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माँ बगलामुखी के इस मन्त्र से शत्रु, भूत-प्रेत, जेल, मुकदमा या हो धन की समस्या, हर बाधा होगी दूर

हर समस्या का समाधान हैं इस बीज मंत्र में

शत्रुओं पर विजय प्राति, शत्रु भय से मुक्ति तथा प्रभावशाली वाक-शक्ति की प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की साधना की जाती है।देवी बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या है। माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। बगलामुखी मंत्र सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति दिलाते है , रोगों की पुरानी समस्याओं और दुर्घटनाओं से सुरक्षा प्रदान करते है और संरक्षण देते है। ऐसा कहा जाता है की बगलामुखी मंत्र के नियमित जप से अहंकार नष्ट होता है और शत्रुओं का नाश होता है।
From-this-Mantra-of-Baglamukhi-Mantra-ghost-prison-lawsuit-or-money-problem-every-obstacle-will-be-overcome    ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि माँ बगलामुखी की इस साधना में एक विशेष संख्या में बगलामुखी मंत्र के जाप का विधान है। सामान्य शत्रु बाधा दूर करने के लिए इस मंत्र का कम से कम 10 हजार बार जाप करना करना चाहिए, लेकिन अगर कोई बहुत बड़ी शत्रु बाधा हो या शत्रुता में जीवन-मरण का प्रश्न हो तो ऐसे में कम से कम 1 लाख बार इस मंत्र का जाप करने वाला कभी भी शत्रु से हारता नहीं। ऐसे व्यक्ति को हर प्रकार के वाद-विवाद में विजय मिलती है और वह अपनी बातों को सही सिद्ध कर पाता है। कई जगहों पर मां बगलामुखी के सर्व कामना पूर्ति बीज मंत्र को अशुद्ध रूप से लिखा पाया जाता है, और अगर कोई अशुद्ध मंत्र का उच्चारण या जप करता है तो उसे कोई बड़ी हानि भी हो सकती है । मंत्र के जानकार कहते है कि वहीं यदि इस मन्त्र का सही उच्चारण किया जाय तो मां बगलामुखी का यह बीज मंत्र साधक की समस्त मनोकानाओं की पूर्ति कर सकता हैं । बगलामुखी माता के उक्त मंत्र का जप करें, जप से विधिवत माँ बगलामुखी का पूजन करें। एवं निश्चित संख्या में जप पूरा होने के बाद गाय के शुद्ध घी से 251 बार हवन करें। हवन में आम, पलाश, गुलर आदि का समिधाओं का उपयोग करें।

बगलामुखी मंत्र के लिए कुल जप संख्या--
1,25000 बार

बगलामुखी मंत्र जप का श्रेष्ठ समय या मुहूर्त---
शुक्ल पक्ष, चन्द्रावली, शुभ नक्षत्र, शुभ तिथि, रात्रि समय

इस मंत्र के शुद्ध और भावपूर्ण उच्चारण से शत्रु को शांत किया जा सकता है, मुकदमा भी जीत सकते है, आधिदैविक और आधिभौतिक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है, बंधनों से मुक्ति मिल सकती है, जेसै कोई बेकसूर व्यक्ति जेल में है या जेल जाने के आसार हैं तो इस मंत्र की साधना से 100% बच सकता हैं । भूत प्रेत और जादू टोन की बाधा से रक्षा होती है, सारे डर खत्म हो जाते है । धन संबंधित समस्या दूर हो जाती हैं । इस साधना से कोई भी अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बना सकता है ।

शुद्ध बगलामुखी बीज मंत्र---

ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय ।
जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।।

