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11 मई को शनि देव होंगे वक्री, इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव

11 मई, 2020 को शनिदेव अपनी मार्गी चाल को छोड़ कर वक्री होने जा रहे हैं। 142 दिनों तक यानि 29 सितंबर तक वे इसी अवस्था में रहेंगे तत्पश्चात वे फिर से मार्गी हो जाएंगे। शनि देव, सोमवार, 11 मई 2020 को सुबह के 9 बजकर 27 मिनट से वक्री हो जाएंगे और फिर बुधवार, 29 सितंबर 2020 को 10 बजकर 30 मिनट से फिर से मार्गी हो जाएंगे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के मतानुसार शनि की ये बदलती चाल आम जनमानस की तनाव बढ़ाने वाली साबित होगी। आमतौर पर शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्षों तक वास करते हैं। 24 जनवरी 2020 को शनि ने धनु से मकर राशि में प्रवेश किया था। 
   ज्योतिष विशेषज्ञ पण्डित दयानन्द शास्त्री जी मानते हैं की जब शनि वक्री अवस्था में आते हैं तो बहुत कष्ट  दुख देते हैं। जिन राशियों पर शनि की नज़र होती है, उनको बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी कहा जा सकता है की उनके जीवन से सुख-शांति सदा के लिए समाप्त हो जाती है। शनि न्याय के देवता हैं। जब वे वक्री होते हैं तो वे अपना अशुभ प्रभाव सबसे पहले उन राशियों पर डालते हैं जिन पर साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है। यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि अशुभ भाव में हैं तो आप पर दुखों का कहर टूटने वाला है। अगर शनि शुभ भाव में हैं तो कोई भी आपका अमंगल नहीं कर सकता।
Shani-Dev-will-be-retrograde-on-May-11-2020-know-the-effects-and-remedies-are-inauspicious-effects-of-Saturn-on-5-zodiac-signs- 11 मई को शनि देव होंगे वक्री, जानिए प्रभाव एवम उपाय- इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव    11 मई 2020 को शनि अपनी राशि मकर में वक्री हो जाएंगे। इसके बाद 13 मई को शुक्र और फिर 14 मई को बृहस्पति भी वक्री हो रहे हैं। इसके अलावा, 18 जून को बुध उलटी चाल से चलने लगेंगे। गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून के बीच ये चारों ग्रह एक ही समय पर प्रतिगामी यानी वक्र रहेंगे। ग्रहों की यह स्थिति 15 जुलाई तक कालपुरुष कुंडली में बने काल सर्प दोष के साथ परस्पर व्याप्त होती है जिसका परिणाम चिंताजनक हो सकता है।

जांने ओर समझें  प्रतिगामी शनि के परिणाम को–
प्रतिगामी शनि उन कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए शक्ति प्रदान करते है जिन्हें अतीत में अधूरा छोड़ दिया गया था। शनि भारत की कुंडली में नौवें और दसवें भाव के स्वामी हैं, अर्थात योगकारक ग्रह हैं। शनि 11 मई से 29 सितंबर 2020 तक मकर राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के नौवें भाव में है।  भारतीय पंचाग गणना अनुसार 11 मई से 2020 से शनि वक्री होगे। आगामी 143 दिनों तक वक्री रहकर गोचर में पर प्रभाव देंगे। न्याय के देवता है जातक के कर्मों के मुताबिक राजा और रंक बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ते। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि  कोरोना महामारी चलते कालाबाज़ारी जमाखोरी और मुनाफाखोरी करने की पृवत्ति में लिप्त व्यापारियों पर सत्ता और प्रशासन का शिकंजा कसेगा। 
इन 143 दिनों में उद्योग के क्षेत्र में शनै शनै सुधार आरम्भ होगा उद्योगपतियों और मजदूरों में विश्वास पैदा होने से परस्पर एक दूसरे को सहयोग करेंगे एवम उद्योग सम्बन्धी कार्य सुचारू शुरू होंगे । सम्भवतः श्रम कानूनों में भी सरकार कुछ ऐतिहासिक परिवर्तन करते हुए संगठित एवं असंगठित मज़दूरों के पक्ष में करेगी, ऐसे संकेत शनि दे रहे है। सभी वणिज व्यापार क्षेत्र एवम जनता के बीच कानून की परिपालना सख्त प्रशासनिक रवैये व अनुशासन के कारण चुस्त दुरुस्त दिखाई देगी। देश की सुरक्षा के मामलों में सतर्कता व त्वरित कठोरतम कार्यवाही देखने को मिलेगी। गरीबों एवम मेहनतकशों में असुरक्षा की भावना भी पनपेगी भयाक्रांत वातावरण कुल मिलाकर देश मे पसरेगा। सम्पूर्ण देश में शिक्षा एवम स्वास्थ्य के क्षेत्र ने नवीनतम दिशा निर्देश जारी होने की संभावना है ।
         पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस अवधि में कार्यपालिका विधायी पालिका व न्यायपालिका में जनहित के गम्भीर विषयों को लेकर भारी टकराव तथा आम जनता में व्याप्त अस्थिरता के कारण भारी जनाक्रोश होगा। सत्ताधारियो को नम्र होकर झुकना पड़ेगा। इस बीच यातायात की सभी सेवाएं, अंतरराष्ट्रीय हवाई, घरेलू हवाई सेवाएं सुचारू रूप से शुरू होगी रेल व सड़क यातायात भी धीरे धीरे यथावत शुरू होगा। आवागमन सुचारू होकर प्रत्येक क्षेत्र में बाधित रुकी थमी गतिविधियों को गति प्रदान करेगा। देश पटरी पर आने लगेगा शनि सबको राहत देगे व्याप्त भय का वातावरण समाप्त होगा। शनि का प्रतिगमन जिम्मेदारियों और काम के बोझ के साथ एक कठिन अवधि को दर्शाता है। लेकिन यह लोगों को अपने कौशल को अधिक निखारने और यथार्थवादी एवं व्यवहारिक बनने में भी मदद करेगा। कोरोनावायरस के कारण आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए नए कानून और नीतियां बनाई जा सकती हैं। न्यायिक सुधार और न्यायिक ढांचे का पुनर्गठन भी हो सकता है।

इन 5 राशियों पर है शनि का अशुभ प्रभाव---
ज्योतिषशास्त्र में शनि को न्याय का कारक ग्रह माना गया है। शनि के वक्री होने का सबसे ज्यादा असर उन राशि के जातकों पर पड़ेगा जिन राशि पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होगी। अगर आपकी कुंडली में शनि अशुभ भाव में बैठा है तब आपको इसका कष्ट देखने को मिलेगा वहीं अगर आपकी कुंडली में शनि शुभ भाव में है तो आपको इसका  अशुभ असर देखने को नहीं मिलेगा।
वर्तमान दौर में धनु, मकर और कुंभ राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। वहीं 2 अन्य राशि मिथुन और तुला पर शनि की ढैय्या चल रही है। ऐसे में शनि के वक्री होने पर कुल पांच राशियों पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा। अन्य 7 राशियों के जातकों को घबराने की अवश्यकता नहीं है।
वक्री शनि को बली बनाने के इन उपायों से होगा लाभ --

शक्तिशाली है ये मन्त्र:---
कर्मफलदाता शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि मंत्र सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती हो या फिर ढैया सबके लिए शनि-मंत्र रामबाण उपाय है। शनिवार का दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शुभ दिन होता है। शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में बहुत सारे उपाय बताए गए हैं लेकिन जो शक्ति शनि मंत्र है वह अन्य किसी उपाय में नहीं है।

 शनि स्तोत्र :---
 नमस्ते कोणसंस्थाय पिडगलाय नमोस्तुते।
 नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते।।
 नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
 नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।
 नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते।
 प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
 शनि के इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इससे बेहतर कोई स्तोत्र नहीं है। इस स्तोत्र का कम से कम 11 बार पाठ करना चाहिए।

 वैदिक शनि मंत्र :---
 " ऊँ शन्नोदेवीर भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योर भिस्त्रवन्तुन : "

 पौराणिक शनि मंत्र :---
 "ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
 छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।"

 शनि महाग्रह मन्त्र :---
ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते मुनि सुव्रततीर्थ कराय बरुणयक्ष बहुरु-पिणीयक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ह्रीं ह्रः शनिमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारण सर्व शांति च कुरू कुरू हूं फट् ।।

