
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं जैसे कालसर्प योग, पितृदोष, नाड़ीदोष, गणदोष, चाण्डालदोष, ग्रहणयोग, मंगलदोष या मांगलिक दोष आदि। इनमें मंगल दोष एक ऐसा दोष है जिसकी वजह से व्यक्ति को विवाह संबंधी परेशानियों, रक्त संबंधी बीमारियों और भूमि-भवन के सुख में कमियां रहती हैं।
विवाह सम्बंधों में आजकल मंगलीक शब्द एक प्रकार से भय तथा अमंगल का सूचक बन गया है. परन्तू यहाँ यह जानना आवश्यक है की प्रत्येक मंगली जातक, विवाह के लिए अयोग्य होता है यह कहना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा . मंगली दोष का नाम सुनते ही वर और कन्या के अभिभावक सतर्क हो जाते है,विवाह सम्बन्धो के लिये मंगलिक शब्द एक प्रकार से भय अथा अमंगल का सूचक बन गया है,परन्तु प्रत्येक मंगली जातक विवाह के अयोग्य नही होता है,सामान्यत: मंगलीक दिखाई पडने वाली जन्म पत्रियां भी ग्रहों की स्थिति तथा द्रिष्टि के कारण दोष रहित हो जाती हैसामान्यतः जो कुण्डली प्रथम द्रष्टी में मंगलीक प्रतीत होती है वे जन्म कुण्डलिया भी ग्रहों की स्थिति तथा दृष्टि के कारण दोष रहित होंती है. इसलिए जन्म कुण्डली का बारीकी से अध्यन अति आवश्यक है .शुभ ग्रह एक भी यदि केंद्र में हो तो सर्वारिष्ट भंग योग बना देता है।
शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार पूर्ण संतुष्ट हों अपने पारिवारिक संबंध के कारण तो भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए।
ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें।
गोलिया मंगल 'पगड़ी मंगल' तथा चुनड़ी मंगल : जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।
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कैसे बनता है मांगलिक दोष.???
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम या चतुर्थ या सप्तम या अष्टम या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक मानी जाती है। हांलाकि मांगलिक योग हर स्थिति में अशुभ नहीं होता है। कुछ लोगों के लिए यह योग शुभ फल देने वाला भी होता है।
जिन लोगों की कुंडली मांगलिक होती है उन्हें प्रति मंगलवार मंगलदेव के निमित्त विशेष पूजन करना चाहिए। मंगलदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं जैसे लाल मसूर की दाल, लाल कपड़े का दान करना चाहिए।
आजकल भारत ही नही विश्व मे भी मंगली दोष के परिहार के उपाय पूंछे जाने लगे हैं। जो लोग भली भांति मंगली दोष से पीडित है और उन्होने अगर मंगली व्यक्ति को ही अपना सहचर नही बनाया है तो उनकी जिन्दगियां नर्क के समान बन गयीं है,यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। जन्म कुन्डली के अनुसार अगर मंगल लगन में है,मंगल दूसरे भाव में है,मंगल अगर चौथे भाव में है,मंगल अगर अष्टम भाव में है,मंगल अगर बारहवें भाव में है तो मंगली दोष लग जाता है। मंगली दोष हमेशा प्रभावी नही रहता है,मंगल अगर किसी खराब ग्रह जैसे राहु केतु या शनि से पीडित हो रहा हो तो मंगली दोष अधिक परेशान करता है,अगर वही मंगल अगर किसी प्रकार से गुरु या चन्द्र से प्रभावित हो जाता है तो मंगल साफ़ और शुद्ध होकर पूजा पाठ और सामाजिक मान्यता में अपना नाम और धन कमाने में सफ़ल रहता है,इसलिये मंगल को समझने के लिये मंगल का रूप समझना बहुत जरूरी है। मंगल पति की कुन्डली में उसके खून का कारक होता है,उसकी शक्ति जो पौरुषता के रूप में जानी जाती है के रूप में होता है,मंगल भाइयों के रूप में भी जाना जाता है,और मंगल अगर कैरियर का बखान करता है तो वह शनि के साथ मिलकर डाक्टरी,इन्जीनियरिंग,रक्षा सेवा और जमीनी मिट्टी को पकाने के काम,जमीनी धातुओं को गलाने और उनसे व्यवसाय करने वाले काम,भवन निर्माता और रत्नों आदि की कटाई के लिये लगाये जाने वाले उद्योगों के रूप में भी जाना जाता है।
जानिए लगन का मंगल का प्रभाव--
जन्म समय के अनुसार लगन में मंगल के विद्यमान होने पर जातक का दिमाग गर्म रहने वाली बात पायी जाती है,लगन शरीर में मस्तिष्क का कारक है,मस्तिष्क के अन्दर गर्मी रहने जातक को जो भी करना होता है वह तामसी रूप से करता है,शादी के बाद शरीर का शुक्र (रज और वीर्य) जो बाल्यकाल से जमा रहता है वह खत्म होने लगता है शरीर की ताकत रज या वीर्य के द्वारा ही सम्भव है,और शुक्र ही मंगल को (खून की गर्मी) को साधे रहने में सहायक माना जाता है,लेकिन रज या वीर्य के कम होने से शरीर के अन्दर का खून मस्तिष्क में जल्दी जल्दी चढने उतरने लगता है,जातक को जरा सी बात पर चिढचिढापन आने लगता है,इन कारणों से पत्नी से मारपीट या पति की बातों को कुछ भी महत्व नही देने के कारण परिवाव में विघटन शुरु हो जाता है,यह मंगल सीधे तरीके से अपनी द्रिष्टियों से चौथे भाव यानी सुखों में (लगन से चौथा भाव) सहचर के कार्यों में सप्तम से दसवां भाव),सहचर के शरीर को (लगन से सप्तम),सहचर के धन और कुटुम्ब ( सहचर के दूसरे भाव) को अपने कन्ट्रोल में रखना चाहता है,ज्योतिष में मंगल की भूमिका एक सेनापति के रूप में दी गयी है,और जातक उपरोक्त कारकों को अपने बस में रखने की कोशिश करता है,जातक सहचर के कुटुम्ब और सहचर के भौतिक धन को अपना अपमान समझता है (लगन से अष्टम सहचर का कुटुम्ब और भौतिक धन तथा जातक का अपमान मृत्यु जान जोखिम और गुप्त रूप से प्रयोग करने वाला स्थान).