बगलामुखी मन्त्र के प्रारंभ में ह्री या ह्लीं दोनों में से किसी भी बीज का प्रयोग किया जा सकता है, ह्रीं तब लगायें जब आपका धन किसी शत्रु ने हड़प लिया है और ह्लीं का प्रयोग शत्रु को पूरी तरह से परास्त करने के लिए ही करें । इससे शत्रु को वश में करने की अद्भुत शक्ति मिलती है, लेकिन यह सब एक दो दिन में नहीं होगा बल्कि इसके लिए संकल्प लेकर कम से कम 40 दिन का विशेष अनुष्ठान करने का नियम हैं । बिना नियमों की जानकारी इस साधना को नहीं करना चाहिए । अन्यथा समस्या से छूटकारा नहीं सकेगा । माँ बगलामुखी अपने भक्त से श्रद्धा और विशवास चाहती हैं, यदि आपको पूरी श्रद्धा है और नियमों के साथ साधना करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी ।नलखेड़ा, मध्यप्रदेश स्थित विश्वप्रसिद्ध मां बगलामुखी मन्दिर, जो महाभारत कालीन एवम पांडवों द्वारा स्थापित हैं, में यह अनुष्ठान सम्पन्न करवाने हेतु पंडित दयानन्द शास्त्री जी से सम्पर्क कर सकते हैं।

ऐसे करे शत्रु को परास्त---

अगर कोई शत्रु अत्यंत शक्तिशाली हो तो ऐसी अवस्था में यदि मां बगलामुखी के इस मन्त्र को नीचे लिखे अनुसार शुद्धता पूर्वक उच्चारण कर जप किया जाए तो शत्रु से तुरंत सुरक्षा मिलती है ।

ॐ ह्लीं बगलामुखी अमुक (शत्रु का नाम लें ) दुष्टानाम वाचं मुखम पदम स्तम्भय स्तम्भय ।
जिव्हां कीलय कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ।।

इस मन्त्र में अमुक शब्द के स्थान पर शत्रु का नाम लेकर कम से कम 11 सौ बार एक दिन में जप करें, ऐसा करने से मां बगुलामुखी साधक की रक्षा करेंगी एवं साधक का शत्रु या तो किसी मुसीबत में फंस जाएगा या फिर कोई भारी गलती करके स्वयं ही फंस जाएगा ।

सम्पुट युक्त बगलामुखी मन्त्र--

सम्पुट मन्त्र की शक्ति को दोगुना करने के लिए किया जाता है, किसी भी मन्त्र की शक्ति को सम्पुट द्वारा बढ़ने के लिए साधक को पहले बिना सम्पुट से निश्चित संख्या में जप करना चाहिए, उसके बाद ही सम्पुट लगाया जा सकता है । मन्त्र के आदि में और अंत में बीज लगाने से मन्त्र सम्पुट युक्त हो जाता है ।

यह होते हैं बगलामुखी मंत्र के लाभ---
ऐसा माना जाता है की बगलामुखी मंत्र में चमत्कारी शक्तियां है।पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार माँ बगलामुखी मंत्र शत्रुओं पर विजय सुनिश्चित करने के लिए जाना जाता है। प्रशासन और प्रबंधन के लोगों को , नेताओं को , ऋण या मुकदमे की समस्याओं का सामना कर रहे लोगो को बगलामुखी मंत्र का विशेष सुझाव दिया जाता है। बगलामुखी मंत्र का उपयोग व्यापार में क्षति का सामना कर रहे व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है , जैसे वित्तीय समस्याएं , झूठी अदालत के मामले , निराधार आरोप , ऋण की समस्याएं , व्यापार में बाधाएं आदि। प्रतियोगी परीक्षाओं और वाद-विवाद आदि में भाग लेने वाले लोगों के लिए भी बगलामुखी मंत्र प्रभावी है। बगलामुखी मंत्र अनिष्ट आत्माओं और अशुभ दृष्टि से सुरक्षित रहने में सहयोग करता है।नलखेड़ा, मध्यप्रदेश स्थित विश्वप्रसिद्ध मां बगलामुखी मन्दिर, जो महाभारत कालीन एवम पांडवों द्वारा स्थापित हैं, में यह अनुष्ठान सम्पन्न करवाने हेतु पंडित दयानन्द शास्त्री जी से सम्पर्क कर सकते हैं।