 इस मन्त्र का जप 33 हजार करने का विधान दिया गया है।

शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार को सूर्योदय से पहले जगकर पीपल की पूजा करने से शनिदेव खुश होते हैं। शनिवार को पीपल के पेड़ में सरसों का तेल चढ़ाने से शनि देव अति प्रसन्न होते हैं। शनिवार को संध्याकाल में इन मंत्रों का जाप करने से शनि का प्रकोप शांत होता है। साथ ही शनिदेव को इस मंत्र से पूजा करने से जो भी शनि की महादशा भी खत्म होती है।
 शनि व्रत :---
 शनिवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करे और 19, 31 या 41 शनिवार तक करे। शनिवार के दिन प्रात: स्नान आदि करके काले रंग की बनियान धारण करे और सरसो के तेल का दान करे तथा तांबे के कलश मे जल, थोडे काले तिल​, लोंग​, दुध, शक्कर, आदि डाल के पीपल अथवा खेजडी के वृक्ष के दर्शन करते हुये पश्चिम दिशा कि तरफ़ मुख रखते हुये जल प्रदान करे. तथा "ॐ प्रां प्रीं प्रों स​: शनैश्चराय नम​: " इस बिज मंत्र का यथाशक्ति जाप करे। इस दिन भोजन में उडद दाल एवं केले और तेल के पदार्थ बनाये।
     भोजन से पुर्व भोजन का कुछ भाग काले कूत्ते या भिखारी को दे उसके बाद प्रथम 7 ग्रास उपरोक्त पदार्थ ग्रहण करे बाद में अन्य पदार्थ ग्रहण करे। अंतिम शनिवार को हवन क्रिया के पश्चात यथाशक्ति तील, छ्त्री, जुता, कम्बल​, नीला-काला वस्त्र​, आदि वस्तुओ का दान निर्धन व्यक्ति को करे। व्रत के दिन जल, सभी प्रकार के फल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ या औषध सेवन करने से व्रत नष्ट नहीं होता है। व्रत के दिन एक बार भी पान खाने से, दिन के समय सोने से, स्त्री रति प्रसंग आदि से व्रत नष्ट होता है।
  • – प्रत्येक शनिवार को शनि देव का उपवास रखें।
  • – शाम को पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
  • – शनि के बीज मंत्र ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः का 108 बार जाप करें।
  • – काले या नीले रंग के वस्त्र धारण करें।
  • – गरीबों को अन्न-वस्त्र दान करें।

जाने और समझें शुक्र एवम शुक्र के कारण होने वाले रोगों को

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग आदि का कारक माना जाता है। 
समझें शुक्र एवम शुक्र के प्रभाव को--
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि शुक्र, वृषभ और तुला राशि का स्वामी होता है और मीन इसकी उच्च राशि है, जबकि कन्या इसकी नीच राशि कहलाती है। शुक्र को 27 नक्षत्रों में से भरणी, पूर्वा फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है। ग्रहों में बुध और शनि ग्रह शुक्र के मित्र ग्रह हैं और तथा सूर्य और चंद्रमा इसके शत्रु ग्रह माने जाते हैं। शुक्र का गोचर 23 दिन की अवधि का होता है अर्थात शुक्र एक राशि में क़रीब 23 दिन तक रहता है।
        ज्योतिष में धन और लक्ष्मी का कारक शुक्र ग्रह को माना गया है। सबसे ज्यादा धन देने में यही ग्रह समर्थ है। शुक्र ग्रह को शुक्राचार्य/दैत्याचार्य भी कहाँ जाता है। वृषभ और तुला राशि का स्वामी शुक्र ही होता है। तुला राशि शुक्र की मूल त्रिकोण अर्थात सबसे प्रिय राशि है। व्यय भाव अर्थात पत्रिका का 12वां स्थान इसकी सबसे प्रिय जगह है। 12वीं राशि मीन में यह उच्च राशि का होता है। इस ग्रह को भोग प्रिय ग्रह कहा गया है। इसलिये पत्रिका के बारहवें भाव जिसे खर्च, शय्या स्थान भी कहा जाता है, वहां यह ग्रह सबसे शानदार परिणाम देता है। यदि आपकी कुंडली में यह ग्रह अच्छी स्थिति में है तो आपको शानदार जीवन जीने को मिलेगा। शुक्र की नीच राशि कन्या होती है। जहा ये ग्रह अच्छे परिणाम नही देता।

शुक्र की शुभ स्थिति--

Know-and-understand-the-diseases-caused-by-Venus-जाने और समझें शुक्र एवम शुक्र के कारण होने वाले रोगों कोपत्रिका में वृषभ, तुला तथा मीन राशि का शुक्र हो तो जातक यदि दरिद्र परिवार में भी जन्मा हो तो अमीर बन जाता है। यदि किसी भी राशि का शुक्र बारहवें भाव में हो तो जातक को वैभवपूर्ण जीवन जीने कॊ मिल ही जाता है। यदि पत्रिका के 6ठे भाव मॆ स्थित होकर भी यह ग्रह जब 12वे स्थान कॊ देखता है तो अच्छे परिणाम देता है। पत्रिका के दूसरे तथा सातवें मॆ बैठा शुक्र शादी के बाद आर्थिक स्थिति को शानदार कर देता है।

पत्नी, प्रेमिका व सुंदर वाहन--

शुक्र ग्रह को प्रेमिका माना गया है। संसार मॆ समस्त तरह का प्रेम इसी ग्रह से देखा जाता है।राधा कृष्ण का दिव्य प्रेम शुक्र ग्रह से ही सम्भव है। संसार मॆ समस्त सुंदरता इस ग्रह से ही है।शानदार तथा महँगे वाहन, मकान इस ग्रह की कृपा से ही सम्भव है।

शनि का परम मित्र हैं शुक्र--

जीवन मॆ कड़ी मेहनत से ही लक्ष्मी प्राप्ति होती है चाहे वह कर्म कैसा भी हो। हां एक बात अवश्य है की आपके कर्मफल भोगना पड़ता है। शनि व शुक्र का विशेष प्रेम है शुक्र की राशि तुला मॆ शनि उच्च राशि का होता है। यानी आपने जी तोड़ परिश्रम किया है तो लक्ष्मी कृपा आपको अवश्य प्राप्त होगी।

स्वच्छता पसंद है शुक्र ग्रह को--

दीवाली के पहले लक्ष्मी पूजन के लिये हम सभी जगह सफाई करते है रंग रोगन भी करते है साफ वस्त्र पहनते है। इस तरह हम शुक्र ग्रह को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं। यदि आप स्वच्छ रहते है (निर्धन भी स्वच्छ रह सकता है) तथा कड़ी मेहनत करते है तो निश्चित रूप से आप पर लक्ष्मी मां की कृपा होगी।
भगवान विष्णु, लक्ष्मी तथा भ्रगु ऋषि में समझौता
मां लक्ष्मी हमेशा क्षीरसागर में शेषनाग में विश्राम कर रहे भगवान विष्णु की चरण सेवा करती हैं। एक बार त्रिदेव के क्रोध की परीक्षा हेतु ऋषि भ्रगु ने क्षीरसागर में शयन कर रहे भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर प्रहार किया था। जिससे रुष्ट होकर माता लक्ष्मी ने ब्राह्मणों कों दरिद्र होने का शाप दिया। बदले में भ्रगु ने भी मां लक्ष्मी को श्राप दिया। इस झगडे को भगवान विष्णु ने सुलझाया। उन्होने कहा, जहाँ ब्राह्मण अपनी पूजापाठ व आशीर्वाद देगा वहा लक्ष्मी को आना ही पड़ेगा साथ ही जो व्यक्ति ब्राह्मणों को दान देगा उसे ही लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।
     ज्योतिषीय ग्रंथों में शुक्र को भोग का कारक ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव जातक के भोग करने पर अधिक पड़ता है। उसे जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों का अधिक सामना करना पड़ता है।  जब जन्म पत्रिका में शुक्र निर्बल अथवा पीड़ित हो अथवा शुक्र के गोचर काल में जातक को गुप्त रोग, जननेन्द्रिय के पूर्ण रोग, स्त्रियों को प्रदर संतान बंध्यत्व, स्तन रोग, वक्ष ग्रन्थि, पुरुष को शीघ्रपतन, लिंग सिकुड़ना, उपदंश, मूत्र संस्थान के रोग, दवा की विपरीत प्रतिक्रिया, कैंसर, गंडमाला, अधिक सम्भोग के बाद कमजोरी अथवा चन्द्र व चतुर्थ भाव के पीड़ित होने पर हृदयाघात भी हो सकता है। 
खगोलीय दृष्टि से शुक्र ग्रह का महत्व---
खगोल विज्ञान के अनुसार, शुक्र एक चमकीला ग्रह है। अंग्रेज़ी में इसे वीनस के नाम से जाना जाता है। यह एक स्थलीय ग्रह है। शुक्र आकार तथा दूरी में पृथ्वी के निकटतम है। कई बार इसे पृथ्वी की बहन भी कहते हैं। इस ग्रह के वायु मंडल में सर्वाधिक कार्बन डाई ऑक्साइड गैस भरी हुई है। इस ग्रह से संबंधित दिलचस्प बात यह है कि शुक्र सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लिए सबसे तेज़ चमकता है। इसी कारण इसे भोर का तारा या सांझ का तारा कहा जाता है।
         इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि खगोलीय और धार्मिक दृष्टि के साथ साथ ज्योतिष में शुक्र ग्रह का महत्व कितना व्यापक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में स्थित 12 भाव उसके संपूर्ण जीवन को दर्शाते हैं और जब उन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति के जीवन में उसका असर भी दिखाई देता है।
धार्मिक दृष्टि से शुक्र ग्रह का महत्व --
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शुक्र ग्रह असुरों के गुरू हैं इसलिए इन्हें शुक्राचार्य भी कहा जाता है। भागवत पुराण में लिखा गया है कि शुक्र महर्षि भृगु ऋषि के पुत्र हैं और बचपन में इन्हें कवि या भार्गव नाम से भी जाना जाता था। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार ज्योतिष शास्त्रों में शुक्र देव के रूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है - शुक्र श्वेत वर्ण के हैं और ऊँट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार होते हैं। इनके हाथों में दण्ड, कमल, माला और धनुष-बाण भी है। शुक्र ग्रह का संबंध धन की देवी माँ लक्ष्मी जी से है, इसलिए हिन्दू धर्म के अनुयायी धन-वैभव और ऐश्वर्य की कामना के लिए शुक्रवार के दिन व्रत धारण करते हैं।