इन कारणों के अलावा जिन जातकों के मंगल पर राहु के द्वारा असर दिया जाता है तो जातक के खून के अन्दर और प्रेसर बढ जाता है,और उसके अन्दर इस मंगल के कारण दिमाग को और अधिक सुन्न करने के लिये जातक तामसी कारकों को लेना शुरु कर देता है,दवाइयों की मात्रा बढ जाती है,राहु के असर से जातक के खून के अन्दर कैमिकल मिल जाते है जिनके द्वारा उसे कुछ करना होता है और वह कुछ करने लगता है.मंगल के अन्दर शनि की द्रिष्टि होने से जातक का खून जमने लगता है,और खून के सिर में जमने के कारण जातक को ब्रेन हेमरेज या दिमागी नसों का फ़टना आम बात मानी जाती है,जातक किसी भी पारिवारिक व्यवस्था को केवल कसाई वृत्ति से देखने लगता है,अक्सर इन कारणों के कारण ही जातक की बुद्धि समय पर काम नही कर पाती है और आजकल के भौतिक युग में एक्सीडेंट और सिर की चोटों का रूप मिलता है,जातक के सिर के अन्दर शनि की ठंडक और मंगल की गर्मी के धीरे धीरे ठंडे होने के कारण जातक शादी के बाद से ही कार्यों से दूर होता जाता है,मंगल पर अगर केतु का असर होता है तो जातक का खून निगेटिव विचारों की तरफ़ भागता है उसे लाख समझाया जाये कि यह काम हो जायेगा,तो वह अजीब अजीब से उदाहरण देना शुरु कर देता है अमुक का काम नही हुआ था,अमुक के काम में फ़ला बाधा आ गयी थी,उसे अधिक से अधिक सहारे की जरूरत पडती है,शादी सम्बन्ध का जो फ़ल जातक के सहचर को मिलना चाहिये उनसे वह दूर होता रहता है,और कारणों के अन्दर सहचर के अन्दर जातक के प्रति बिलकुल नकारात्मक प्रभाव शुरु हो जाते है,या तो जातक का सहचर किसी व्यभिचार के अन्दर अपना मन लगा लेता है अथवा वह अपने को अपमान की जिन्दगी नही जीने के कारण आत्महत्या की तरफ़ अग्रसर होता चला जाता है,इसी प्रकार से मंगल पर अगर सूर्य की द्रिष्टि होती है तो जातक के अन्दर दोहरी अहम की मात्रा बढ जाती है और जातक किसी को कुछ नही समझता है इसके चलते सहचर के अन्दर धीरे धीरे नकारात्मक स्थिति पैदा हो जाती है जातक या तो जीवन भर उस अहम को हजम करता रहता है अथवा किसी भी तरह से जातक से कोर्ट केश या समाज के द्वारा तलाक ले लेता है,इसी प्रकार से अन्य कारण भी माने जाते है।
जानिए चतुर्थ भाव में मंगल का प्रभाव---
कुन्डली से चौथा भाव सुखों का भाव है,इसी भाव से मानसिक विचारों को देखा जाता है,माता के लिये और रहने वाले मकान के लिये भी इसी भाव से जाना जाता है,यही भाव वाहनों के लिये और यही भाव पानी तथा पानी वाले साधनों के लिये माना जाता है,घर के अन्दर नींद निकालने का भाव भी चौथा है.सहचर के भाव से यह भाव कर्म का भाव होता है,जब जातक एक चौथे भाव में मंगल होता है तो जातक का स्वभाव चिढचिढा होता है वह जानपहिचान वाले लोगों से ही लडता रहता है,जातक के निवास स्थान में इसी मंगल के कारण लोग कुत्ते बिल्ली की तरह झगडा करने वाले होते है,हर व्यक्ति उस जातक के घर का अपने अपने तर्क को ताकत से देना चाहता है,अक्सर वाहन चलाते वक्त साथ में चलने वाले वाहनों के प्रति आगे जाने की होड भी इसी मंगल वाले लोग करते है,और जरा सी चूक होने के साथ ही या तो सीधे अस्पताल जाते है या फ़िर वाहन को क्षतिग्रस्त करते हैं। सहचर के कार्य भी तमतमाहट से भरे होते है,जातक की माता सहचर के कार्यों से हमेशा रुष्ट रहती है,जातक के शरीर में पानी की कमी होती है,वह अपने सहचर को कन्ट्रोल में रखना चाहता है,अपने पिता के कार्यों में दखल देने वाला और बडे भाई तथा दोस्तों के साथ सीधे रूप में प्रतिद्वंदी के रूप में सामने आता है,सहचर के परिवार वालों से भी वह उसी प्रकार से व्यवहार करता है जैसे कोई सेनापति अपने जवानों को हमेशा सेल्यूट मारने के लिये विवश करता है,जातक को घर वालों से अधिक बाहर वालों से अधिक मोह होता है और जातक का स्वभाव सहचर के लिये,शरीर,मन,और शिक्षा के प्रति भी रुष्ट रहता है। मंगल के चौथे भाव में होने का एक मतलब और होता है कि जातक का दिल शरबत की तरह मीठा होता है,और वह जातक को जरा जरा सी बातों के अन्दर चिपकन पैदा कर देता है,उसे हर कोई पी जाना चाहता है।
जानिए मंगल का सप्तम में प्रभाव----
मंगल का सप्तम में होना पति या पत्नी के लिये हानिकारक माना जाता है,उसका कारण होता है कि पति या पत्नी के बीच की दूरिया केवल इसलिये हो जाती है क्योंकि पति या पत्नी के परिवार वाले जिसके अन्दर माता या पिता को यह मंगल जलन या गुस्सा देता है,जब भी कोई बात बनती है तो पति या पत्नी के लिये सोचने लायक हो जाती है,और अक्सर पारिवारिक मामलों के कारण रिस्ते खराब हो जाते है। पति की कुंडली में सप्तम भाव मे मंगल होने से पति का झुकाव अक्सर सेक्स के मामलों में कई महिलाओं के साथ हो जाता है,और पति के कामों के अन्दर काम भी उसी प्रकार के होते है जिनसे पति को महिलाओं के सानिध्य मे आना पडता है। पति के अन्दर अधिक गर्मी के कारण किसी भी प्रकार की जाने वाली बात को धधकते हुये अंगारे की तरफ़ मारा जाता है,जिससे पत्नी का ह्रदय बातों को सुनकर विदीर्ण हो जाता है,अक्सर वह मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती है,उससे न तो पति को छोडा जा सकता है और ना ही ग्रहण किया जा सकता है,पति की माता और पिता को अधिक परेशानी हो जाती है,माता के अन्दर कितनी ही बुराइयां पत्नी के अन्दर दिखाई देने लगती है,वह बात बात में पत्नी को ताने मारने लगती है,और घर के अन्दर इतना क्लेश बढ जाता है कि पिता के लिये असहनीय हो जाता है,या तो पिता ही घर छोड कर चला जाता है,अथवा वह कोर्ट केश आदि में चला जाता है,इस प्रकार की बातों के कारण पत्नी के परिवार वाले सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये पत्नी को अपने साथ ले जाते है। पति की दूसरी शादी होती है,और दूसरी शादी का सम्बन्ध अक्सर कुंडली के दूसरे भाव से सातवें और ग्यारहवें भाव से होने के कारण दूसरी पत्नी का परिवार पति के लिये चुनौती भरा हो जाता है,और पति के लिये दूसरी पत्नी के द्वारा उसके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के कारण वह धीरे धीरे अपने कार्यों से अपने व्यवहार से पत्नी से दूरियां बनाना शुरु कर देता है,और एक दिन ऐसा आता है कि दूसरी पत्नी पति पर उसी तरह से शासन करने लगती है जिस प्रकार से एक नौकर से मालिक व्यवहार करता है,जब भी कोई बात होती है तो पत्नी अपने बच्चों के द्वारा पति को प्रताणित करवाती है,पति को मजबूरी से मंगल की उम्र निकल जाने के कारण सब कुछ सुनना पडता है।