"माँ बगलामुखी जयंती",इस वर्ष 14 मई 2016 को मनाई जायेगी

माँ बगलामुखी रोग शोक और शत्रु को समूल नष्ट कर देती है,जो हमारा अनिष्ट चाहते है उनका अनिष्ट करती है,प्रबल से प्रबल शत्रु भी इनके साधक और उपासको के आगे पानी भरते हैं,और कोई इनके उपासको का बाल भी बंका नही कर सकता है।। माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां स्वरुप हैं। ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है। तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है। 
           सांख़यायन तंत्र के अनुसार ‘कलौ जागर्ति पीतांबरा।’ अर्थात कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है। बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है। इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। 
          कलियुग में माँ बगलामुखी की साधना उपासना तुरंत फलदायी होती है तथा यह विजय की देवी हैं इनके भक्त कभी पराजय का मुंह नही देखते,देश के जाने माने अधिकांश राजनेता और राजनीती करने वाले व्यक्ति इनके उपासक है, जो अपनी चुनाव विजय तथा शत्रुओ के पराभव के लिए गुप्त रूप से इनके तांत्रिक अनुष्ठान हवन पूजन आदि कराते हैं।। इनके हवन में पिसी हुई शुद्ध हल्दी,मालकांगनी, काले तिल,गूगल,पीली हरताल,पीली सरसो, नीम का तेल, सरसो का तेल,बेर की लकड़ी,सूखी साबुत लाल मिर्च आदि भिन्न 2 सामग्रियों का उपयोग भिन्न 2 कामनाओ के लिए किया जाता है।। तांत्रिक पद्धति से किया गया माँ बगलामुखी का पूजन त्वरित और तीव्र परिणाम देता है जब शत्रु भारी पड रहे हो,पानी सर के ऊपर से गुज़र रहा हो ,मुक़दमे पीछे न छोड़ रहे हो,मेहनत करने के बाद भी व्यापर ठप हो रहा हो,कोई मार्ग नही सूझ रहा हो,उच्चाधिकारी परेशान कर रहे हो उत्पीड़न कर रहे हो,ऐसे विकट समय में व्यक्ति को माँ बगलामुखी(ब्रह्मास्त्र विद्या) का एक बार आश्रय लेकर इनकी शक्ति का प्रमाण और परिणाम अवश्य देखना चाहिए! 
            इस वर्ष 14 मई 2016 को माँ बगलामुखी जयंती है जोकि अपने आप में इनके पूजन हवन अनुष्ठान आदि कार्यो के लिए स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, आप भी माँ बगलामुखी की साधना पूजा हवन अर्चना करके माँ की कृपा प्राप्त करे और अपने गुप्त प्रत्यक्ष सूक्ष्म स्थूल समस्त दरिद्रत आदि शत्रुओ पर विजय प्राप्त करके माँ की शक्ति का अनुभव करे।।
आइये जाने की केसे मनाएं “बगलामुखी जयंती”..??? केसे करें माँ बगलामुखी साधना..??? क्या सावधानियां एवं उपाय और मन्त्र जाप किये जाएँ..?? 
maa-bagla-mukhi-jyanti-this-year-will-be-celebrated-on-May-14-2016-"माँ बगलामुखी जयंती",इस वर्ष 14 मई 2016 को मनाई जायेगी देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है। तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। होगा महाभय का नाश….शत्रु मिटेंगे-मिलेगी सफलता….पुत्र,पत्नी, परिवार और संपत्ति की होगी सुरक्षा…. जीवन में हर ओर मिलेगी सफलता ही सफलता….आ गयी है शत्रु बाधा नाशक…… “बगलामुखी जयंती” वैसाख माह को पवित्र और शुद्ध मास माना जाता है। इस माह में सारे शुभ काम किये जाते हैं। यह इस मास की विशेषता है कि शुक्ल पक्ष के द्वितीया को परशुराम जयंती, तृतीया को अक्षय तृतीया, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। चतुर्थी को गणेश चतुर्थी, पंचमी को आदि शंकराचार्य जयंती, षष्ठी को रामानुचार्य जयंती, सप्तमी को गंगा सप्तमी, अष्टमी को बगलामुखी जयंती, नवमी को जानकी जयंती, त्रयोदशी को नरसिंह जयंती और पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती होती है। इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए. बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है।। 
 **** जानिए कौन है बगलामुखी मां..??? 
 मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।। 
          देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है. बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।। पीताम्बरा की उपासना से मुकदमा में विजयी प्राप्त होती है। शत्रु पराजित होते हैं। रोगों का नाश होता है। साधकों को वाकसिद्धि हो जाती है। इन्हें पीले रंग का फूल, बेसन एवं घी का प्रसाद, केला, रात रानी फूल विशेष प्रिय है। पीताम्बरा का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया और नलखेडा(जिला-शाजापुर) और आसाम के कामाख्या में है। 
 ****जानिए क्या करें " माँ बगलामुखी जयंती" के दिन..??? 
 इस दिन साधक को माता बगलामुखी की निमित्त व्रत एवं उपवास करना चाहिए तथा देवी का पूजन करना चाहिए। देवी बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्त के शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों को रोक देती हैं। देवी बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है। इसका कारण है कि इनका रंग सोने के समान पीला है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। 
यह हें माँ बगलामुखी मंत्र —
- श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि। 
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये। 
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:। 
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:। 