गुरु कृपा प्राप्त करे--

यदि आप धन लक्ष्मी प्राप्त करना चाहते है तो इसके लिये आपको कड़ी मेहनत, स्वच्छता के अलावा गुरु, ब्राह्मण कृपा व आशीर्वाद आवश्यक है। यदि ब्राह्मण और गुरु रुष्ट है तो आपकी लक्ष्मी अन्यत्र चली जायगी। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि शुक्र के रोग भाव के स्वामी के साथ होने पर जातक को नेत्र में चिन्ह बनता है। शुक्र की महादशा तथा शुक्र की अन्तर्दशा में जातक को विभिन्न रोग हो सकते हैं। 
  • शुक्र यदि द्वितीय भाव में है तो हृदयरोग, नेत्रकष्ट, मानसिक समस्या, चोरी के कारण धन हानि, राजप्रकोप अथवा शत्रु प्रबल होते हैं।
  • शुक्र तृतीय अथवा एकादश भाव में होने पर राजा अर्थात् उच्चाधिकारी से दण्ड, अग्निकाण्ड, भाई से कष्ट तथा कई अन्य कष्ट हो सकते हैं।
  •  शुक्र त्रिकोण अर्थात् लग्न, पंचम अथवा नवम भाव में होने पर जातक अपनी बुद्धि का सही प्रयोग नहीं कर पाता है। वह सदैव शंका व संशय में रहता है शारीरिक व मानसिक कष्ट भी प्राप्त होते हैं। इस स्थिति की सम्भावना
  • शुक्र के 4-6-8 अथवा 12वें भाव में होने पर अथवा शुक्र गोचरवश इन भावों में आने पर ही अधिक होती है।

आप यह न समझें कि यदि आपकी पत्रिका में शुक्र पापी है तो आपको केवल यही रोग होंगे, रोग होने में शुक्र किस भाव में तथा किस राशि में स्थित है, इस बात का भी बहुत असर होता है। यहां पर हम पत्रिका में शुक्र किस राशि में होने पर किस रोग की सम्भावना अधिक होती है। इसकी इस लेख द्वारा जानकारी प्राप्त करेंगे।
  1. शुक्र यदि मेष राशि में हो तो जातक को शिरोरोग, शूल, नेत्र रोग तथा सिर पर चोट का भय होता है।
  2. शुक्र के वृषभ राशि में होने पर जातक को तभी रोग होते हैं, जब शुक्र अत्यधिक पीड़ित हो। इनमें आहार नली का संक्रमण, गलसुए, टान्सिल्स, मुख व जिव्हा पर छाले जैसे रोग अधिक होते हैं।
  3. शुक्र के मिथुन राशि में होने पर जातक को गुप्त रोग, चेहरे पर मुंहासे आदि होते हैं। यदि लग्नस्थ शुक्र है तो चर्मविकार के साथ रक्त विकार की भी सम्भावना होती है।
  4. शुक्र के कर्क राशि में होने पर जातक को जलोदर, वक्ष सूजन, अपच, वमन अथवा जी मिचलाने जैसे रोग होते हैं। मंगल की दृष्टि होने पर अक्सर शरीर में जल की कमी से ग्लूकोज की बोतलें चढ़ती हैं।
  5. शुक्र के सिंह राशि में होने पर जातक को हृदयविकार, रीढ़ की हड्डी की पीड़ा व रक्त धरमनियों के रोग अथवा धमनी रक्त का थक्का जमने से हृदयाघात का योग बनता है।
  6. शुक्र के कन्या राशि में होने पर जातक को खूनी अतिसार, थोड़ा भी खाते ही शौच जाना तथा भोजन का न पचना जैसे रोग उत्पन्न होते है। 
  7. शुक्र के तुला राशि में होने पर जातक को मूत्र संस्थान के रोग, शीघ्रपतन तथा गुरु के भी पीड़ित होने पर मधुमेह जैसे रोग होते हैं।
  8. शुक्र के वृश्चिक राशि में होने पर पुरुष जातक को अण्डकोष के रोग, अल्पवीर्यता, हर्निया की शल्य क्रिया, उपदंश तथा स्त्री जातक को गर्भाशय संक्रमण योनिरोग, श्वेत प्रदर व गुदाद्वार के रोग होते हैं।
  9. शुक्र के धनु राशि में होने पर जातक को गुदा रोग अथवा शल्य क्रिया, फिशर, गुप्तेन्द्रिय रोग, स्नायु रोग, कमर की पीड़ा, दुर्घटना में कमर उतरना जैसे रोग अधिक होते हैं।
  10. शुक्र के मकर राशि में होने पर जातक को घुटनों की पीड़ा व सूजन, त्वचा रोग, कमर से निचले हिस्से में पीड़ा व स्नायु विकार के रोग होते हैं।
  11. शुक्र के कुंभ राशि में होने पर जातक को रक्तवाहिका के रोग, घुटने में पीडा अथवा सूजन, रक्तविकार स्फूर्ति में कमी, काम में मन न लगना आदि रोग होते हैं।
  12. शुक्र मीन राशि में होने पर जातक को पैरों के पंजों के रोग अधिक होते हैं। तथा गुरु के भी पीड़ित होने पर मधुमेह रोग की संभावना बढ़ जाती है।
जानिए शुक्र ग्रह के मंत्र -

