति की प्रबलता में कंद मूल या प्याज से रोटी खाने वाला भी तरोताजा एवं हृष्ट पुष्ट दिखता है। वहीं पाचन शक्ति कमजोर हो, तो पंचमेवा का सेवन करने वाला भी अति दुर्बल हो जाता है। वास्तव में पाचन क्रिया का समाप्त होना ही मृत्यु समझा जाता है। पाचक रसों में विकृति आने पर शरीर पर रोगों का आक्रमण आसानी से होता है। 
         रोग दो प्रकार के माने जाते हैं- निज रोग जिसे शारीरिक एवं मानसिक में विभक्त किया गया है और आगंतुक रोग जिसमें दृष्टि निर्मित व अदृष्ट निर्मित रोग आते हंै। शारीरिक रोग शरीर में वात पित्त व कफ की कमी या अधिकता से होते हैं और मानसिक रोग भय, शोक तथा क्रोध के कारण। ये रोग अष्टम भाव में स्थित राशि व उसके स्वामी अष्टमस्थ ग्रह व अष्टम भाव पर दृष्टि कारक ग्रह से युति दृष्टि किसी ग्रह या भाव कारक से होने पर होते हैं। आगंतुक रोग में दृष्टि रोग घात के कारण होते हैं तो अदृष्ट रोग देवी देवताओं के प्रकोप के कारण। इन रोगों का विचार छठे भाव, भावेश, षष्ठस्थ ग्रह व षष्ठ भाव पर दृष्टि कारक ग्रहों के अनुसार किया जाता है। पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067) के अनुसार यदि जन्मांग में पंचम भाव, भावेश या कारक ग्रह का छठे भाव से सबंध हो, तो दोष विकृति के कारण रोग होता है। आगंतुक रोग होने पर जातक के लिए तंत्र मंत्र यंत्र का उपचार ही प्रभावी होगा। 
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ज्योतिष के अनुसार रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष पर पापग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप दृष्टि,पापग्रहों की राशि एवं नक्षत्र में उपस्थित होना, पापग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है। इन रोगकारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर रहने पर रोग की उत्पत्ति होती है। प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं भाव मानव शरीर के भिन्न-भिन्न अंगो का प्रतिनिधित्व करते है। चिकित्सकीय उपचार से राहत की बजाय परेशानी होती रहती है। उदर के कारक भाव के विषय में उत्तर कालमृत में कहा गया है। गम्भीर्यघनता रहस्यविनया वृतान्तसंलेखनं। क्षेमस्नेह प्रबन्ध काव्यरचना कार्यप्रवेशोदराः। 
           अर्थात् गंभीरता, दृढ़ता, रहस्य, विनय, वृत्तांत लेख, क्षेम, स्नेह, प्रबंध, काव्य रचना, कार्य प्रारंभ एवं उदर पंचम भाव के कारक हैं। प्रत्येक ग्रह उदर रोग देने में सक्षम है। लेकिन उदर व उदर व्याधि हेतु चंद्र ‘‘मुखकान्तिश्वेतवर्णोंदरा’’ एवं वृह ‘’पुत्र पौत्र जठर व्याधि द्विपात्सम्पदो’’ प्रमुख माने गए हैं। चंद्र एवं गुरु को यकृत का कारक भी मानते हैं। हमारे शरीर में यकृत एक महत्वपूर्ण अंग है। यकृ त से उत्पन्न पित्त से ही भोजन का पाचन होता है। यदि चंद्र व गुरु शुभ होकर कमजोर हों एवं पाप पीड़ित हो तो पित्त की कमी के कारण भोजन का पाचन सही नहीं रहेगा। किंतु उक्त दोनों ग्रह अशुभ होकर बली हों तो पित्त की अधिकता के कारण पाचन तंत्र विकृत हो जाएगा। फलतः उदर रोग दोनो स्थितियों में जटिल हो जाता है। जन्मांग में चंद्र व गुरु शुभ होकर बलवान हों तो जातक को शुभफल की प्राप्ति होती है। दूसरी तरफ इनकी शुभता से पाचन शक्ति व्यवस्थित रहती है। फलतः जातक का सर्वांगीण विकास होता है। उदर रोग के प्रमुख ज्योतिषीय योग- यदि लग्नेश, षष्ठेश व बुध एकत्र हों, तो जातक पित्त जनित रोग से और यदि लग्नेश, षष्ठेश व शनि एकत्र हो तो गैस व्याधि से पीड़ित रहता है। लग्नेश, षष्ठेश, बुध व शनि का चतुर्विध कोई संबंध बन रहा हो, तो पित्ताधिक्य व गैस व्याधि होती है अर्थात जातक एसिडिटी से ग्रस्त होता है जो आजकल आम है। मंगल लग्न में हो व षष्ठेश निर्बल हो, तो अजीर्ण और लग्न में पाप ग्रह व अष्टम में शनि हो तो कुक्षि में पीड़ा होती है।
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067 –मध्य प्रदेश) एवं 09024390067 –राजस्थान) के अनुसार
  1.  लग्न में पाप ग्रह राहु व केतु हों, तो इनकी दृष्टि पंचम पर होगी व अष्टमस्थ शनि की दृष्टि भी पंचम पर होगी। यदि इस स्थिति में गुरु भी पीड़ित हो, तो जातक एपेंण्डिसाइटिस से ग्रस्त होता है। 
  2. लग्नेश यदि शत्रु राशि या नीच राशि में हो, मंगल चैथे भाव में व शनि पापग्रह से दृष्ट हो, तो जातक उदर शूल से ग्रस्त होता है। 
  3. सूर्य व चंद्र छठे भाव में हो, तो वायु विकार से पाण्डु रोग और इनके साथ मंगल की युति हो, तो उदर शूल होता है। यदि सप्तम भाव में शुक्र पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो, तो जातक संग्रहणी रोग का शिकार होता है। 
  4. द्वितीय स्थान में शनि या राहु हो या कारकांश कुंडली में पंचम स्थान में केतु हो तो भी संग्रहणी रोग होता है। 
  5. लग्न में राहु व बुध एवं सप्तम स्थान में शनि व मंगल हों या लग्नेश व गुरु त्रिक भाव में हों, तो जातक अतिसार से ग्रस्त होता है। 
  6. लग्नेश व बुध या गुरु की युति त्रिक भाव में हो या पंचम भाव में नीच राशि में बुध या गुरु स्थित हो, तो जातक पित्त का रोगी होता है। 
  7.  षष्ठेश चंद्र पाप ग्रह के साथ हो या पंचम स्थान में शनि व चंद्र हों या लग्नेश व सप्तमेश चंद्र पर केवल पाप ग्रहों की दृष्टि हो या जन्मराशि व षष्ठेश केवल पापग्रहों से दृष्ट हों या सूर्य व मंगल के मध्य चंद्र हो व सूर्य मकर में हो, तो जातक प्लीहा रोग से ग्रस्त होता है। 
  8. छठे या बारहवें भाव में शनि व मंगल हों या सिंहस्थ चंद्र पाप पीड़ित हो या लाभेश तृतीय स्थान में हो या केंद्र त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक शूल रोग से ग्रस्त होता है। 
  9. सप्तम में राहु व केतु का होना या लग्न में चंद्रमा व अष्टम में शनि का होना भी उदर रोग का कारक है। 
  10.  जन्मांग में यदि पंचम भाव में शुभ ग्रह बली होकर स्थित हो, पंचमेश व पंचम कारक भी बली हो, तो जातक को उदर रोग सामान्यतः नहीं होता है। लेकिन पंचम भाव में पाप ग्रहों का होना पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि होना, पंचम भाव व पंचमेश का पाप कर्तरी प्रभाव में होना आदि उदर रोग के कारक हैं। 
  11. पाप ग्रहों का प्रभाव जैसे-जैसे पंचम भाव, पंचमेश व पंचम कारक पर बढ़ता जाएगा उदर रोग उतना ही जटिल होता जाएगा। अर्थात उदर रोगों के होने या उनसे मुक्ति में ग्रहों की भूमिका गोचर व दशाकाल के आधार पर निर्भर होती है। 