जानिए अष्टम भाव के मंगल का प्रभाव----
लगन से आठवा मंगल अक्सर पति या पत्नी के लिये सबसे छोटी संतान होने के लिये इशारा करता है,अगर वह छोटी संतान नही होती है तो उससे छोटे भाई या बहिन के लिये कम से कम ढाई साल का अन्तर जरूर होता है। आठवां मंगल अक्सर केवल सेक्स के लिये स्त्री सम्बन्धों की चाहत रखता है,वह बडे भाई तथा छोटे भाई बहिनों के लिये मारक होता है,उसका प्रेम केवल धन और कुटुम्ब की सम्पत्ति से होता है,वह अपनी चाहत के लिये परिवार का नाश भी कर सकता है,अष्टम मंगल वाला पति या पत्नी अपने परिवार के लिये और ससुराल खान्दान की सामाजिक स्थिति को बरबाद करने के लिये अपना महत्वपूर्ण कार्य करता है। तामसिक खानपान और खून के गाढे होने के कारण तथा लो ब्लड प्रेसर होने के कारण नकारात्मक भाव हमेशा सामने होते है,पति या पत्नी शादी के बाद कडक भाषा का प्रयोग करने लगते है,अथवा अस्पताली कारणों के घेरे मे आजाते है,अधिकतर मामलों में दवाइयों के लिये अथवा पुलिस या अन्य प्रकार के चक्करों में व्यक्ति का जीवन लगा रहता है,धन के मामले में अक्सर इस मंगल वाला अपहरण चालाकी या कूटनीति का सहारा लेकर कोई भी काम करता है।
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शास्त्रों के अनुसार मंगल दोष का निवारण मध्यप्रदेश के उज्जैन में ही हो सकता है। अन्य किसी स्थान पर नहीं। उज्जैन ही मंगल देव का जन्म स्थान है और मंगल के सभी दोषों का निवारण यहीं किए जाने की मान्यता है। मंगलदेव के निमित्त भात पूजा की जाती है। जिससे मंगल दोषों की शांति होती है।यह पूजा अंगारेश्वर महादेव नमक स्थान पर संपन्न होती हैं जो की उज्जैन (मध्यप्रदेश) रेलवे स्टेशन से लगभग 06 किलोमीटर दूर हैं...
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मंगल दोष : कारण और निवारण(क्या करें जब कुंडली में हो मंगल दोष)----
जिस जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली आदि में मंगल ग्रह, लग्न से लग्न में (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भावों में से कहीं भी स्थित हो, तो उसे मांगलिक कहते हैं।
गोलिया मंगल 'पगड़ी मंगल' तथा चुनड़ी मंगल : जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।
मांगलिक कुंडली का मिलान :----
वर, कन्या दोनों की कुंडली ही मांगलिक हों तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है। एक सादी एवं एक कुंडली मांगलिक नहीं होना चाहिए।
मंगल-दोष निवारण :------
मांगलिक कुंडली के सामने मंगल वाले स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों में पाप ग्रह हों तो दोष भंग हो जाता है। उसे फिर मंगली दोष रहित माना जाता है तथा केंद्र में चंद्रमा 1, 4, 7, 10वें भाव में हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है। शुभ ग्रह एक भी यदि केंद्र में हो तो सर्वारिष्ट भंग योग बना देता है।
शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार पूर्ण संतुष्ट हों अपने पारिवारिक संबंध के कारण तो भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए।
ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें।
मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्यादि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।
विशेष :---- विशेषकर जो मांगलिक हैं उन्हें इसकी पूजा अवश्य करना चाहिए। चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल यंत्र मांगलिकों को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है।
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ऐसे हो जाता हैं म्ंगलीदोष का परिहारः---
1 . जन्मकुण्डली के प्रथम , द्वितीय , चतुर्थ , सप्तम, अष्टम , एकादश् तथा द्वादश् इनमें से किसी भी भाव में मंगल बैठा हो तो वह वर वधू का विघटन कराता है परन्तु इन भावों में बैठा हुआ मंगल यदि स्वक्षेत्री हो तो दोषकारक नहीं होता.
2 .यदि जन्मकुण्डली के प्रथम भाव (लग्न) में मंगल मेष राषि का हो , द्वादश भाव में धनु राषि का हो चतुर्थ भाव में वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मीन राशि का हो तथा अष्टम भाव में कुम्भ को हो तो मंगली दोष नहीं लगता.
3 .यदि जन्मकुण्डली के सप्तम , लग्न (प्रथम ) , चतुर्थ , अष्टम अथवा द्वादश भाव में शनि बैठा हो तो मंगली दोष नहीं रहता अर्थात पहले वर्णन किए गये मंगली दोष वाले भावों – 1/2/4/7/8/11/12 में मंगल के साथ ही यदि बृहस्पति अथवा चन्द्रमा भी बैठा हो अथवा इन भावों में मंगल बैठा हो परन्तु केन्द्र अर्थात 1/4/7/10 भावों में चन्द्रमा बैठा हो तो मंगली – दोष दूर हो जाता है.