शुक्र का वैदिक मंत्र---
ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।

शुक्र का तांत्रिक मंत्र---
ॐ शुं शुक्राय नमः

शुक्र का बीज मंत्र---
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः

क्या होगा यदि शुक्र स्थित हो रोग/ऋण/शत्रु (6ठे भाव में) तो --
शुक्र की इस भाव में स्थिति आपके कुल की श्रेष्ठता का द्योतक हो सकती है। आप सुशिक्षित और विवेकवान हो सकते हैं। लेकिन यहां स्थित शुक्र आपको डरपोक बना सकता है अथवा आपको स्त्रियों से अप्रियता भी मिल सकती है। गुरुजनों से भी आपका विरोध रह सकता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि इस भाव में शुक्र के शुभ फल अधिक मिलते हैं, मतान्तर से शुक्र यहाँ निष्फल होता है लेकिन अधिक मत शुक्र के शुभ फल देने के हैं। शुक्र के निष्फल होने के मत में जातक शारीरिक रूप से सुखहीन, दुराचारी, अधिक मित्र वाला, मूत्र रोग से ग्रसित, विपरीत लिंग में प्रिय, गुप्तरोगी, समस्त प्रकार के वैभव व सुख से रहित, संकीर्ण मानसिक प्रवृत्ति का, शारीरिक रूप से भी अववस्थ व अक्षम, सदैव दुःखी रहने वाला परन्तु शत्रुनाशक तथा विवाहोपरान्त भाग्योदय अवश्य होता है। दूसरे मत में अर्थात् शुक्र के शुभ फल में जातक अत्यधिक सुख प्राप्ति, धनवान, अधिक शारीरिक सुख प्रापत करने वाला तथा समस्त प्रकार के वैभव को भोगने वाला होता है।
       ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि ऐसा जातक अपने मातृपक्ष (मामा-मौसी) के लिये अशुभ होता है। इस भाव में शुक्र यदि पृथ्वी तत्व (वृषभ, कन्या व मकर) राशि में हो तो जातक का जीवनसाथी सुन्दर तो होता है परन्तु झगड़ालू प्रवृत्ति का होता है। वह परिवार में सामंजस्य बनाकर चलता है। ऐसे लोगों को )ण से बचना चाहिये क्योंकि यदि उन्होंने एक बार )ण ले लिया तो फिर इस योग के प्रभाव से वह जीवनपर्यन्त )णग्रस्त रहेंगे। एक पुत्री को वैधव्य भोगना पड़ सकता है जिसका पूर्ण खर्चा जातक को ही उठाना पड़ता है। खाने में कोई संयम नहीं रखते हैं। गुप्त रोग के साथ मूत्र संस्थान का संक्रमण भी हो सकता है।
      आपको शत्रुओं से पीडा भी मिल सकती है। हांलाकि आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर पाएंगे। आपको भाई-बहनों और मामा से सुख मिलेगा। आपके मामा के कन्या संतान अधिक हो सकती हैं। आपके अच्छे मित्रों की संख्या कम होगी जबकि खराब आदतों वाले मित्र अधिक संख्या में होंगे। आपकी प्रथम संतान पुत्र के रूप में हो सकती है। आपकी संतान अच्छी होगी और आप पुत्र-पौत्रों से युक्त होंगे। किसी भी जन्म कुंडली के छठे भाव में शुक्र  जातक की कुंडली के छठे भाव में बैठा शुक्र जातक को विपरित लिंग की ओर आकर्षित करता है। 
     लग्न का छठा भाव बुध और केतू का माना गया है जो एक दूसरे के शत्रु हैं, लेकिन शुक्र दोनों का मित्र है. इस घर में शुक्र नीच होता है। लेकिन यदि जातक विपरीत लिंगी को प्रसन्न रखता है और सारे और सुविधा उपलब्ध करवाता है तो उसके धन और पैसे में बृद्धि होगी।  ऐसा जातक अपने काम को बिच में अधूरा नहीं छोड़ता है। इस भाव के शुक्र पर हुए मेरे शोध का फल कहता है कि ऐसा जातक संसार के प्रत्येक सुख का भोग करता है लेकिन इस भोग के कारण उसे गुप्त रोग भी होता (कर्क, वृश्चिक व मीन) राशि में हो तो जातक अत्यधिक यदि पुरुष राशि (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) में हो तो जीवनसाथी सुन्दर व सुशील होता है परन्तु वह कठोर भाषा का प्रयोग अधिक करता है। 
   जब स्त्री राशि (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) में शुक्र होने पर जीवनसाथी बहुत ही कोमल शरीर का परन्तु स्वभाव बिलकुल विपरीत होता है। संतान कम होती है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार ऐसा जातक रुपया लगाकर व्यापार में पूर्णतः असफल होता है परन्तु बिना धन के व्यवसाय में सफल हो जाता है। उदाहरण के लिये जैसे किसी व्यवसाय में कोई ऐसा व्यक्ति धन लगाये जिसे व्यापार का अनुभव न हो तो ऐसे जातक को वह सलाहकार अथवा किसी अन्य रूप में सम्मिलित करे तो फिर जातक व्यापार में बहुत सफल होता है।
    ऐसा होने पर स्त्री पक्ष से आपको कम सुख मिलेगा अथवा कुछ गुप्त परेशानियां रह सकती हैं। हांलाकि विवाह के बाद यदि आपका आहार विहार नियमित और मर्यादित रहेगा तो समस्याएं नहीं होंगी। आपके खर्चे आमदनी से अधिक हो सकते हैं। हो सकता है कि आप उचित स्थान पर खर्च न करके अनुचित जगह पर खर्च करें। हो सकता है कि स्वतंत्र व्यवसाय से भी आपको बहुत लाभ न मिल पाए।
इन उपाय से होगा लाभ -
-- जातक की पत्नी को पुरुषों के जैसे कपडे नहीं पहनने चाहिए और न ही पुरुषों के जैसे बाल रखने चाहिए अन्यथा गरीबी बढती है। 
-- ऐसे जातक को उसी से विवाह करना चाहिए जिस स्त्री के भाई हों।
-- जातक स्त्री हो तो स्वयं या फिर पुरुष हो तो पत्नी अपने बालों में सोने का कि.ल लगाए। 
-- खयाल रखें कि पत्नी नंगे पैर न चले।

वृश्चिक राशि में देव गुरु वृहस्पति का प्रवेश, 5 महीनें रखें सावधानी

देवगुरु वृहस्पति लगभग 12 वर्षों बाद पुनः 05 नवंबर 2019 को प्रातः अपनी राशि धनु में प्रवेश कर रहे हैं। ये एक सदी में लगभग आठ बार धनु राशि की परिक्रमा करते हैं।  देव वृहस्पति ग्रह 5 नवंबर 2019, मंगलवार रात 12 बजकर 3 मिनट पर अपनी राशि धनु में गोचर करेगा और 29 मार्च 2020, रविवार शाम को 7 बजकर 8 मिनट तक इसी राशि में स्थित रहेगा। गुरु के धनु राशि में गोचर करने से 'हंस' योग बनता है। धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु पुनर्वसु, विशाखा एवं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों के भी स्वामी हैं। कर्क राशि इनकी उच्च और मकर राशि नीच संज्ञक कही गयी है। जिन जातकों की जन्मकुंडली में गुरु धनु राशि में होकर केन्द्र या त्रिकोण में होंगे उनके लिए 'हंस' योग श्रेष्ठतम फलदाई रहेगा।ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को सर्वाधिक शुभ एवं शीघ्रफलदाई ग्रह माना गया है। जन्मकुंडली में द्वितीय, पंचम, नवम तथा एकादश भाव के कारक होते हैं।
गुरु बृहस्पति का कुंडली पर प्रभाव--
कुंडली में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति व्यक्ति को मान सम्मान और ज्ञान प्रदान करती है तथा व्यक्ति को धन की प्राप्ति भी अच्छी मात्रा में होती है। संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी बृहस्पति की मजबूत स्थिति को देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर गुरु बृहस्पति जब इसके विपरीत अवस्था में होते हैं तो इन सभी कारकों में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है। 
 Lord-Jupiter-in-Scorpio-keep-careful-for-5-months-वृश्चिक राशि में देव गुरु वृहस्पति का प्रवेश, 5 महीनें रखें सावधानी    मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, संयम, धैर्य, तरक्की, ज्ञान, सदाचरण और वैवाहिक सुख का प्रतिनिधि ग्रह बृहस्पति 5 नवंबर को सुबह अपनी राशि धनु में प्रवेश कर रहा है। वर्ष 2019 में बृहस्पति ने कई बार मार्गी-वक्री गति करते हुए आगे-पीछे की राशियों में गोचर किया। धनु राशि में चल रहे बृहस्पति 10 अप्रैल को वक्री हुए थे। वक्री गति करते हुए ये 22 अप्रैल को पिछली राशि वृश्चिक में आ गए थे। इसके बाद 11 अगस्त को वृश्चिक राशि में ही मार्गी हो गए थे। अब मार्गी गति करते हुए 5 नवंबर को पुन: अपनी ही राशि धनु में आ रहे हैं। बृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है और मकर में नीच का। धनु और मीन इसकी स्वयं की राशि है। यह धनु और मीन राशि के स्वामी हैं और कर्क राशि में उच्च तथा मकर राशि में नीच अवस्था में माने जाते हैं। कुंडली में चंद्रमा लग्न पर बृहस्पति की दृष्टि अमृत समान मानी जाती है। यह स्थिति गजकेसरी योग बनाती हैं।