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भाव मंजरी के अनुसार- मेष राशि सिर में, वृष मुंह में , मिथुन छाती में, कर्क ह्नदय में, सिंह पेट में, कन्या कमर में, तुला बस्ति में अर्थात पेडू में, वृश्च्कि लिंग में , धनु जांघो में, मकर घुटनों में, कुम्भ पिंण्डली में तथा मीन राशि को पैरो में स्थान दिया गया है। राशियों के अनुसार ही नक्षत्रों को उन अंगो में स्थापित करने से कल्पिम मानव शरीराकृति बनती है।इन नक्षत्रों व राशियों को आधार मानकर ही शरीर के किसी अंग विशेष में रोग या कष्ट का पूर्वानुभान किया जा सकता है। शनि तमोगुणी ग्रह क्रुर एवं दयाहीन, लम्बे नाखुन एवं रूखे-सूखे बालों वाला, अधोमुखी, मंद गति वाला एवं आलसी ग्रह है। इसका आकार दुर्बल एवं आंखे अंदर की ओर धंसी हुई है। जहां सुख का कारण बृहस्पति को मानते है। तो दुःख का कारण शनि है। शनि एक पृथकत्ता कारक ग्रह है पृथकत्ता कारक ग्रह होने के नाते इसकी जन्मांग में जिस राशि एवं नक्षत्र से सम्बन्ध हो, उस अंग विशेष में कार्य से पृथकत्ता अर्थात बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैंै। 
            शनि को स्नायु एवं वात कारक ग्रह माना जाता है । नसों वा नाडियों में वात का संचरण शनि के द्वारा ही संचालित है। आयुर्वेद में भी तीन प्रकार के दोषों से रोगों की उत्पत्ति मानी गई है। ये तीन दोष वात, कफ व पित्त है। हमारे शरीर की समस्त आन्तरिक गतिविधियां वात अर्थात शनि के द्वारा ही संचालित होती है। आयुर्वेद शास्त्रों में भी कहा गया हैः- पित्त पंगु कफः पंगु पंगवो मल धातवः। वायुना यत्र नीयते तत्र गच्छन्ति मेघवत्।। अर्थात पित्त, कफ और मल व धातु सभी निष्क्रिय हैं। स्वयं ये गति नहीं कर सकते । शरीर में विद्यमान वायु ही इन्हें इधर से उधर ले जा सकती है। जिस प्रकार बादलों को वायु ले जाती है। यदि आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो वात ही सभी कार्य समपन्न करता है। इसी वात पर ज्योतिष शास्त्र शनि का नियंत्रण मानता है। शनि के अशुभ होने पर शरीरगत वायु का क्रम टूट जाता है। अशुभ शनि जिस राशि, नक्षत्र को पीडीत करेगा उसी अंग में वायु का संचार अनियंत्रित हो जायेगा, जिससे परिस्थिति अनुसार अनेक रोग जन्म ले सकते है। इसका आभास स्पष्ट है कि जीव-जन्तु जल के बिना तो कुछ काल तक जीवित रह सकते है, लेकिन बीना वायु के कुछ मिनट भी नहीं रहा जा सकता है। नैसर्गिक कुण्डली में शनि को दशम व एकादश भावों का प्रतिनिधि माना गया है। 
            इन भावो का पीडित होना घुटने के रोग , समस्त जोडों के रोग , हड्डी , मांसपेशियों के रोग, चर्च रोग, श्वेत कुष्ठ, अपस्मार, पिंडली में दर्द, दाये पैर, बाये कान व हाथ में रोग, स्नायु निर्बलता, हृदय रोग व पागलपन देता है। रोगनिवृति भी एकादश के प्रभाव में है उदरस्थ वायु में समायोजन से शनि पेट मज्जा को जहां शुभ होकर मजबुत बनाता है वहीं अशुभ होने पर इसमें निर्बलता लाता है। फलस्वरूप जातक की पाचन शक्ति में अनियमितता के कारण भोजन का सहीं पाचन नहीं है जो रस, धातु, मांस, अस्थि को कमजोर करता है। समस्त रोगों की जड पेट है। पाचन शक्ति मजबुत होकर प्याज-रोटी खाने वालो भी सुडौल दिखता है वहीं पंचमेवा खाने वाला बिना पाचन शक्ति के थका-हारा हुआ मरीज लगता है। मुख्य तौर पर शनि को वायु विकार का कारक मानते है जिससे अंग वक्रता, पक्षाघात, सांस लेने में परेशानी होती है। शनि का लौह धातु पर अधिकार है। शरीर में लौह तत्व की कमी होने पर एनीमिया, पीलिया रोग भी हो जाता है। अपने पृथकत्ता कारक प्रभाव से शनि अंग विशेष को घात-प्रतिघात द्वारा पृथक् कर देता है। इस प्रकार अचानक दुर्घटना से फे्रकच्र होना भी शनि का कार्य हो सकता है। 