4 .केन्द्र और त्रिकोण भावों में यदि शुभग्रह हो तथा तृतीय , षष्ठ एवं एकादष भावों में पापग्रह हो तथा सप्तमभाव का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो तो मंगली दोष नहीं लगता .वर तथा कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में यदि मंगल शनि अथवा कोई अन्य पापग्रह एक जैसी स्थिति में बैठे हों तो मंगली दोष नष्ट हो जाता है.
5 .यदि वर कन्या दोनो की जन्मकुण्डली के समान भावों में मंगल अथवा वैसे ही कोई पापग्रह बैठे हो तो मंगली दोष नहीं लगता. ऐसा विवाह शुभप्रद ,दीर्घायुष्य देने वाला तथा पुत्र पौत्रदायक होता है.
6 .यदि अनिष्ठ भावस्थ मंगल वक्री , नीच राशिस्थ (कर्क का) अथवा शुत्रक्षेत्री (मिथुन अथवा कन्या राषि का ) अथवा अस्तंगत हो तो वह अनिष्ट कारक नहीं होता.
7 .जन्मकुण्डली में मंगल यदि द्वितीय भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि का हो द्वादष भाव में वृष अथवा कर्क राशि का हो चतुर्थभाव में में मेष अथवा वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मकर अथवा कर्क राशि का हो एवं अष्टम भाव में धनु अथवा मीन राशि का हो , इनके अतिरिक्त किसी भी अनिष्ट स्थान में कुम्भ अथवा सिंह राशि का हो तो ऐसे में मंगल का दोष नहीं लगता.
8 .जिसकी जन्मकुण्डली के पंचम, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम अथवा द्वादश स्थान में मंगल बैठा हो उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए , परन्तु यदि वह मंगल , बुध और गुरू से युक्त हो अथवा इन ग्रहों के द्वारा दृष्ट हो तो दोष का परिहार हो जाता है.
9 .शुभ ग्रहों से संबंधित मंगल अशुभकारक नहीं होता . कर्क लग्न में स्थित मंगल कभी भी दोषी नहीं होता. यदि मंगल अपनी नीच राशि अथवा राशि शुत्र राशि (3/6) का हो अथवा अस्तंगत हो तो वह शुभ अशुभ कोई फल नहीं देता.
11 .मंगली दोष वाली कन्या मंगली दोष वाले वर को देने से मंगली दोष नहीं लगता तथा कोई अनिष्ट भी नहीं होता. ऐसा संबंध दाम्पत्य सुख की वृध्दि भी करता है.
12 .यदि वर कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में लग्र, चंद्रमा अथवा शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम एवं द्वादष इन छः स्थानों में से किसी भी एक भाव में मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो (अर्थात वर की कुण्डली में जहां बैठा हो , वधू की कुण्डली में भी उसी जगह पर बैठा हो) तो मंगल दोष नहीं रहता तथा ऐसे स्त्री पुरूष का दाम्पत्य- जीवन चिरस्थायी होता है , साथ ही धन धान्य पुत्र पौत्रादि की अभिवृध्दि भी होती है. परन्तु वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्मकुण्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो (दूसरे की न हो ) तो उसका सर्वथा विपरीत -फल समझाना चाहिए अर्थात वह स्थिति दोषपूर्ण होगी . यदि मंगल अशुभ भावों में स्थित हो तो विवाह नहीं करना चाहिए , पंरतु यदि बहुत गुण मिलते हो तो तथा वर – कन्या दोनों ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ रहता है.
13 .कन्या की कुण्डली में मंगल दोष है और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है.
14 . यदि जन्मांग में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है.
15. मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है.
16 . कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है.
17 . लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है.
18 . मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त होता है.
19 . आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है. ऐसा कहा जाता है किन्तु अनुभव में आया है कि मंगल अपना कुप्रभाव प्रकट करता ही है.
20 . आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है.
21 . कुछ ज्योतिर्विद कहते हैं कि मंगल गुरु से युत या दृष्ट हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है किन्तु आधुनिक शोध के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुरु की राशि में संस्थित मंगल अत्यंत कष्टकारक है, मंगल दोष से दूषित जन्मांगों का जन्मपत्री मिलान करके मंगल दोष परिहार जहां तक संभव हो करके विवाह करें तो दाम्पत्य जीवन सुखद होता है. वृश्चिक राशि में न्यून किन्तु मेष राशि का मंगल प्रबल घातक होता है. कन्या के माता-पिता को घबराना नहीं चाहिए. हमारे धर्मशास्त्रों ने व्रतानुष्ठान, मंत्र प्रयोग द्वारा मंगल दोष को शांत करने का उपाय बताये गए है
22. यदि मंगल चतुर्थ अथवा सप्तम भावस्थ हो तथा क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो एवं इन भावों में मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है. किन्तु भगवान रामजी की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव में उच्च के मंगल ने राजयोग तो दिया किन्तु सीताजी से वियोग भी हुआ,जबकि मंगल पर गुरु की दृष्टि थी.
23. कुण्डली मिलान में यदि मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मांग में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है.
24. चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है.
25. द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है.
26. वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है.