देव गुरु वृहस्पति ग्रह 5 नवंबर को कल धनु राशि में प्रवेश करेंगे जहाँ 30 मार्च 2020 तक  इसी राशि में रहने वाले हैं. वह 22 अप्रैल 2019 से वृश्चिक राशि में ही विराजमान थे. गुरु के राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी राशियों के जातकों पर पड़ेगा। किसी राशि के जातक को धन का लाभ होगा तो किसी को स्वास्थ्य की परेशानी होगी। पांच राशि वालों के जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। यह बात उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिष पण्डित दयानन्द शास्त्री जी सभी राशि परिवर्तन से होने वाले असर के बारे में बताते हुए कही
जीवन में बदलाव लाएगा--
उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषी पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि भारतीय वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत ग्रहों में बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा गया है और ग्रहों के मंत्रिमंडल में इन्हें मंत्री का पद प्राप्त है। ये नैसर्गिक रूप से सब से शुभ ग्रह माने जाते हैं। यह वृद्धि के कारक हैं इसलिए अच्छी या बुरी जो भी घटना हो उसमें इनका योग वृद्धि कारक होता है। यह हमारे जीवन में हमारे गुरु और गुरु तुल्य लोगों, हमारे परिवार के बड़े बुजुर्गों, संतान, धन तथा ज्ञान का कारक प्राप्त है। जन्म कुंडली में गुरु की स्थिति से जातक के जीवन के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें पता चलती हैं। इसलिए यह राशि परिवर्तन कई तरह से जीवन में बदलाव लाएगा।
     गुरु एक राशि में करीब एक साल रहते हैं इसलिए 12 साल के बाद फिर से अपनी राशि धनु में लौटते हैं। 5 नवंबर को गुरु सुबह  अपनी राशि धनु में लौट रहे हैं। अपनी राशि धनु में गुरु अगले साल 2020 मार्च तक रहेंगे। इस राशि में गुरु का स्वागत दो पाप ग्रह केतु और शनि करेंगे। शनि और केतु से साथ गुरु का संयोग यूं तो शुभ नहीं है फिर भी गोचर के अनुसार कुछ राशियों को इसका परिवर्तन शुभ लाभ  होगा तो किसी को होगा नुकसान. ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से जानते हैं कि अगले 5 महीने किन किन राशि वालों को सबसे अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
  1. मेष राशि- मेष राशि से नवम भाव में गुरु का गोचर रुके हुए कार्यों को पूरा करने के साथ-साथ भाग्य में वृद्धि करेगा तथा मनचाहा परिणाम देगा. इस राशि के लिए बृहस्पति नवम भाव में गोचर करेगा। इस राशि वालों को अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता। इस राशि के लिए बृहस्पति भाग्योदकारी है। नौकरी में प्रमोशन, व्यापार में लाभ मिलेगा। पारिवारिक जीवन अच्छा रहेगा। घर में नए मेहमान आएंगे। आर्थिक मामलों के लिए वक्त शुभ रहेगा। आपको कई स्रोतों से धन की प्राप्ति हो सकती है। धार्मिक कार्यों में रुचि होगी। धार्मिक यात्राओं पर जा सकते हैं। तीर्थयात्रा हो सकती है. सत्संग का लाभ मिलेगा. पार्टी व पिकनिक का कार्यक्रम बन सकता है. स्वादिष्ट भोजन का आनंद प्राप्त होगा. रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे. पठन-पाठन व लेखन के काम में मन लगेगा. धन प्राप्ति सुगम होगी. पारिवारिक सुख-शांति बनी रहेगी. जल्दबाजी न करें.
  2. वृषभ राशि- इस राशि के लिए बृहस्पति का गोचर अष्टम भाव में होगा। इससे कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। सेहत का विशेष ध्यान रखना होगा। पेट संबंधी रोग आ सकते हैं। अनचाही यात्राएं होंगी। आर्थिक पक्ष कमजोर रहेगा। धन संचय करने में परेशानी आ सकती है। उधार चुकाने का दबाव रहेगा। व्यापार में मनचाहे परिणाम प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ेगी। धार्मिक कार्यों की ओर रूझान बढ़ेगा। रोजगार में वृद्धि होगी. प्रतिद्वंद्वी सक्रिय रहेंगे. शारीरिक कष्ट की वजह से बाधा संभव है. उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे. आय में वृद्धि होगी. वरिष्ठ जनों का सहयोग तथा मार्गदर्शन प्राप्त होगा. पार्टनरों से मतभेद दूर होंगे. कुसंगति से हानि होगी. विवेक से कार्य करें।
  3. मिथुन राशि- इस राशि के लिए बृहस्पति का गोचर सप्तम स्थान में रहेगा। इस समय आपका वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा। वैवाहिक जीवन में चल रहे मतभेद दूर होंगे। आर्थिक स्थिति के लिए समय उत्तम है। पार्टनरशिप में कोई नया कार्य प्रारंभ करना चाहते हैं तो अवश्य करें लाभ होगा। प्रेम संबंधों में नयापन आएगा। नौकरी में तरक्की, बिजनेस में लाभ की स्थिति मिलेगी। समाज में सम्मान प्राप्त होगा। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे. किसी व्यक्ति के व्यवहार से मन खिन्न रहेगा. पुराना रोग उभर सकता है. दूर का समाचार मिल सकता है. चिंता तथा तनाव में वृद्धि होगी. पार्टनरों तथा मातहतों से मतभेद बढ़ सकते हैं. दूसरों से अपेक्षा न करें. आय में निश्चितता रहेगी.
  4. कर्क राशि- इस राशि के लिए बृहस्पति छठे भाव में गोचर करेगा। कर्क राशि में बृहस्पति उच्च का होता है। इसलिए इसका शुभ प्रभाव मिलने वाला है। इस राशि के जो लोग शत्रुओं से परेशान हैं, उनकी यह परेशानी शीघ्र दूर होगी। रोगों से मुक्ति मिलने का समय है। हालांकि मानसिक रूप से मजबूत रहना होगा कोई अनपेक्षित घटना हो सकती है। वैवाहिक जीवन के लिए समय ठीक है। आर्थिक स्थिति में मजबूती आएगी। थोड़े प्रयास से ही कार्य बनेंगे. सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. सामाजिक कार्य करने का अवसर मिलेगा. धन प्राप्ति सुगम होगी. संतान पक्ष से कोई खराब सूचना मिल सकती है. चिंता तथा तनाव रहेंगे. प्रतिद्वंद्वी शांत रहेंगे. विवाद से स्वाभिमान को ठेस पहुंच सकती है. जोखिम न लें.
  5. सिंह राशि- इस राशि के लिए बृहस्पति पंचम स्थान में गोचर करने जा रहा है। अपने मित्र सूर्य की राशि में मार्गी गुरु का प्रवेश इसके लिए शुभ रहेगा। इस राशि के जातकों की पारिवारिक स्थिति सुखद रहेगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। कर्ज मुक्ति की स्थिति बन रही है। संतान पक्ष की चिंता दूर होगी। संतानों के विवाह की बात बनेगी। नौकरीपेशा को सम्मान, व्यापारियों को कार्य विस्तार का सुख प्राप्त होगा। परिवार में अतिथियों का आगमन होगा. शुभ समाचार प्राप्त होंगे. आत्मविश्वास में वृद्धि होगी. कोई नया काम करने की योजना बन सकती है. व्यवसाय ठीक चलेगा. थकान महसूस होगी. आलस्य हावी रहेगा. बेचैनी रहेगी. पारिवारिक सहयोग प्राप्त होगा. मतभेद कम होंगे. जल्दबाजी न करें।
  6. कन्या राशि- इस राशि के लिए गुरु का गोचर चतुर्थ स्थान में होगा। चतुर्थ स्थान सुख स्थान होता है, इसलिए यहां पर बृहस्पति का मार्गी होना इस राशि वालों को अनेक प्रकार के सुख प्रदान करेगा। पारिवारिक जीवन में मधुरता तो आएगी ही, जो लोग वैवाहिक सुख की प्रतीक्षा कर रहे हैं उनकी इच्छा पूरी होने वाली है। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। स्वयं पर खर्च करेंगे। पर्यटन का अवसर आएगा। दोस्तों के साथ मेल मुलाकात होगी। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे. यात्रा मनोरंजक रहेगी. सुखमय जीवन व्यतीत होगा. किसी बड़ी समस्या का हल मिलेगा. प्रसन्नता रहेगी. धन प्र‍ाप्ति सुगम होगी. वरिष्ठजनों का सहयोग तथा मार्गदर्शन प्राप्त होगा. अप्रत्याशित लाभ हो सकता है. ऐश्वर्य के साधनों पर बड़ा खर्च होगा.
  7. तुला राशि- इस राशि के लिए गुरु मार्गी तृतीय स्थान में होगा। भाई-बंधुओं के साथ रिश्ते सुधरेंगे। पैतृक संपत्ति को लेकर चल रहे विवाद सुलझने की स्थिति में आ जाएंगे। अभी तक आपकी जो योजनाएं आगे नहीं बढ़ पा रही थीं, उन्हें गति मिलेगी। सम्मान और सुख प्राप्त होगा। सेहत के लिहाज से यह गोचर ठीक नहीं रहेगा। मस्तिष्क संबंधी रोग उभर सकते हैं। पेट के निचले हिस्से के रोग भी परेशान करेंगे। संतान पक्ष की चिंता रहेगी। मशीनरी से चोट लग सकती है। इस राशि के जातकों को वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है. अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे. बनते कामों में विघ्न आ सकते हैं. कर्ज लेना पड़ सकता है. स्वास्थ्य कमजोर रहेगा. काम में मन नहीं लगेगा. पार्टनरों से मतभेद हो सकता है. जोखिम व जमानत के कार्य टालें. कीमती वस्तुएं संभालकर रखें. विवाद न करें.
  8. वृश्चिक राशि- इस राशि के लिए बृहस्पति का गोचर द्वितीय स्थान में हो रहा है। धन स्थान में बृहस्पति का बैठना शुभ संकेत है। आपकी आर्थिक योजनाओं को गति मिलेगी। नया कार्य व्यवसाय प्रारंभ करना चाहते हैं या पुराने को विस्तार देना चाहते हैं तो समय अच्छा है। इस दौरान किसी बड़े प्रोजेक्ट के पूरे हो जाने से मानसिक सुख-श्ाांति प्राप्त होगी। वैवाहिक जीवन में मधुरता आएगी। प्रेम संबंध में अनुकूलता प्राप्त होगी, लेकिन पार्टनर के साथ पारदर्शी व्यवहार करना होगा। कानूनी अड़चन आ सकती है. वाणी पर नियंत्रण रखें. बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे. शारीरिक कष्ट संभव है. बेचैनी रहेगी. मनोरंजक यात्रा होगी. धनलाभ के अवसर हाथ आएंगे. लेन-देन में जल्दबाजी न करें. भाइयों से सहयोग मिलेगा. घर में सुख-शांति बनी रहेगी.
  9. धनु राशि- इसी राशि में बृहस्पति आ रहा है और यह लग्न यानी प्रथम स्थान है। यहां पर बृहस्पति के मार्गी होने से शारीरिक दिक्कतें दूर होंगी। सुख-सौभाग्य प्राप्त होगा। धन की तंगी दूर होने की स्थिति बनेगी और आय के एक से अधिक साधन प्राप्त होंगे। सेहत के लिहाज से यह गोचर अच्छा साबित होगा। बीमारियों पर हो रहे खर्च में कमी आएगी। जीवनसाथी के साथ पर्यटन का मौका आएगा। शत्रुओं को परास्त करने में कामयाब होंगे। सभी कार्य आपके मनोनुकूल होंगे। मानसिक द्वंद्व रहेगा. चोट व रोग से बचें. अपरिचितों पर विश्वास न करें. जल्दबाजी न करें. नई योजना बनेगी. नए कार्य प्रारंभ करने का मन बनेगा. व्यवसाय में अनुकूलता रहेगी. मित्रों के साथ अच्‍छा समय गुजरेगा. प्रसन्नता रहेगी. मनोरंजन के अवसर मिलेंगे. भाग्य का साथ मिलेगा.
  10. मकर राशि- इस राशि के लिए द्वादश स्थान में मार्गी बृहस्पति का आना मिलाजुला प्रभाव दिखाएगा। चूंकि द्वादश स्थान व्यय भाव होता है इसलिए खर्च में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी होगी, लेकिन ध्यान रखना होगा कि यह खर्च कहां हो रहा है। अनावश्यक कार्यों पर खर्च करने से खुद को रोकना होगा। आय के साधनों में वृद्धि होगी। कोई ऐसा कार्य प्राप्त होने के योग बन रहे हैं जो आपके धन भंडार में वृद्धि करेगा। पारिवारिक जीवन सुखद रहेगा। सेहत बेहतर रहेगी। तीर्थ दर्शन हो सकता है. सत्संग का लाभ मिलेगा. प्रभावशाली व्यक्तियों से मेलजोल बढ़ेगा. कार्य की बाधा दूर होगी. व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल रहेगा. पारिवारिक सहयोग मिलेगा. कुछ तनाव भी हो सकता है. थकान हो सकती है. परिस्थिति अनुकूल रहेगी. जल्दबाजी न करें.
  11. कुंभ राशि- कुंभ राशि के लिए एकादश भाव में मार्गी बृहस्पति के आने से स्थितियों में सुधार आएगा। अब तक जो भागदौड़ और जीवन में अनिश्चितता बनी हुई थी वह दूर हो जाएगी। अपने बारे में कोई अच्छा निर्णय ले पाएंगे। हालांकि अभी भी कोई बड़ा निवेश करने से बचना होगा। खासकर वाहन, मशीनरी के कार्यों में निवेश करें। मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा में अवश्य वृद्धि होगी। अविवाहितों को विवाह सुख की प्राप्ति होगी।प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी. कामकाज मनमाफिक चलेगा. प्रसन्नता रहेगी. प्रभावशाली व्यक्तियों का सहयोग मिलेगा. जल्दबाजी से का‍म बिगड़ सकते हैं. पारिवारिक संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी. सुख-शांति बनी रहेगी. वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें. सुख के साधनों पर खर्च होगा.
  12. मीन राशि- यह राशि चक्र की अंतिम राशि हैं। मीन राशि के लिए मार्गी बृहस्पति का गोचर दशम स्थान में होगा। कार्य स्थान में बृहस्पति का शुभ प्रभाव मिलेगा। जिनके पास नौकरी नहीं है उन्हें नौकरी मिलेगी। बिजनेस प्रारंभ करने के लिए सही वक्त है, कार्य विस्तार करें। प्रॉपर्टी और वाहन में निवेश फलेगा। सेहत में सुधार आएगा। परिवार के बुजुर्गों के सहयोग से सही निर्णय ले पाएंगे। मित्रों, भाई-बंधुओं के साथ संबंधों में सुधार आएगा। पारिवारिक समागम का अवसर आएगा।कष्ट, भय, तनाव व चिंता का वातावरण बन सकता है. जोखिम व जमानत के कार्य टालें. वाहन व मशीनरी के प्रयोग में विशेष सावधानी रखें. दूसरों के झगड़ों में न पड़ें. कीमती वस्तुएं गुम हो सकती हैं. आय में निश्चितता रहेगी. व्यवसाय ठीक चलेगा. नौकरी में सह‍कर्मियों से विवाद संभव है।
बृहस्पति ग्रह की शांति के कुछ उपाय ---
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आपकी कुंडली में बृहस्पति अनुकूल अवस्था में नहीं है तो आपको पुखराज रत्न धारण करना चाहिए।
- बृहस्पति धनु और मीन राशियों के स्वामी हैं इसलिए अगर इन दोनों राशियों के जातक पुखराज धारण करें तो उन्हें शुभ फल मिलते हैं। इसके साथ ही बृहस्पति ग्रह के अच्छे फल प्राप्त करने के लिए गुरुवार के दिन या बृहस्पति की होरा में गुरु यंत्र को अपने घर में स्थापित करना चाहिए। आप गुरु ग्रह के शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए पीपल की जड़ को गुरु की होरा या गुरु के नक्षत्रों में भी धारण कर सकते हैं।