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए…. 
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा। 

अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार….. 
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम् हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
 **** सामान्य बगलामुखी मंत्र —– 
 "ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा"। माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है।।
 **** जानिए श्री सिद्ध बगलामुखी देवी महामंत्र को—–
 "ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:" इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे —- 
1. मधु. शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है। 
2. मधु. घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है। 
3. तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वेषण होता है। 
4. हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
 1) भय नाशक मंत्र—– अगर आप किसी भी व्यक्ति वस्तु परिस्थिति से डरते है और अज्ञात डर सदा आप पर हावी रहता है तो देवी के भय नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए… 
ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन 
पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गांठें देवी को अर्पित करें… पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें… रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें… दक्षिण दिशा की और मुख रखें…. 
2) शत्रु नाशक मंत्र—- अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे हैं तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…. 
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु 
नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें…. मूर्ती या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाये …. रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय पश्चिम कि ओर मुख रखें…. 
3) जादू टोना नाशक मंत्र—- यदि आपको लगता है कि आप किसी बुरु शक्ति से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन में जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधा नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…. 
ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय 
आटे के तीन दिये बनाये व देसी घी ड़ाल कर जलाएं…. कपूर से देवी की आरती करें…. रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय दक्षिण की और मुख रखे…. 
4) प्रतियोगिता इंटरवियु में सफलता का मंत्र—– आपने कई बार इंटरवियु या प्रतियोगिताओं को जीतने की कोशिश की होगी और आप सदा पहुँच कर हार जाते हैं, आपको मेहनत के मुताबिक फल नहीं मिलता, किसी क्षेत्र में भी सफल नहीं हो पा रहे, तो देवी के साफल्य मंत्र का जाप करें…. 
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा: 
बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर चढ़ाएं… देवी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक जला कर रखें… रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय पूर्व की और मुख रखें… 
5) बच्चों की रक्षा का मंत्र—- यदि आप बच्चों की सुरक्षा को ले कर सदा चिंतित रहते हैं, बच्चों को रोगों से, दुर्घटनाओं से, ग्रह दशा से और बुरी संगत से बचाना चाहते हैं तो देवी के रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिए.. . 
ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष 
देवी माँ को मीठी रोटी का भोग लगायें… दो नारियल देवी माँ को अर्पित करें… रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें…. मंत्र जाप के समय पश्चिम की ओर मुख रखें… 
6) लम्बी आयु का मंत्र—- यदि आपकी कुंडली कहती है कि अकाल मृत्यु का योग है, या आप सदा बीमार ही रहते हों, अपनी आयु को ले कर परेशान हों तो देवी के ब्रह्म विद्या मंत्र का जाप करना चाहिए… 
ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा: 
पीले कपडे व भोजन सामग्री आता दाल चावल आदि का दान करें… मजदूरों, साधुओं,ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन खिलाये… प्रसाद पूरे परिवार में बाँटें…. रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें… 
7) बल प्रदाता मंत्र—- यदि आप बलशाली बनने के इच्छुक हो अर्थात चाहे देहिक रूप से, या सामाजिक या राजनैतिक रूप से या फिर आर्थिक रूप से बल प्राप्त करना चाहते हैं तो देवी के बल प्रदाता मंत्र का जाप करना चाहिए… 
ॐ हुं हां ह्लीं देव्यै शौर्यं प्रयच्छ 
पक्षियों को व मीन अर्थात मछलियों को भोजन देने से देवी प्रसन्न होती है… पुष्प सुगंधी हल्दी केसर चन्दन मिला पीला जल देवी को को अर्पित करना चाहिए… पीले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को जपें…. रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें… 
8) सुरक्षा कवच का मंत्र—- प्रतिदिन प्रस्तुत मंत्र का जाप करने से आपकी सब ओर रक्षा होती है, त्रिलोकी में कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता …. 
ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम 
देवी माँ को पान मिठाई फल सहित पञ्च मेवा अर्पित करें.. छोटी छोटी कन्याओं को प्रसाद व दक्षिणा दें… रुद्राक्ष की माला से 1 माला का मंत्र जप करें… मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें… ये स्तम्भन की देवी भी हैं। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है।

बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र —- 
‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ 
का जप, हल्दी की माला पर करना चाहिए। 
 **** जानिए केसे करें मां बगलामुखी पूजन…?? 
 माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें।। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। 
         आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें।। 
 ****इस अवसर पर मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार पूजन करें- 
 साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
 ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
 इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें- 
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया। देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।। 
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता। गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।। 

       इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें- 
नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्। भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।। 
 आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें- 
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं। 
पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं। 
धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं। 
दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं। 
नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। 
अब इस प्रकार प्रार्थना करें- 
जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्। 
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।। 
 अब क्षमा प्रार्थना करें- 
 आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।। 
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।। 
 अब नीचे लिखे मंत्र का एक माला जप करें- 
गायत्री मंत्र- ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात्।। 
अष्टाक्षर गायत्री मंत्र- ऊँ ह्रीं हं स: सोहं स्वाहा। हंसहंसाय विद्महे सोहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।। 
अष्टाक्षर मंत्र- ऊँ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा 
त्र्यक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं ऊँ 
नवाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठ: 
एकादशाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्ल्रीं हूं ह्लूं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्ल: वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ह्ल: ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशाय ह्लूं हूं ह्लीं ऊँ हूं फट्। 
षट्त्रिंशदक्षरी मंत्र- ऊँ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा। अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें। 
 **** जानिए माँ बगलामुखी की कथा— 
 देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।। इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं।।
        भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ।। उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।।
 **** " माँ बगलामुखी साधना" इन बातों का रखें विशेष ध्यान/सावधानियां— 
 बगलामुखी आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। आराधना खुले आकश के नीचे नहीं करनी चाहिए। आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा साधना क्रम में स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग कतई नहीं करना चाहिए। साधना डरपोक किस्म के लोगों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना काल में भयानक अवाजें या आभास हो सकते हैं, इससे धबराना नहीं चाहिए और अपनी साधना जारी रखनी चाहिए। 
          साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं, इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह करके करनी चाहिए। मंत्र का जप हल्दी की माला से करना चाहिए। जप के पश्चात् माला अपने गले में धारण करें। साधना रात्रि में 9 बजे से 12 बजे के बीच प्रारंभ करनी चाहिए। मंत्र के जप की संखया निर्धारित होनी चाहिए और रोज उसी संखया से जप करना चाहिए। यह संखया साधक को स्वयं तय करना चाहिए। साधना गुप्त रूप से होनी चाहिए। साधना काल में दीप अवश्य जलाया जाना चाहिए। जो जातक इस बगलामुखी साधना को पूर्ण कर लेता है, वह अजेय हो जाता है, उसके शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।

जानिए किन उपायों / टोटकों द्वारा पायें इस अक्षय तृतीय (सोमवार, 9 मई 2016) पर सुख-वैभव-समृद्धि

अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ है कि जिस तिथि का कभी क्षय न हो अथवा कभी नाश न हो, जो अविनाशी हो।अक्षय तृतीया का पर्व ग्रीष्म ऋतृ में पड़ता है, इसलिए इस पर्व पर ऐसी वस्तुओं का दान करना चाहिए। जो गर्मी में उपयोगी एंव राहत प्रदान करने वाली हो। 
Know-What-measures-Totkon-obtain-this-renewable-by-third-Monday-May-9th-2016-are-the-glory-and-prosperity-जानिए किन उपायों / टोटकों द्वारा पायें इस अक्षय तृतीय (सोमवार, 9 मई 2016) पर सुख-वैभव-समृद्धि           पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.--09039390067 ) के अनुसार अक्षय तृतीया पर कुंभ का पूजन व दान अक्षय फल प्रदान करता है। धर्मशास्त्र की मान्यता अनुसार यदि इस दिन नक्षत्र व योग का शुभ संयोग भी बन रहा हो तो इसके महत्व में और वृद्घि होती हैं। इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र व सौभाग्य योग के साथ आ रही आखातीज पर दिया गया कुंभ का दान भाग्योदय कारक होगा। इस दिन दान एंव उपवास करने हजार गुना फल मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन महालक्ष्मी की साधना विशेष लाभकारी एंव फलदायक सिद्ध होती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया की अधिष्ठात्री देवी माता गौरी है। उनकी साक्षी में किया गया धर्म-कर्म व दिया गया दान अक्षय हो जाता है, इसलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा गया है। आखातीज अबूझ मुहूर्त मानी गई है। अक्षय तृतीया से समस्त मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते है। हालांकि मेष राशि के सूर्य में धार्मिक कार्य आरंभ माने जाते है, लेकिन शास्त्रीय मान्यता अनुसार सूर्य की प्रबलता व शुक्ल पक्ष की उपस्थिति में मांगलिक कार्य करना अतिश्रेष्ठ हैं। 
***** क्या करें अक्षय तृतीया के दिन--???? पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.--09039390067 ) के अनुसार 
  1. इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए। 
  2. प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग, इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
  3. ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। 
  4. इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए। 
  5. आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र, आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए। 
  6. नवीन स्थान, संस्था, समाज आदि की स्थापना या शुभारम्भ भी आज ही करना चाहिए। 

**** शास्त्रों में अक्षय तृतीया का वर्णन/ जानकारी ----- 
  1.  इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
  2. इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। 
  3. नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। 
  4. श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। 
  5. हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था। 
  6. वृंदावन के श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं। 
  7. भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। 
  8. भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। 
  9. ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। हैं। अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है।
 यदि आपकी जन्म कुंडली में स्थित ग्रह आपके ऊपर अशुभ प्रभाव डाल रहे हैं तो इसके लिए उपाय भी अक्षय तृतीया से प्रारंभ किया जा सकता है। 
उपाय------ अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर तांबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर भगवान सूर्य को पूर्व की ओर मुख करके चढ़ाएं तथा इस मंत्र का जप करें- ""ऊँ भास्कराय विग्रहे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।""
       प्रत्येक दिन सात बार इस प्रक्रिया को दोहराएं। आप देखेंगे कि कुछ ही दिनों में आपका भाग्य चमक उठेगा। यदि यह उपाय सूर्योदय के एक घंटे के भीतर किया जाए तो और भी शीघ्र फल देता है।

कब और कैसे मनाएं हनुमान जयंती वर्ष 2016 में.. क्या करें उपाय या टोटकें इस हनुमान जयंती पर