27.ऐसा कहा जाता है कि आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है। आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है। यदि मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
28.कुण्डली मिलान में यदि मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मकुंडली में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
29.द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है।
30.ऐसी मान्यता अमूमन प्रचलन में है की जिस कन्या की जन्मकुंडली में मंगल दोष होता है, उसका विवाह मंगल दोष से ग्रसित वर से किया जाय तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। कन्या की कुण्डली में मंगल दोष हो और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है।
31.यदि जन्मकुंडली में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है।
32.कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है। लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है। मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
33.यदि वर -कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में लग्र, चंद्रमा अथवा शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम एवं द्वादष – इन छः स्थानों में से किसी भी एक भाव में मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो (अर्थात वर की कुण्डली में जहां बैठा हो , वधू की कुण्डली में भी उसी जगह पर बैठा हो) तो मंगल दोष नहीं रहता तथा ऐसे स्त्री – पुरूष का दाम्पत्य- जीवन चिरस्थायी होता है , साथ ही धन धान्य पुत्र – पौत्रादि की अभिवृध्दि भी होती है। परन्तु वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्मकुण्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो (दूसरे की न हो ) तो उसका सर्वथा विपरीत -फल समझाना चाहिए अर्थात वह स्थिति दोषपूर्ण होगी । यदि मंगल अशुभ भावों में स्थित हो तो विवाह नहीं करना चाहिए , पंरतु यदि बहुत गुण मिलते हो तो तथा वर – कन्या दोनों ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ रहता है।
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मंगल दोष ज्योतिष के अनुसार वह स्थिति है जब मंगल ग्रह वैदिक लग्न कुंडली के अनुसार 1, 4, 7, 8 या 12 वें घर में होता है। इस स्थिति में पैदा हुआ व्यक्ति मांगलिक होता है। कुछ अंधविश्वासी लोगों द्वारा माना जाता है कि यह स्थिति शादी के लिए विनाशकारी हो सकती है, इससे असुविधा,रिश्तों में तनाव हो सकता है, अलगाव और तलाक के लिए अग्रणी है। और कुछ मामलों में यह पति या पत्नी की असामयिक मौत का कारण मानी जाती है। इस परिस्थिति के लिए मंगल ग्रह की प्रकृति को जिम्मेदार ठहराया गया है। यदि दो मांगलिक शादी कर रहे हैं, तब एक दूसरे की ग्रहदशा का नकारात्मक प्रभाव रद्द किया जा सकता हैं। हालांकि वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह अकेला ऐसा ग्रह नहीं है, जो संबंधों को प्रभावित करता है। इन प्रभावों को समग्र ज्योतिष संगतता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
एक धारणा यह है कि एक एकल मांगलिक शादी के नकारात्मक परिणामों को रद्द किया जा सकता है। अगर मांगलिक पहले एक कुंभ विवाह करे जिसमें मांगलिक पहले एक केले के पेड़, एक पीपल के पेड़, या विष्णु की एक मूर्ति के साथ विवाह करे। कुछ का मानना है कि केवल एक मांगलिक का अन्य मांगलिक के साथ विवाह होना चाहिये।क्योंकि दो नकारात्मक एक दूसरे को रद्द करके एक सकारात्मक प्रभाव बनाते है। यद्यपि ऐसी पूजा है जो कि मांगलिक और गैर-मांगलिक के एक दूसरे से शादी करने के लिए अनुमति का निर्माण करती है। व्यक्तियों की एक बढ़ती हुई संख्या जीवन साथी के चयन के दौरान वैज्ञानिक अवधारणाओं पर जोर दे रही हैं इसके साक्ष्य आपको आनलाइन विवाह ब्लाग से मिल सकते है।
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किन परिस्थितियों के तहत मंगल दोष दोष नहीं माना जाता हैं?
यदि मंगल कर्क राशि में नीच घर में हो।
यदि मंगल मिथुन या कन्या राशि के दुश्मन घर में हो।
यदि मंगल सूर्य के पास अस्तंगत।
यदि मंगल मेष राशि के पहले घर में हो।
यदि मंगल वृश्चिक के चौथे घर में हो।
यदि मंगल मकर राशि के सातवें घर में हो।
यदि मंगल सिंह राशि के आठवें घर में हो।
यदि मंगल धनु राशि के बारहवें घर में हो।
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मंगल से प्रभावित होते हैं मंगली----
ज्योतिष के अनुसार मंगली लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है। यदि मंगल शुभ हो तो वह मंगली लोगों को मालामाल बना देता है। मंगली व्यक्ति अपने जीवन साथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मंगली जीवन साथी ही पूरा कर सकता है। इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।
कौन होते हैं मंगली?
कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं। इन्हीं दोषों में से एक है मंगल दोष। यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मंगली कहलाता है। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 8, 12 वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मंगली होता है।
मंगल के प्रभाव के कारण ऐसे लोग क्रोधी स्वभाव के होते हैं। ज्योतिष के अनुसार मंगली व्यक्ति की शादी मंगली से ही होना चाहिए। यदि मंगल अशुभ प्रभाव देने वाला है तो इसके दुष्प्रभाव से कई क्षेत्रों में हानि प्राप्त होती है। भूमि से संबंधित कार्य करने वालों को मंगल ग्रह की विशेष कृपा की आवश्यकता है।
मंगल देव की कृपा के बिना कोई व्यक्ति भी भूमि संबंधी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। मंगल से प्रभावित व्यक्ति अपनी धुन का पक्का होता है और किसी भी कार्य को बहुत अच्छे से पूर्ण करता है।
हमारे शरीर में सभी ग्रहों का अलग-अलग निवास स्थान बताया गया है। ज्योतिष के अनुसार मंगल ग्रह हमारे रक्त में निवास करता है।
मंगली लोगों की खास बातें----
मंगली होने का विशेष गुण यह होता है कि मंगली कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाता है। कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं। नेतृत्व की क्षमता उनमें जन्मजात होती है।
ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परंतु जब मिलते हैं तो पूर्णत: संबंध को निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है। परंतु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं। गलत के आगे झुकना इनको पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभाषक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में यह विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं। विपरित लिंग के लिए यह विशेष संवेदनशील रहते हैं, तथा उनसे कुछ विशेष आशा रखते हैं। इसी कारण मंगली कुंडली वालों का विवाह मंगली से ही किया जाता है।
ग्रहों का सेनापति है मंगल----
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए हैं जो कुंडली में अलग-अलग स्थितियों के अनुसार हमारा जीवन निर्धारित करते हैं। हमें जो भी सुख-दुख, खुशियां और सफलताएं या असफलताएं प्राप्त होती हैं, वह सभी ग्रहों की स्थिति के अनुसार मिलती है। इन नौ ग्रहों का सेनापति है मंगल ग्रह। मंगल ग्रह से ही संबंधित होते है मंगल दोष। मंगल दोष ही व्यक्ति को मंगली बनाता है।
पाप ग्रह है मंगल---
मंगल ग्रह को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिष में मंगल को अनुशासन प्रिय, घोर स्वाभिमानी, अत्यधिक कठोर माना गया है। सामान्यत: कठोरता दुख देने वाली ही होती है। मंगल की कठोरता के कारण ही इसे पाप ग्रह माना जाता है। मंगलदेव भूमि पुत्र हैं और यह परम मातृ भक्त हैं। इसी वजह से माता का सम्मान करने वाले सभी पुत्रों को विशेष फल प्रदान करते हैं। मंगल बुरे कार्य करने वाले लोगों को बहुत बुरे फल प्रदान करता है।
मंगल के प्रभाव----
मंगल से प्रभावित कुंडली को दोषपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला होता है उसका जीवन परेशानियों में व्यतीत होता है। अशुभ मंगल के प्रभाव की वजह से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं। साथ ही, मंगल के कारण संतान से दुख मिलता है, वैवाहिक जीवन परेशानियों भरा होता है, साहस नहीं होता, हमेशा तनाव बना रहता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ज्यादा अशुभ प्रभाव देने वाला है तो वह बहुत कठिनाई से जीवन गुजरता है। मंगल उत्तेजित स्वभाव देता है, वह व्यक्ति हर कार्य उत्तेजना में करता है और अधिकांश समय असफलता ही प्राप्त करता है।
मंगल का ज्योतिष में महत्व:------ ज्योतिष में मंगल मुकदमा ऋण, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, भूमि, भवन, मकान और माता का कारण होता है। मंगल देश प्रेम, साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता तथा खतरों से सामना करने की ताकत देता है।
मंगल की शांति के उपाय:----- भगवान शिव की स्तुति करें। मूंगे को धारण करें। तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, केशर, कस्तुरी, लाल बैल, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान।
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विवाह के दौरान इसे दोष के रूप में क्यों माना जाता है?