शनि हुए मार्गी, जानिए अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होगा

हिंदू मान्यताओं में ग्रहों और नक्षत्रों की चाल का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इनके स्थान परिवर्तन का असर इंसान के जीवन पर भी पड़ता है। यह अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है। ग्रहों के न्यायधीश और व्यक्ति को कर्मों के आधार पर फल देने वाले शनि अपनी चाल बदलेंगे। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि भारतीय ज्योतिष के नौ ग्रहों में से एक प्रमुख न्यायप्रिय शनि ग्रह का वक्री होना प्रमुख घटना है। शनि एक राशि में 30 महीने, गुरू 13 महीने, राहु केतु 18 महीने और अन्य ग्रह दिनों के हिसाब से रहते हैं। शनि इस समय धनु राशि में वक्री अवस्था में गोचर है। शनि 30 अप्रैल 2019 से वक्री चल रहे है। 
    आज 18 सितंबर को शनि धनु राशि में वक्री से मार्गी हो जाएगा। शनि जो धनु राशि में उल्टा चल रहे थे 18 सितंबर से सीधा चलने लगेगा। शनि के सीधा को शुभ माना जाता है। दो ग्रह राहु- केतु को छोड़कर 18 सितंबर से सभी ग्रह मार्गी रहेंगे। शनि के मार्गी  शनिदेव का वक्री अथवा मार्गी होना पृथ्वीवासियों के प्रति बड़ी घटना के रूप में देखा जाता है। जिस राशि पर भ्रमण करने के मध्य ये वक्री रहते हैं, उन्हें काफी मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। शनि के मार्गी होने से पिछले कुछ समय से चली आ रही परेशानियां खत्म होगी। शनि के मार्गी होने से खासतौर पर मेष और सिंह राशि वालों के लिए कई सुखद समाचार मिलेगा।