            यदि इसे अन्य ग्रहो का भी थोडा प्रत्यक्ष सहयोग मिल जाये तो यह शरीर में कई रोगों को जन्म दे सकता है। जहां सभी ग्रह बलवान होने पर शुभ फलदायक माने जाते है, वहीं शनि दुःख का कारक होने से इसके विपरित फल माना है कि- आत्मादयो गगनगैं बलिभिर्बलक्तराः। दुर्बलैर्दुर्बलाः ज्ञेया विपरीत शनैः फलम्।। अर्थात कुण्डली में शनि की स्थिति अधिक विचारणीय है। इसका अशुभ होकर किसी भाव में उपस्थित होने उस भाव एवं राशि सम्बधित अंग में दुःख अर्थात रोग उत्पन्न करेगा। गोचर में भी शनि एक राशि में सर्वाधिक समय तक रहता है जिससे उस अंग-विशेष की कार्यशीलता में परिवर्तन आना रोग को न्यौता देना है। कुछ विशेष योगों में शनि भिन्न-भिन्न रोग देता है। 
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067) के अनुसार शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है.जो लोग अनुचित बातों के द्वारा अपनी चलाने की कोशिश करते हैं,जो बात समाज के हित में नही होती है और उसको मान्यता देने की कोशिश करते है,अहम के कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते हैं,अनुचित विषमता,अथवा अस्वभाविक समता को आश्रय देते हैं… शनि उनको ही पीडित करता है.शनि हमसे कुपित न हो,उससे पहले ही हमे समझ लेना चाहिये,कि हम कहीं अन्याय तो नही कर रहे हैं,या अनावश्यक विषमता का साथ तो नही दे रहे हैं.यह तपकारक ग्रह है,अर्थात तप करने से शरीर परिपक्व होता है,शनि का रंग गहरा नीला होता है,शनि ग्रह से निरंतर गहरे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर गिरती रहती हैं.शरी में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है.सूर्य पुत्र शनि दुख दायक,शूद्र वर्ण,तामस प्रकृति,वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है. पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067) के अनुसार शनि सीमा ग्रह कहलाता है,क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है,वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है.जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना,शनि का विशेष गुण है.यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है.विपत्ति,कष्ट,निर्धनता,देने के साथ साथ बहुत बडा गुरु तथा शिक्षक भी है,जब तक शनि की सीमा से प्राणी बाहर नही होता है,संसार में उन्नति सम्भव नही है.शनि जब तक जातक को पीडित करता है,तो चारों तरफ़ तबाही मचा देता है.जातक को कोई भी रास्ता चलने के लिये नही मिलता है.करोडपति को भी खाकपति बना देना इसकी सिफ़्त है. अच्छे और शुभ कर्मों बाले जातकों का उच्च होकर उनके भाग्य को बढाता है,जो भी धन या संपत्ति जातक कमाता है,उसे सदुपयोग मे लगाता है. 
               पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067 ) के अनुसार शरीर में वात रोग हो जाने के कारण शरीर फ़ूल जाता है,और हाथ पैर काम नही करते हैं,गुदा में मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके सही रूप से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से गुदा मार्ग में मुलायम भाग में जख्म हो जाते हैं,और भगन्दर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं.एकान्त वास रहने के कारण से सीलन और नमी के कारण गठिया जैसे रोग हो जाते हैं,हाथ पैर के जोडों मे वात की ठण्डक भर जाने से गांठों के रोग पैदा हो जाते हैं,शरीर के जोडों में सूजन आने से दर्द के मारे जातक को पग पग पर कठिनाई होती है. दिमागी सोचों के कारण लगातार नशों के खिंचाव के कारण स्नायु में दुर्बलता आजाती है.अधिक सोचने के कारण और घर परिवार के अन्दर क्लेश होने से विभिन्न प्रकार से नशे और मादक पदार्थ लेने की आदत पड जाती है,अधिकतर बीडी सिगरेट और तम्बाकू के सेवन से क्षय रोग हो जाता है… अधिकतर अधिक तामसी पदार्थ लेने से कैंसर जैसे रोग भी हो जाते हैं.पेट के अन्दर मल जमा रहने के कारण आंतों के अन्दर मल चिपक जाता है,और आंतो मे छाले होने से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं.शनि ऐसे रोगों को देकर जो दुष्ट कर्म जातक के द्वारा किये गये होते हैं,उन कर्मों का भुगतान करता है.जैसा जातक ने कर्म किया है उसका पूरा पूरा भुगतान करना ही शनिदेव का कार्य है. =============================================== 
इन उपायों-मंत्रो से होगा रोग निवारण– 
 शनि ग्रह की पीडा से निवारण के लिये पाठ,पूजा,स्तोत्र,मंत्र, और गायत्री आदि को लिख रहा हूँ,जो काफ़ी लाभकारी सिद्ध होंगे.नित्य १०८ पाथ करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होगा. 
 विनियोग:-
शन्नो देवीति मंत्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:,आपो देवता,शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:. नीचे लिखे गये कोष्ठकों के अन्गों को उंगलियों से छुयें. अथ देहान्गन्यास:-शन्नो शिरसि (सिर),देवी: ललाटे (माथा).अभिषटय मुखे (मुख),आपो कण्ठे (कण्ठ),भवन्तु ह्रदये (ह्रदय),पीतये नाभौ (नाभि),शं कट्याम (कमर),यो: ऊर्वो: (छाती),अभि जान्वो: (घुटने),स्त्रवन्तु गुल्फ़यो: (गुल्फ़),न: पादयो: (पैर). अथ करन्यास:-शन्नो देवी: अंगुष्ठाभ्याम नम:.अभिष्टये तर्ज्जनीभ्याम नम:.आपो भवन्तु मध्यमाभ्याम नम:.पीतये अनामिकाभ्याम नम:.शंय्योरभि कनिष्ठिकाभ्याम नम:.स्त्रवन्तु न: करतलकरपृष्ठाभ्याम नम:. 
अथ ह्रदयादिन्यास:-शन्नो देवी ह्रदयाय नम:.अभिष्टये शिरसे स्वाहा.आपो भवन्तु शिखायै वषट.पीतये कवचाय हुँ.(दोनो कन्धे).शंय्योरभि नेत्रत्राय वौषट.स्त्रवन्तु न: अस्त्राय फ़ट. 
ध्यानम:-नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृद्ध्स्थितस्त्रासकरो धनुश्मान.चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाअस्तु मह्यं वरदोअल्पगामी.. शनि गायत्री:-औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात. 
वेद मंत्र:- औम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:. जप मंत्र :- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: । नित्य २३००० जाप प्रतिदिन.