मंगल ग्रह 1,4,7,8 और 12 वें घर में होने से घर को प्रभावित करता है, इसे मंगल दोष कहा जाता है। मंगल ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो आग, बिजली, रसायन, हथियार, आक्रामकता, उच्च ऊर्जा, रक्त, लड़ाई , दुर्घटना आदि का प्रतिनिधि माना जाता है। चलो देखते हैं क्या इन घरों में स्थित मंगल हो रहे प्रभावो के नतीजों का प्रतिनिधि है? घर में जो भी यह स्थित है या इसकी दृष्टि से उस घर पर मंगल के प्रभाव को जीवन के पहलुओं में अनुभव करने के लिए प्रतिनिधित्व करती है|
यदि मंगल 1 घर में है तब वह 1, 4, 7 और 8 वें घर को प्रभावित करेगा। 1 घर व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए व्यक्ति बहुत संयमहीन होता है। 4 घर सदन का प्रतिनिधित्व करता है, व्यक्तियों की वाहन, घर से जुड़ी समस्याओं या जैसे आग, रसायन के कारण दुर्घटना, बिजली आदि की संभावना होती है| और 7 घर वैवाहिक जीवन, और साझेदारी में पति व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए अशांत विवाहित जीवन की संभावना होती है, पति या पत्नी बहुत गर्म स्वभाव प्रकृति के हो तो साझेदारी में नुकसान हो सकता है| 8 घर मौत का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए व्यक्ति के लिए अचानक घातक दुर्घटना की संभावना होती है| बेशक ये बहुत व्यापक दिशानिर्देश हैं| कुंडली के समग्र गुणवत्ता, ग्रहों की शक्ति, आदि ग्रहों के पहलुओं की तरह कई अन्य कोणों से अध्ययन करने की आवश्यकता होती है।
यदि मंगल 4 घर में है तब यह 4 घर में 7, 10 और 11 घर को प्रभावित करेगा | हमने 4 और 7 घर पर प्रभाव देखा है। 10 वाँ घर कैरियर, पिता, नींद आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए लगातार परिवर्तन कैरियर में गड़बड़ी विकार अनिंद्रा या यहाँ तक कि पिता की जल्दी मौत आदि की संभावना को दर्शाता है। 11 वाँ घर जीवन में मौद्रिक लाभ अर्जित करता है, इसलिए दुर्घटनाओं के कारण नुकसान, चोरी आदि की संभावना होती हैं।
यदि मंगल 7 घर में है तब यह 10 वे घर को प्रभावित करता है| 1 और 2 घर के अलावा 7 और 2 घर में होता है जो व्यक्ति को धन के बारे में विचार देता है। यह व्यक्ति के परिवार को संकेत देता है और यह भी 8 घर के साथ 7 घर में विवाहित जीवन में मृत्यु या साझेदारी में व्यापार के संकेत देता है इसलिए इस घर पर मंगल दृष्टि की वजह से परिवार के सदस्यों के बीच संयमहीन और आक्रामक व्यवहार जैसे मुद्दों को बना सकता हैं। जिससे धन की हानि की संभावना भी होती है।
8 सभा यह 11, 2 और 3 घर को प्रभावित करता है। 3 घर एक व्यक्ति की मौखिक संचार कौशल ,व्यक्ति की आवाज, व्यक्ति की उपलब्धियों, भाइयों और बहनों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मंगल से भाई बहन के बीच तनाव पैदा हो सकता है, व्यक्ति बोलने में बहुत अशिष्ट और अभिमानी हो सकता है, दूसरों से अक्सर चोट और शायद सफलता से अधिक विफलताओं से पीडित हो सकता है।
12 वें घर में मंगल ग्रह 3, 6 और 7 घर को प्रभावित करता है।
12 वाँ घर व्यक्ति के खर्च प्रकृति को संकेत करता है । इसलिए व्यक्ति से अधिक खर्च प्रकृति का हो सकता है। 6 घर रोग, चोरी नौकरों के कारण को, मातृ चाचा आदि संकेत करता है। व्यक्ति को अम्लता के कारण बीमारियों, हाइपरटेंशन, रक्त आदि रोग होने की संभावना होती है।
इस प्रकार आप पर्यवेक्षक हैं कि अगर मंगल से इन घरों में परेशानी है ,जो विवाहित जीवन को प्रभावित करते है, इसलिए कुंडली में मंगल दोष अनुपयुक्त माना जाता है।
किन स्थितियों में जीवन साथी की कुडंली में मंगल दोष होने पर मिलान किया जाता हैं?
यदि शनि 1, 4, 7, 8, 12, घर में हो।
यदि शनि 7 वें घर के साथ 3 या 10वें दृष्टि को प्रभावित कर रहा हो। यानि यदि शनि 5 वें या 10वें घर में हैं।
यदि शक्तिशाली बृहस्पति कर्क, धनु ,मीन या वरगोतम, उच्चा नवमांश, सप्तमांश आदि पहले घर में हो।
यदि 7 वें घर में बृहस्पति 5 वें या 9 वें से प्रभावित हैं 3 या 11वें घर में रखा गया हैं।
यदि राहु या केतु 1 या 7वें घर में स्थित हो ।
मंगल के 21 वीं सदी में महत्व क्या हैं?
मंगल ग्रह एक लड़ाकू ग्रह है। जो कठिन परिस्थितियों से बाहर आने में मदद करता हैं, तनाव से निपटने में मदद देता है।
यह आक्रामकता से जरूरी चुनौतियों को लेना सिखाता हैं।
यह व्यक्ति को उघोग प्रकृति देता हैं ।
मंगल ग्रह उच्च अनुशासन, अच्छा प्रशासन और कर्म निर्णय लेना सिखाता हैं, ये सब किसी भी सफल नेता के लिए आवश्यक गुण है।
मंगल ग्रह एक सर्जन ,जनरल, एयर मार्शल, एडमिरल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री , व्यवसायी आदि के लिए एक उपहार हैं।
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कैसे पहुंचे उज्जैन-----
इंदौर (55 किलोमीटर) निकटतम हवाई अड्डा है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.