Saturn-is-Margi-know-how-Margi-Saturn-will-affect-your-zodiac-in-the-next-5-months.-शनि हुए मार्गी, जानिए अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होगा
      आज दोपहर 18 सितंबर 2019 (बुधवार) से शनि भी अपनी चाल बदलकर उलटी से सीधी मार्ग यानी मार्गी चाल पर होंगे। इस तरह करीब 142 दिन बाद धनु राशि में चल रहे शानि देव अब उल्टी चाल छोड़कर सीधी चाल चलना शुरू करेंगे। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि शनिदेव 30 अप्रैल 2019 को वक्री हुए थे। अपने कुल 142 दिन के इस वक्रत्वकाल में शनि ने लगभग सभी राशियों को कार्यों में अड़चन, आर्थिक संकट, रोग, पारिवारिक जीवन में समस्याएं, दाम्पत्य सुख में कमी जैसी अनेक परेशानियों से लोगों का सामना हुआ है। लेकिन अब आज 18 सितंबर से शनि के धनु राशि में मार्गी होने से सभी राशि वालों को राहत महसूस होगी। शनि के मार्गी होने से जीवन की बाधाएं समाप्त होंगी, धन आगमन के बंद रास्ते खुलेंगे और प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की का मार्ग प्रशस्त होगा। राजनीति में उथल-पुथल  देखने को मिल सकती है। डिप्रेशन व अकारण ही घटनाएं बढ़ सकती हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार 18 सितम्बर 2019 (बुधवार) दोपहर 2 बजकर 15 मिनट पर शनि ने अपनी चाल बदल दी हैं और धनु राशि में सीधी चाल चलेंगे। इस राशि में शनि अगले पांच महीने यानी 24 जनवरी 2020 तक सीधी चाल से चलते हुए शनि मकर राशि में प्रवेश करेंगे।  
जानिए आने वाले अगले 5 महीनों में मार्गी शनि का आपकी राशि पर क्या प्रभाव होने वाला है
  1. मेष - इस राशि के जातक को शनि के स्थान परिर्वतन करने से भाग्य का सहयोग मिलेगा। चीजें बेहतर होंगी। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी और करियर भी अच्छा बनेगा। नए अवसर प्राप्त होंगे। कारोबार के सिलसिले में की गई यात्रा लाभप्रद रहेगी। शत्रु पक्ष निर्बल रहेंगे। मित्रों से सहयोग मिलेगा। रुके हुए कार्य आज पूरे हो सकते हैं, प्रयास कीजिए। आपकी कोई इच्छा आज पूरी होने वाली है भाग्य 90 प्रतिशत साथ दे रहा है। माता-पिता और गुरुओं का आशीर्वाद मिलेगा। ध्यान रखें--अष्टम ढैया से निकले शनि को मना लें, आप संकट में आ सकते हैं।
  2. वृषभ- शनि की बदली हुई चाल इस राशि के लिए शुभ है। जातकों को धन लाभ होगा। नये काम शुरू करने के लिए भी समय शुभ है। मन अस्थिर रहेगा और विचारों के भंवर में डूबते रहेंगे। लेखकों और कलाकारों के लिए दिन सृजनात्मक रहेगा। वैसे आज संभलकर काम करें, काम में बाधा आ सकती है। स्थान परिवर्तन का योग बना है। यात्रा में असुविधा हो सकती है। गुरु मंत्र का जप करें। भाग्य 53 प्रतिशत तक साथ देगा।स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। नौकरी से जुड़ी दिक्कतें खत्म होंगी। वाणी पर संयम रखें और विवाद से दूर रहें। कष्ट से छुटकारा मिलेगा।  ध्यान रखें-- परेशानियां तो आएंगी पर शनि मंत्र को जपने से आपको परेशानी कम होगी।
  3. मिथुन- इस राशि के जातक के लिए भी अगले 5 महीने फलदायी हैं। विवाह से जुड़ी  समस्याओं का हल मिलेगा। रूके हुए काम पूरे होंगे। जीवनसाथी का भरपूर साथ मिलेगा। जिन लोगों का अपने जीवनसाथी के साथ मनमुटाव था वो खत्म हो जाएगा। विशिष्ट लोगों से संपर्क बनेंगे जिनका भविष्य में लाभ भी मिल सकता है। कारोबार के लिहाज से यात्रा सुखद रहेगी। उन्नति का समाचार मिलेगा। आज जो भी कीजिए दिल खोलकर कीजिए, शत्रु निर्बल रहेंगे। सेहत अच्छी रहेगी। वैसे इस दौरान किसी से कर्ज लेने से बचें। ध्यान रखें --घरेलू समस्याओं से जूझना पड़ेगा। शनि को मनाने की तैयारी करें।
  4. कर्क- इस राशि के जातक को लंबी बीमारी से राहत मिलेगी। आय में बढोत्तरी होगी। कार्यक्षेत्र में व्यस्तता रहेगी। कारोबार में धन लाभ होगा। आज का कर्म आपके कल का भविष्य बनाएगा अतः सोच-समझकर काम करें और निर्णय लें।कानूनी और सरकारी मसलों में कोई जोखिम नहीं ले। विरोधियों से दूर रहें। अधिकारी वर्ग से लाभ होगा। ध्यान रखें -- इस अवधि में कष्टों से मुक्ति मिलेगी किन्तु शनि की भक्ति को भुलाकर भी छोड़े नहीं।
  5. सिंह- इस राशि के जातक को संतान का भरपूर साथ और प्यार मिलेगा। धन अर्जित करने में सफलता मिलेगी। अपने और अपने संतान के स्वास्थ्य का ध्यान जरूर रखें।इस आप सकारात्मक उर्जा से भरपूर रहेंगे। काम में रुचि रहेगी और जो भी करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। मित्रों और सज्जनों से सहयोग मिलेगा। विरोधी भी आज सहयोग मांगने पर मदद करेंगे। कुल मिलाकर स्थिति सामान्य और सुखद रहने वाली है। किसी प्रकार की जल्दबाजी से बचें। ध्यान रखें -- ढैया से होगी मुक्ति, अब मिलेगी कष्टक में मुक्ति।
  6. कन्या- माता का साथ मिलेगा। यह समय घर और गाड़ी लेने के लिए भी अच्छा रहने वाला है। जीवनसाथी से विवादों में ना उलझें। यात्रा में असुविधा हो सकती है। वाहन चलाते समय सावधानी बरतें। अपने सामान का ध्यान रखें, खोने का भय है। कठिन परिश्रम करना पड़ेगा।धार्मिक कार्यों में रूचि रहेगी। विदेश जाने की संभावना बन सकती है। ध्यान रखें -- सावधानी रखें।अच्छे दिन गए ।इस राशि वालो के लिए परेशानियों का आगमन होने वाला है।
  7. तुला- आपके लिए शनि का मार्गी चाल शुभ रहने वाला है। भाई-बहनों से प्रेम बढ़ेगा और शुभ समाचार मिलेंगे। कला और मनोरंजन में रुचि रहेगी। धर्म-कर्म के काम में मन लगेगा। आसपास की यात्रा लाभदायक रहेगी। कार्यक्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी मित्रों से सहयोग मिलेगा। बुजुर्गों व साधु-संतों से आशीर्वाद प्राप्त होगा।आय में वृद्धि हो सकती है। पदोन्नति का भी योग बन रहा है। आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। पैतृक संपत्ति विवाद खत्म होगा। ध्यान रखें -- इस राशि वालो। हो जाओ खुश। आ रहे हैं अच्छे दिन कर ले अपनी मन की सभी इच्छा पूरी।
  8. वृश्चिक- संपत्ति के मामले में आपको लाभ मिल सकता है। परिश्रम अधिक है। मान-सम्मान में वृद्धि का योग है। कार्यक्षेत्र में व्यस्तता बढ़ेगी। नए अवसर व नए लोगों से परिचय होगा। सक्रिय रहें, सुअवसर को हाथ से न जाने दें। पारिवारिक मामलों में धन खर्च कर सकते हैं। खराब रिश्तों में सुधार होगा और मान-सम्मान बढ़ेगा। रूके हुए काम पूरे होंगे। ध्यान रखें -- आपको शनि की अच्छी दृष्टि के लिए अभी आपको ढाई साल और इंतजार करना होगा।  
  9. धनु- आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। नई नौकरी तलाश रहे हैं तो इसमें सफलता के योग हैं और आप सकारात्मक बने रहेंगे। शादीशुदा लोग जीवनसाथी को लेकर परेशान हो सकते हैं। भविष्य की चिंता सताएगी। संघर्ष अधिक करना पड़ेगा। व्यर्थ की भागदौड़ रहेगी। मन दुविधा में रहेगा। बिजनेस बढ़ेगा और आर्थिक तौर पर मजबूत होंगे। ध्यान रखें -- इस राशि वालों को शनि की साढ़ेसाती की वजह से किसी शुभ समाचार के मिलने में देरी हो सकती है।
  10. मकर- आपके लिए विदेश जाने की पूरी संभावना बन रही है। धार्मिक यात्राओं पर भी जा सकते हैं। पैसों से जुड़ी कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जीवनसाथी से मनमुटाव की आशंका रहेगी। किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए जल्दबाजी से बचें और वाणी पर संयम रखें। ध्यान रखें -- इस राशि के जातकों के सभी कार्यों के पूरा होने में विलम्ब होगा।
  11. कुंभ- आपके लिए अगले कुछ दिन लाभ वाले हैं। इच्छापूर्ति होगी। सोचे हुए कार्य पूर्ण होंगे। किसी बड़े अधिकारी का समर्थन प्राप्त होगा। कार्यक्षेत्र में प्रभाव और जिम्मेदारी बढ़ेगी। अचानक लाभ से प्रसन्न होंगे। कोई डील करने जा रहे हैं तो अपनी बुद्धि और चतुराई से लाभदायक सौदा कर सकते हैं।नौकरी में परिवर्तन के योग के साथ मान-सम्मान बढ़ेगा। रूके हुए धन प्राप्त होंगे। प्रेम संबंधो में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।  शनिदेव इस राशि वालों पर मेहबान हैं। आपका कल्याण करेंगे।
  12. मीन- आपके लिए अगले कुछ दिन मिलेजुले रहने वाले हैं। परिश्रम और संघर्ष के बाद सफलता मिलेगी जिससे आनंदित होंगे। विरोधी साजिश कर सकते हैं, लेकिन आपका अहित नहीं कर पाएंगे। जीवनसाथी से आनंद और खुशी मिलेगी।काम को लेकर कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। वैसे समय के साथ आप इनसे निपटने में भी कामयाब होंगे। नौकरीपेशा लोग खुश रहेंगे। ध्यान रखें -- इस राशि के जातकों के काम के बीच कोई बाधा नहीं आएगी पर काम आधा अधूरा ही बनेगा।