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इन रोगों-बिमारियों का कारण भी शनि देव/गृह ही होते हैं—–
  1.  ===उन्माद नाम का रोग शनि की देन है,जब दिमाग में सोचने विचारने की शक्ति का नाश हो जाता है,जो व्यक्ति करता जा रहा है,उसे ही करता चला जाता है,उसे यह पता नही है कि वह जो कर रहा है,उससे उसके साथ परिवार वालों के प्रति बुरा हो रहा है,या भला हो रहा है,संसार के लोगों के प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं,उसे पता नही होता,सभी को एक लकडी से हांकने वाली बात उसके जीवन में मिलती है,वह क्या खा रहा है,उसका उसे पता नही है कि खाने के बाद क्या होगा,जानवरों को मारना,मानव वध करने में नही हिचकना,शराब और मांस का लगातार प्रयोग करना,जहां भी रहना आतंक मचाये रहना,जो भी सगे सम्बन्धी हैं,उनके प्रति हमेशा चिन्ता देते रहना आदि उन्माद नाम के रोग के लक्षण है.
  2.  ====वात रोग का अर्थ है वायु वाले रोग,जो लोग बिना कुछ अच्छा खाये पिये फ़ूलते चले जाते है,शरीर में वायु कुपित हो जाती है,उठना बैठना दूभर हो जाता है,शनि यह रोग देकर जातक को एक जगह पटक देता है,यह रोग लगातार सट्टा,जुआ,लाटरी,घुडदौड और अन्य तुरत पैसा बनाने वाले कामों को करने वाले लोगों मे अधिक देखा जाता है.किसी भी इस तरह के काम करते वक्त व्यक्ति लम्बी सांस खींचता है,उस लम्बी सांस के अन्दर जो हारने या जीतने की चाहत रखने पर ठंडी वायु होती है वह शरीर के अन्दर ही रुक जाती है,और अंगों के अन्दर भरती रहती है.अनितिक काम करने वालों और अनाचार काम करने वालों के प्रति भी इस तरह के लक्षण देखे गये है. 
  3.  ====भगन्दर रोग गुदा मे घाव या न जाने वाले फ़ोडे के रूप में होता है.अधिक चिन्ता करने से यह रोग अधिक मात्रा में होता देखा गया है.चिन्ता करने से जो भी खाया जाता है,वह आंतों में जमा होता रहता है,पचता नही है,और चिन्ता करने से उवासी लगातार छोडने से शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है,मल गांठों के रूप मे आमाशय से बाहर कडा होकर गुदा मार्ग से जब बाहर निकलता है तो लौह पिण्ड की भांति गुदा के छेद की मुलायम दीवाल को फ़ाडता हुआ निकलता है,लगातार मल का इसी तरह से निकलने पर पहले से पैदा हुए घाव ठीक नही हो पाते हैं,और इतना अधिक संक्रमण हो जाता है,कि किसी प्रकार की एन्टीबायटिक काम नही कर पाती है. 
  4.  ====गठिया रोग शनि की ही देन है.शीलन भरे स्थानों का निवास,चोरी और डकैती आदि करने वाले लोग अधिकतर इसी तरह का स्थान चुनते है,चिन्ताओं के कारण एकान्त बन्द जगह पर पडे रहना,अनैतिक रूप से संभोग करना,कृत्रिम रूप से हवा में अपने वीर्य को स्खलित करना,हस्त मैथुन,गुदा मैथुन,कृत्रिम साधनो से उंगली और लकडी,प्लास्टिक,आदि से यौनि को लगातार खुजलाते रहना,शरीर में जितने भी जोड हैं,रज या वीर्य स्खलित होने के समय वे भयंकर रूप से उत्तेजित हो जाते हैं.और हवा को अपने अन्दर सोख कर जोडों के अन्दर मैद नामक तत्व को खत्म कर देते हैं,हड्डी के अन्दर जो सबल तत्व होता है,जिसे शरीर का तेज भी कहते हैं,धीरे धीरे खत्म हो जाता है,और जातक के जोडों के अन्दर सूजन पैदा होने के बाद जातक को उठने बैठने और रोज के कामों को करने में भयंकर परेशानी उठानी पडती है,इस रोग को देकर शनि जातक को अपने द्वारा किये गये अधिक वासना के दुष्परिणामों की सजा को भुगतवाता है. 