 When-and-how-to-celebrate-Hanuman-Jayanti-in-2016-What-measures-or-the-Hanuman-Jayanti-कब और कैसे मनाएं हनुमान जयंती वर्ष 2016 में ?? क्या करें उपाय या टोटकें इस हनुमान जयंती पर पवनपुत्र हनुमान जी को शिवजी का ग्यारहवां अवतार माना जाता है। हिन्दू मान्यतानुसार रुद्रावतार भगवान हनुमान माता अंजनी और वानर राज केसरी के पुत्र हैं। भगवान हनुमान जी की जन्मतिथि पर कई मतभेद हैं लेकिन अधिकतर लोग चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही हनुमान जयंती के रूप में मानते हैं। हनुमान जी के जन्म का वर्णन वायु- पुराण में किया गया है।
 **** हनुमान जयंती 2016---- 
इस वर्ष हनुमान जयंती 22अप्रैल 2016 (शुक्रवार को) वैशाख पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र और तुला राशि में मनाई जाएगी। 
**** जानिए की कैसे करें हनुमान जी की पूजा --- 
हनुमान जयंती के दिन प्रात: काल सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा में ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हनुमान जी की पूजा में चन्दन, केसरी, सिन्दूर, लाल कपड़े और भोग हेतु लड्डू अथवा बूंदी रखने की परंपरा है। 
 **** इस हनुमान जयंती पर आजमाएं ये उपयोगी उपाय या टोटके- हनुमान जयंती के टोटके विशेष फल प्रदान करते है। 
  1.  हनुमानजी और मंगल देवता की विशेष पूजा का दिन होता है। यह टोटके हनुमान जयंती से आरंभ कर प्रति मंगलवार को करने से मनोकामनाओं की पूर्ती होती है। व्यक्ति जब तरक्की करता है, तो उसकी तरक्की से जल कर उसके अपने ही उसके शत्रु बन जाते हैं और उसे सहयोग देने के स्थान पर वही उसके मार्ग को अवरूद्ध करने लग जाते हैं। ऎसे शत्रुओं से निपटना अत्यधिक कठिन होता है। 
  2. हनुमान जयंती के दिन 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चंदन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढा आएं तथा वहां प्रसाद बाटें और इस मंत्र का जाप जितना कर सकते हो करें। "जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरू देव की नांई" हनुमान जयंती के बाद 7 मंगलवार इस मंत्र का लगातार जप करें। प्रयोग गोपनीय रखें। आश्चर्यजनक धन लाभ होगा। 
  3. हनुमान जयंती का विशेष टोटका बजरंगबली---- चमत्कारिक सफलता देने वाले देवता माने गए हैं। हनुमान जयंती पर उनका यह टोटका विशेष रूप से धन प्राप्त के लिए किया जाता है साथ ही यह टोटका हर प्रकार का अनिष्ट भी दूर करता है.... 
  4. कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। संकट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा।
  5. मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति की सेवा हनुमान जयंती के दिन और बाद में महीने में किसी भी एक मंगलवार को करने से आपका मानसिक तनाव हमेशा के लिए दूर हो जाएगा।। 
  6. यदि आप हनुमान जयंती पर और बाद में साल में एक बार किसी मंगलवार को अपने खून का दान करते हैं तो आप हमेशा दुर्घटनाओं से बचें रहेंगे। 
  7.  अगर धन लाभ की स्थितियां बन रही हो, किन्तु फिर भी लाभ नहीं मिल रहा हो, तो हनुमान जयंती पर गोपी चंदन की नौ डलियां लेकर केले के वृक्ष पर टांग देनी चाहिए। स्मरण रहे यह चंदन पीले धागे से ही बांधना है।
  8. एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मौली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढा आएं। धन लाभ होगा। 
  9. पीपल के वृक्ष की जड में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएं एवं पीछे मुडकर न देखें। धन लाभ होगा।

इस वर्ष 2016 में होलिका दहन कब और किस दिन किया जाये और क्यों

Holika-Dahan-in-2016-on-how-and-when-the-day-is-done-and-why-इस वर्ष 2016 में होलिका दहन कब और किस दिन किया जाये और क्यों       हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में प्रमुख त्यौहारों को कब और कैसे मनाना चाहिए उसके बारे में भारतीय धर्म ग्रंथों में निर्णय सिंधु , धर्म सिंधु, पुरुषार्थ चिंतामणि, समय प्रकाश, तिथि निर्णय और व्रत पर्व विवेक आदि में उसके नियम स्पष्ट लिखे हुए है । कुछ अल्प ज्ञानी लोग जिनको इन नियमो की जानकारी तो होती नही है वे लोग अपनी अल्प जानकारी के कारण लोगों को भ्रमित करते और त्योहारों को एक दिन की जगह दो दिन करवा देते है इस कारण लोगों की आस्था कम होती हैं ।
         उसी क्रम में इस साल 2016 में "होलिका दहन" को लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है उसमे कुछ अल्प ज्ञानी उसको मनाने की दिनांक को सवेरे और सायं काल को मनाने की परिस्थिति उत्पन्न कर रहे हैं ऐसे लोगों और धर्म प्रेमी लोगों के लिए कुछ नियम लिख रहे है । वैसे होलिका दहन के बारे में विभिन्न ग्रंथो में " फाल्गुन पूर्णिमा में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जाता है और भद्रा में होलिका दहन पूर्ण रूप से वर्जित हैं विशेष परिस्थिति में भद्रा मुख को छोड़ कर भद्रा के पुच्छ में करने का विधान है और इसके कई नियम और भी है जिनको आप को बताना जरुरी है ।