इंदौर (55 किलोमीटर)में बस स्टोप है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.
इंदौर (55 किलोमीटर)में रेलवे स्टेशन है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.
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क्या करें अगर कुंडली में राहु-मंगल हों साथ-साथ?
ज्योतिष में मंगल और राहु मिल कर अंगारक योग बनाते हैं। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी का नाम दिया गया है। अगर यह योग किसी की कुंडली में होता है तो वो व्यक्ति अपनी मेहनत से नाम और पैसा कमाता है। ऐसे लोगों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं।
यह योग अच्छा और बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है। ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली में यह योग होने पर इसकी शांति करवाना चहिए नहीं तो लंबे समय तक परेशानियां बनी रहती हैं। उज्जैन में अंगारेश्वर महादेव मन्दिर में मंगल-राहु अंगारक योग की शांति होती है।
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क्या प्रभाव होता है कुंडली के बारह घरों में मंगल-राहु अंगारक योग का?
1- कुंडली के पहले घर में मंगल-राहु अंगारक योग होने से पेट के रोग और शरीर पर चोट का निशान रहता है।
ये उपाय करें- रेवडिय़ां, बताशे पानी में बहाएं।
2- कुंडली के दूसरे भाव में अंगारक योग होने से धन संबंधित उतार चढ़ाव आते हैं। ऐसे लोग धन के मामलों में जोखिम लेने से नहीं घबराते हैं।
ये उपाय करें- चांदी की अंगूठी उल्टे हाथ की लिटील फिंगर में पहनें।
3- जिन लोगों की कुंडली के तीसरे भाव में ये योग होता उनको भाइयों और मित्रों से सहयोग मिलता है और वो लोग मेहनत से पैसा, मान सम्मान कमाते हैं।
ये उपाय करें- घर में हाथी दांत रखें।
4- कुंडली के चौथे भाव में ये योग होने से माता के सुख में कमी आती है और भूमि संबंधित विवाद चलते रहते हैं।
ये उपाय करें- सोना, चांदी और तांबा तीनों को मिलाकर अंगूठी पहनें।
5- कुंडली के पांचवें भाव में अंगारक योग योग जुए, सट्टे, लॉटरी और शेयर बाजार में लाभ दिलाता है।
ये उपाय करें- रात को सिरहाने पानी का बर्तन भरकर रखें और सुबह उठते ही पेड़-पौधों में डालें।
6- जिन लोगों की कुंडली के छठे घर में मंगल-राहु एक साथ होते हैं ऐसे लोग ऋण लेकर उन्नति करते हैं। अच्छे वकील और चिकित्सक भी इसी योग के कारण बनते हैं।
ये उपाय करें- कन्याओं को दूध और चांदी का दान दें।
7- कुंडली के सातवें भाव में अंगारक योग साझेदारी के काम में फायदा दिलाता है।
ये उपाय करें- चांदी की ठोस गोली अपने पास रखें।
8- जिन लोगों की कुंडली के आठवें घर में अंगारक योग बनता है ऐसे लोगों को वसीयत में सम्पत्ति मिलती है। ऐसे लोगों को ऐक्सीडेंट का खतरा होता है।
ये उपाय करें- एक तरफ सिकी हुई मीठी रोटियां कुत्तों को डालें।
9- कुंडली के नवें घर में ये योग बनता है तो ऐसे लोग कर्मप्रधान होते है ऐसे लोगों की किस्मत ज्यादातर साथ नहीं देती। ये लोग कुछ रूढ़ीवादी होते हैं।
ये उपाय करें- मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं।
10- दसवें भाव में अंगारक योग जिन लोगों की कुंडली में होता है वो लोग रंक से राजा बन जाते हैं।
ये उपाय करें- मूंगा रत्न धारण करें।
11- कुंडली के लाभ भाव यानि ग्यारहवें भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है।
ये उपाय करें- मिट्टी के बर्तन में सिन्दूर रख कर, उसे घर में रखें।
12- बारहवें भाव में अंगारक योग होता है उन लोगों का पैसा विदेश में जमा होता है। ऐसे लोग रिश्वत में पकड़ा जाते हैं कभी कभी जेल यात्रा के योग भी बनते हैं।
ये उपाय करें- रोज सुबह थोड़ा शहद खाएं।
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जानिए अंगारेश्वर महादेव (उज्जैन) का महत्त्व एवं इतिहास ----
पुराणों में मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन में माना गया है। इसलिए मंगल ग्रह की शांति के लिए यथा संभव अंगारेश्वर महादेव में विशेष पूजा फलदायी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से मंगल ग्रह दोष की शांति होती है और विवाह योग्य युवक-युवतियों के विवाह में मांगलिक दोषों के कारण आ रही समस्याएं हल हो जाती है।
रक्तोम्बरो रक्त वपु: किरीटी,चतुर्भुज मेष गतो गदाभ्रत
धरासुत: शक्तिधरशच सूली सादा मम स्याद वरद: प्रशांत
श्री स्कांदे महापुराण एका शीतिसाहस्रया,पंचम आवंत्य खंडे अवंति क्षेत्र महात्म्ये
(अंगारक) महात्म्ये वर्णननाम स्पत्रिशोधयाय:
श्री अंगारेश्वर महादेव (उज्जैन) ही भूमि पुत्र मंगल हैं अवंतिका कि प्राचीन 84 महादेवों में स्थित 43वे महादेव श्री अंगारेश्वर महादेव जो कि सिद्ध्वट (वट्व्रक्ष) के सामने शिप्रा के उस पर स्थित हैं, जिन्हें मंगल देव (गृह) भी कहा जाता हैं| जो व्यक्ति प्रतिदिन इस महालिंग श्री अंगारेश्वर का दर्शन करेगा उनका फिर जन्म नही होगा| जो इस लिंग का पूजन मंगलवार को करेगा वह इस युग में कृतार्थ हो जाएगा, इसमे कोइ संशय नही हैं| जो मंगलवार कि चतुर्थि के दिन अंगारेश्वर का दर्शन-व्रत-पूजन करेंगे वह संतान, धन, भूमि, सम्पत्ति, यश को प्राप्त करेगा| इनके दर्शन-पूजन से वास्तुदोष, भुमिदोष का भी निवारण होता हैं| न्यायालय में विजय प्राप्त होती हैं| इस लिंग पर भात पूजन करने से मंगल दोष, भूमि दोष का भी निवारण होता
मंगलगृह उत्पत्ति की विभिन्न कथाएं:-----