  5.  =====स्नायु रोग के कारण शरीर की नशें पूरी तरह से अपना काम नही कर पाती हैं,गले के पीछे से दाहिनी तरफ़ से दिमाग को लगातार धोने के लिये शरीर पानी भेजता है,और बायीं तरफ़ से वह गन्दा पानी शरीर के अन्दर साफ़ होने के लिये जाता है,इस दिमागी सफ़ाई वाले पानी के अन्दर अवरोध होने के कारण दिमाग की गन्दगी साफ़ नही हो पाती है,और व्यक्ति जैसा दिमागी पानी है,उसी तरह से अपने मन को सोचने मे लगा लेता है,इस कारण से जातक में दिमागी दुर्बलता आ जाती है,वह आंखों के अन्दर कमजोरी महसूस करता है,सिर की पीडा,किसी भी बात का विचार करते ही मूर्छा आजाना मिर्गी,हिस्टीरिया,उत्तेजना,भूत का खेलने लग जाना आदि इसी कारण से ही पैदा होता है.इस रोग का कारक भी शनि है, 
  6.  ===पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067 ) के अनुसार अगर लगातार शनि के बीज मंत्र का जाप जातक से करवाया जाय,और उडद जो शनि का अनाज है,की दाल का प्रयोग करवाया जाय,रोटी मे चने का प्रयोग किया जाय,लोहे के बर्तन में खाना खाया जाये,तो इस रोग से मुक्ति मिल जाती है. 
  7. ===इन रोगों के अलावा पेट के रोग,जंघाओं के रोग,टीबी,कैंसर आदि रोग भी शनि की देन है. ———————————————————————————-

 उदर रोग का एक महत्व पूर्ण प्रयोग — 
 इस साधना को करने से से पेट की तमाम बिमारिओ से निज़ात पाई जा सकती है | बद हज्मी, पेट गैस ,दर्द और आव का पूर्ण इलाज हो जाता है | इसे ग्रहन काल ,दीपावली और होली आदि शुभ महूरतों में कभी भी सिद्ध किया जा सकता है | आप दिन या रात में कभी भी कर सकते है | इस मंत्र को १०८ वार जप कर सिद्ध कर ले प्रयोग के वक़्त ७ वार पानी पे मन्त्र पढ़ फुक मारे और रोगी को पिला दे जल्द ही फ़ायदा होगा | 
 साबर मन्त्र — || ॐ नमो अदेस गुरु को शियाम बरत शियाम गुरु पर्वत में बड़ बड़ में कुआ कुआ में तीन सुआ कोन कोन सुआ वाई सुआ छर सुआ पीड़ सुआ भाज भाज रे झरावे यती हनुमत मार करेगा भसमंत फुरो मन्त्र इश्वरो वाचा || 
 आधा सिर दर्द — आधा सिर दर्द और माई ग्रेन एक बहुत बड़ी समस्या है | उस के लिए एक महत्व पूर्ण मन्त्र दे रहा हू | इसे भी ग्रहन काल दीपावली आदि पे उपर वाले तरीके से सिद्ध कर ले | प्रयोग के वक़्त एक छोटी नमक की डली ले कर उस पर ७ वार मन्त्र पढ़े और पानी में घोल कर माथे पे लगादे आधे सिर की दर्द फोरन बंद हो जाएगी | 
 साबर मन्त्र :- को करता कुडू करता बाट का घाट का हांक देता पवन बंदना योगीराज अचल सचल || 
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शनि की जडी बूटियां—– 
बिच्छू बूटी की जड या शमी जिसे छोंकरा भी कहते है की जड शनिवार को पुष्य नक्षत्र में काले धागे में पुरुष और स्त्री दोनो ही दाहिने हाथ की भुजा में बान्धने से शनि के कुप्रभावों में कमी आना शुरु हो जाता है.
 शनि सम्बन्धी दान पुण्य—– 
पुष्य,अनुराधा,और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों के समय में शनि पीडा के निमित्त स्वयं के वजन के बराबर के चने,काले कपडे,जामुन के फ़ल,काले उडद,काली गाय,गोमेद,काले जूते,तिल,भैंस,लोहा,तेल,नीलम,कुलथी,काले फ़ूल,कस्तूरी सोना आदि दान की वस्तुओं शनि के निमित्त दान की जाती हैं. 