  1. --- यदि पूर्णिमा दो दिन प्रदोष को व्याप्त कर रही हो तो दूसरे दिन ही प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है । क्योंकि प्रथम दिन प्रदोष भद्रा के कारण दूषित रहता है । 
  2.  -- यदि दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा स्पर्श न करे और पहले दिन प्रदोष में भद्रा हो तब दूसरे दिन पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर या उससे ज्यादा हो और अगले दिन प्रतिपदा वृद्धिगामिनि हो तब दूसरे दिन ही प्रदोष व्यापिनी प्रतिपदा में ही होलिका दहन होता है । यहाँ प्रतिपदा का ह्रास हो तो पहले दिन भद्रा के पुच्छ या भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा में ही होलिका दहन किया जाता है ।
  3. --- दूसरे दिन प्रदोष को पूर्णिमा स्पर्श न करे और पहले दिन निशा काल से पहले भद्रा समाप्त हो जाये तो वहाँ भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन करना चाहिए । इस स्थिति में वेद व्यास जी के "भविष्योत्तर पुराण " में लिखे वाक्य को बताना जरुरी है :- 

सार्धयाम प्रयम् वा स्यात् द्वितीये दिवसे यदा । 
प्रतिपद् वर्धमाना तू तदा सा होलिका स्मृता ।। 

       इसका अर्थ यह है की यदि पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर या इससे अधिक समय को व्याप्त करे और उसके साथ प्रतिपदा वृद्धिगामिनी हो तो वहाँ होलिका दहन सायं व्यापिनी पूर्णिमा के कल में करनी चाहिए । यहाँ ध्यान रहे की कोई भी तिथि यदि सार्ध त्रियाम व्यापिनी है तो वह अनिवार्यतः सायं व्यापिनी व्यापिनी अवश्य होती है और सार्ध त्रियाम पूर्णिमा सयम व्यापिनी होने से प्रदोष व्यापिनी ही मणि जाती है अतः वहाँ होलिका दहन शास्त्र सम्मत है । यही बात "पुरुषार्थ चिंतामणि " ग्रन्थ में इस प्रकार स्पष्ट लिखी हूई है ---

 "यदा तु द्वितीय दिने सार्धयाम त्रयं पूर्णिमा प्रतिपदश्च वृद्धि: । 
तदा पूर्णिमान्त्यभागे सायाह्न काल एव दीपनीया होलिका " 

        यानि उपरोक्त लिखित विस्तृत विवेचन का सारांश यह है की क्या इस वर्ष 2016 में ( 22-23 मार्च को) होलिका दहन में भद्रा बनेगी बाधा ???
         होलिका दहन में इस बार भद्रा बाधक बन रहा है। 22 मार्च 2016 दिन मंगलवार को भद्रा कुल 11 घंटे 10 मिनट का होगा जो शाम 2/29बजे से रात 3/19 बजे तक रहेगा। फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा उत्तरा फाल्गुन नक्षत्र गण्ड योग . दिन मंगलवार होलिका दहन भद्रा के पुच्छ समय रात 03/19 बजे से 05/05बजे तक हो सकेगा। रात 03/19 बजे के बाद होली जलाई जा सकती है। अगले दिन 23 मार्च 2016 को धुलेंडी मनेगी।
       ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार प्रतिवर्ष धुलेंडी चैत्र प्रतिपदा को होती है लेकिन इस बार 9 वर्ष बाद फाल्गुन में ही धुलेंडी मनेगी। उन्होंने बताया कि भद्रा में होलिका दहन नहीं करना चाहिए। भद्रा में होली जलाने से राष्ट्र, नगर एवं ग्राम को हानि होती है। धर्म सिंधु ग्रंथ के अनुसार भद्रा मुख की रात्रि 02/29 से 03/19 बजे तक रहेगी। उस समय को त्याग करके भद्रा का पुच्छ समय 03/19 बजे से 05/05 बजे तक होलिका दहन करें या फिर प्रातः 05/05 बजे से सूर्योदय तक होलिका दहन श्रेष्ठ होगा।
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