स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान शंकर का अंधकासुर राक्षस से इस स्थान पर भीषण संग्राम हुआ । राक्षस को भगवान शंकर का वरदान था कि उसके शरीर से एक बून्द रक्त भी पृथ्वी पर गिरने से अनेकों राक्षस उत्पन्न होगें । राक्षस ने देवता, ऋषी, मुनी और ब्राह्मणों को सताना शुरू किया तो वे सब घबरा कर ब्रह्ममाजी के पास गए । ब्रह्ममा जी ने विष्णु जी के पास भेज दिया । ये सभी देवता, ऋषी, मुनि भगवान भोलेनाथ के पास गए । भगवान भोलेनाथ स्वयं युद्ध लड़ने आए । लड़ते-लड़ते स्वयं थक गए । भगवान के ललाट से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी और धरती के गर्भ से अंगारक स्वरूप मंगल की उत्पत्ति हुई । भगवान शंकर ने जैसे ही राक्षस पर त्रिशुल से प्रहार किया तो मंगल भगवान ने राक्षस के सारे रक्त को स्वाहा कर दिया ।
भगवान मंगल का स्वरूप अंगार के समान लाल हैं ।
भगवान मंगल का स्वरूप अष्टावक के स्वरूप में हैं ।
मंगल भगवान अग्नितत्व हैं और मंगल विष्णु स्वरूप भी हैं ।
मंगल पूर्ण ब्रह्म हैं । भगवान भोलेनाथ ने मंगल को अवंतिका में महांकाल वन में तीसरा स्थान दिया हैं ।
मंगल का उत्पत्ति स्थल अंगारेश्वर, शिप्रा नदी के किनारे कर्क रेखा पर स्थित हैं । ऐसी मान्यता हैं कि यदि इस स्थान पर छेंद किया जाए तो उसका अन्तिम सिरा अमेरिका में निकलेगा ।
अंगारक की उत्पत्ति-----
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवग्रहों में विशेष स्थान रखने वाले मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन यानि प्राचीन नगरी अवन्तिका को माना गया है। देश के सभी स्थानों से मंगल पीड़ा निवारण और अनुग्रह प्राप्त करने के लिए लोग यहां आते हैं। जनमान्यताओं के अनुसार मंगल की जन्म स्थली पर भात पूजा कराने से मंगलजन्य कष्ट से व्यक्ति को शांति मिलती है। मंगल को नवग्रहों में सेनापति के पद से शुशोभित किया गया है। जन्म कुंडली में मंगल की प्रधानता जहां मंगल दोष उत्पन्न करती है, वहीं व्यक्ति को सेना, पुलिस या पराक्रमी पदो पर शुशोभित कर यश और कीर्ति भी दिलती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार मंगल पृथ्वी से अलग हुआ एक ग्रह है। इसीलिए इसे भूमि पुत्र माना गया है। इसे विष्णु पुत्र भी कहते हैं। स्कंध पुराण के अनुसार अवन्तिका में दैत्य अंधकासुर ने भगवान शिव की तपस्या कर यह वरदान प्राप्त किया था कि उसके शरीर से जितनी भी रक्त की बूंदे गिरेंगी वहां उतने ही राक्षस पैदा हो जाएंगे। वरदान के अनुसार तपस्या के बल पर अंधकासुर ने अपार शक्ति प्राप्त कर ली और पृवी पर वह अनियंत्रित उत्पाद मचाने लगा। उसके उत्पादों से बचने के लिए व इंद्रादि देवताओं की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव को उससे लड़ना पड़ा था। लड़ते-लड़ते जब शिव थक गए तो उनकेे ललाट से पसीने की बूंदें गिरी। इससे एक भारी विस्फोट हुआ और एक बालक अंगारक की उत्पत्ति हुई। इसी बालक ने दैत्य के रक्त को भस्म कर दिया और अंधकासुर का अंत हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार जब अंगारका का जन्म हुआ , तभी से वह वक्री कार्य करने लगा। इसकी उत्पत्ति के बाद भूकंप और ज्वालामुखी जैसे उत्पाद होने लगे और पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच गई। यह देख ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अंगारक को अपने पास बुलाया और कहा तुम्हें पृथ्वी पर मंगल करने के लिए उत्पन्न किया गया है न कि अमंगल करने के लिए। इस पर मंगल ने कहा कि यदि पृथ्वी का अमंगल रोककर मंगल करना है तो आप मुझे शक्ति और सामथ्र्य दीजिए।
इस पर भगवान शिव ने अंगारक को तपस्या करने का आदेश दिया। अंकारक ने पूछा कि मैं किस स्थान पर तपस्या करूं? इस पर भगवान शिव ने कहा महाकाल के वन क्षेत्र में खरगता के संगम पर तपस्या करो। भगवान शिव के आदेश पर मंगल ने 16,000 वर्ष तक घोर तपस्या की। मंगल की तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और मंगल को ग्रहों का सेनापति बना दिया। नवग्रहों में इसे तीसरा स्थान प्रदान किया। अंगारक के पूछने पर कि मेरा पूजन कहां होगा तथा मेरा प्रभाव क्या होगा? इस पर शिव ने कहा कि मेरे लिंग पर आकर तुमने तप किया है। इसलिए यह लिंग तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। तुम मनुष्य मात्र की कुंडलियों में योग कारक रहोगे। योग की अनुकूलता के लिए जो व्यक्ति यहां (अवंन्तिका) आकर तुम्हारी पूजा करेगा, उसका मंगल होगा। तभी से लोग मंगल की पूजा के लिए उज्जैन में आते हैं और अपनी श्रद्धा अनुसार अंगारेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करके मंगल की अनुकूलता प्राप्त करते हैं।
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जिन जातकों की जन्म कुंडली के 1,4,7 और 12 वें भाव में मंगल होता है, उन्हें मांगलिक दोष होता है। इस दोष के कारण जातक को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे उनके भूमि से संबंधित कार्यो में बाधा आती है। विवाह में विलंब होता है। ऋण से मुक्ति नहीं मिलती, वास्तुदोष उत्पन्न हो सकता है आदि- आदि। इन सब दोषों के शमन के लिए अवन्तिका यानि उज्जैन में मंगल दोष निवारण के लिए विशेष पूजा कराने का विधान है। मंगल ग्रह की जन्म स्थली उज्जैन में पूजा करने से दोष स
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