शनि सम्बन्धी वस्तुओं की दानोपचार विधि—— 
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, (मोब.–09669290067के अनुसार जो जातक शनि से सम्बन्धित दान करना चाहता हो वह उपरोक्त लिखे नक्षत्रों को भली भांति देख कर,और समझ कर अथवा किसी समझदार ज्योतिषी से पूंछ कर ही दान को करे.शनि वाले नक्शत्र के दिन किसी योग्य ब्राहमण को अपने घर पर बुलाये.चरण पखारकर आसन दे,और सुरुचि पूर्ण भोजन करावे,और भोजन के बाद जैसी भी श्रद्धा हो दक्षिणा दे.फ़िर ब्राहमण के दाहिने हाथ में मौली (कलावा) बांधे,तिलक लगावे.जिसे दान देना है,वह अपने हाथ में दान देने वाली वस्तुयें लेवे,जैसे अनाज का दान करना है,तो कुछ दाने उस अनाज के हाथ में लेकर कुछ चावल,फ़ूल,मुद्रा लेकर ब्राहमण से संकल्प पढावे,और कहे कि शनि ग्रह की पीडा के निवार्णार्थ ग्रह कृपा पूर्ण रूपेण प्राप्तयर्थम अहम तुला दानम ब्राहमण का नाम ले और गोत्र का नाम बुलवाये,अनाज या दान सामग्री के ऊपर अपना हाथ तीन बार घुमाकर अथवा अपने ऊपर तीन बार घुमाकर ब्राहमण का हाथ दान सामग्री के ऊपर रखवाकर ब्राहमण के हाथ में समस्त सामग्री छोड देनी चाहिये.इसके बाद ब्राहमण को दक्षिणा सादर विदा करे.जब ग्रह चारों तरफ़ से जातक को घेर ले,कोई उपाय न सूझे,कोई मदद करने के लिये सामने न आये,मंत्र जाप करने की इच्छायें भी समाप्त हो गयीं हों,तो उस समय दान करने से राहत मिलनी आरम्भ हो जाती है.सबसे बडा लाभ यह होता है,कि जातक के अन्दर भगवान भक्ति की भावना का उदय होना चालू हो जाता है और वह मंत्र आदि का जाप चालू कर देता है.जो भी ग्रह प्रतिकूल होते हैं वे अनुकूल होने लगते हैं.जातक की स्थिति में सुधार चालू हो जाता है.और फ़िर से नया जीवन जीने की चाहत पनपने लगती है.और जो शक्तियां चली गयीं होती हैं वे वापस आकर सहायता करने लगती है | 
क्या करें उपाय-- किसी अनुभवी ज्योतिषीे या हस्तरेखा विशेषज्ञ से सलाह लेकर विधिपूर्वक मूंगा रत्न धारण करने से भी पेट के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। 
 इसके अतिरिक्त प्राकृतिक चिकित्सा के कुछ घरेलू उपाय इस प्रकार हैं-- रात को दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पीना चाहिए। एक चुटकी छोटी हर्र गर्म पानी में मिलाकर पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है। जीरा तथा सेंधा नमक पीसकर गर्म पानी के साथ खाने से भूख में कमी, पेट फूलने, दस्त, कब्ज और खट्टी डकारों से मुक्ति मिलती है। 
 एक गिलास गर्म पानी में दो चम्मच शहद और एक नींबू का रस डालकर पीने से अधिक चर्बी व मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है। एक गिलास पानी में पांच ग्राम फिटकरी घोलकर पीने से हैजे में लाभ होता है। रात को सोने के पहले दूध में मुनक्का उबालकर पीने से कब्ज से छुटकारा मिलता है। यदि समय रहते किसी योग्य हस्त रेखा विशेषज्ञ अथवा अनुभवी विद्वान् ज्योतिषी से सलाह लेकर उक्त उपाय किए जाएं, तो पेट के रोगों से रक्षा हो सकती है।
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