जाने किन ज्योतिष योग वाला जातक बनता हैं डॉक्टर (चिकित्सक)

दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही ‘कौन-सा विषय चुनें’ यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय में सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है। हम सब अपनी पसंद के कार्यक्षेत्र में जाना चाहते हैं, परन्तु बहुत बार हमारी यह इच्छा अधूरी रह जाती है। ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके माध्यम से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है।
    प्रत्येक युवक / युवती की यह अभिलाषा होती है कि वह जो भी कार्य करे वह उसकी रुचि के अनुसार हो, क्योंकि रुचि के अनुसार कार्य करने में सफलता शतप्रतिशत मिलती है परन्तु कभी ऐसा भी होता है कि अपनी रुचि वाला क्षेत्र चुन कर भी असफ़लता हाथ लगती है। ऐसा विशेष कर होता है, अतः यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि कौन सा कार्य हमारे अनुकूल होगा जिससे सफलता मिले। हर व्यक्ति में अलग-अलग क्षमता होती है लेकिन स्वयं यह तय करना कठिन होता है कि हममें क्या क्षमता है इसलिये कभी कभी गलत निर्णय लेने से असफलता हाथ लगती है, परन्तु ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिसके द्वारा उचित व्यवसाय/क्षेत्र चुनने में मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
    आजकल हाईस्कूल करने के बाद एक दुविधा यह रहती है कि कौन से विषय चुने जाए जिससे डॉक्टर या इन्जीनियर का व्यवसाय चुनने मे सहायता मिल सके इसके लिये कुन्डली के ज्योतिषीय योग हमारी सहायता कर सकते हैं तो आइये इस पर चर्चा करें कि ज्योतिेष के द्वारा कैसे जाना जाय कि किस क्षेत्र मे सफलता मिलेगी। पण्डित दयानन्द शास्त्री के मतानुसार जातक की जन्म पत्रिका में लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश इन पर विभिन्न ग्रहों का प्रभाव, जातक को उचित व्यव्साय जैसे कि डॉक्टर या इन्जीनियर के क्षेत्र का चयन करने मे सहयता करता है। ग्रहों का विभिन्न राशियों में स्थित होना भी व्यव्साय का चयन करने में मदद करता है। यदि चर राशियों में अधिक ग्रह हों तो जातक को चतुराई, युक्ति निपुणता से सम्बधित व्यवसाय में सफलता मिलती है। वह ऐसा व्यव्साय करता है जिसमें निरंतर घूमना पड़ता हो। और यदि स्थिर राशि में ज्यादा ग्रह होते हैं तो एक स्थान वाला कार्य करता है जिसमे डॉक्टरी मुख्य है तथा द्विस्वभाव राशि में अधिक ग्रह हों तो जातक अध्यापन आदि कार्य करता है जिसमे एक स्थान पर भी तथा काम के सिलसिले मे आना जाना भी आवश्यक होता है।
      ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि ज्योतिष विज्ञान के आधार पर व्यक्ति की कुण्डली का विवेचन करके करियर के क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है।आज के युग में सबसे महत्वपूर्ण पेशा डाक्टर का है। डाक्टर को लोग आज भी भगवान के तुल्य ही मानते है। डाक्टरी का पेशा चुनने से पहले इन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। व्यक्ति में डाक्टरी की शिक्षा लेने की कितनी सम्भावना है ? क्या व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र सफलता प्राप्त करेगा ? चिकित्सा के क्षेत्र में व्यक्ति फिजीशियन बनेगा, सजर्न बनेगा, या किसी रोग का विशेषज्ञ बनेगा ?
      सर्जनों की कुण्डली में सूर्य व मंगल दोनों का मजबूत होना जरूरी होता है। क्योंकि सूर्य, आत्म-विश्वास, ऊर्जा का कारक है और मंगल, टेकनिक, साहस व चीड़-फाड़ से सम्बन्धित होता है। जब तक व्यक्ति आत्म-विश्वास, साहस, टेकनिक व ऊर्जा से लबरेज नहीं होगा तब-तक वह एक सफल सर्जन चिकित्सक नहीं बन पायेगा। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की किसी भी जातक की कुण्डली में शिक्षा के भाव जन्मपत्री में दूसरा व पंचम भाव शिक्षा से सम्बन्धित होता है। दूसरे भाव से प्राथमिक शिक्षा के बारे में जाना जाता है और पंचम भाव से उच्च शिक्षा का आकलन किया जाता है। किसी भी तकनीकी शिक्षा का करियर के रूप में परिवर्तन होना तभी संभव है, जब पंचम भाव व पंचमेश का सीधा सम्बन्ध दशम भाव या दशमेश से बन जाये। अतः इनका आपस में रिलेशन होना आवश्यक होता है। इससे यह पता किया जा सकता व्यक्ति जिस क्षेत्र में शिक्षा में शिक्षा प्राप्त करेगा, उसे उसी क्षेत्र में जीविका प्राप्त होगी या नहीं ?
Know-which-astrological-yoga-person-becomes-a-doctor-जाने किन ज्योतिष योग वाला जातक बनता हैं डॉक्टर (चिकित्सक)   ज्योतिष में चन्द्रमा को जड़-बूटी का एंव मन का कारक माना जाता है। यदि चन्द्रमा मजबूत नहीं होगा तो डाक्टर के द्वारा दी गई दवायें लाभ नहीं करेगी। चन्द्र पीडि़त हो या पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो डाक्टर में मरीज को तड़पते हुये देखते रहने की सहनशक्ति विद्यमान होती है। डाक्टर की कुण्डली में चन्द्रमा का सम्बन्ध त्रिक भावों में होना सामान्य योग है।सूर्य व चन्द्रमा जड़ी-बूटियों का कारक होता है और गुरू एक अच्छा सलाहकार व मार्गदर्शक होता है। इन तीनों का सम्बन्ध छठें भाव, दशम भाव व दशमेश से होने से व्यक्ति आयुर्वेदिक चिकित्सक बनता है। चिकित्सक बनने में मंगल ग्रह का विशेष रोल होता है। मंगल साहस, चीड़-फार, आपरेशन आदि चीजों का कारक होता है। मंगल अचानक होने वाली घबराहट से बचाता है और त्वरित निर्णय लेने की शक्ति देता है। चिकित्सा क्षेत्र में गुरू की भूमिका भी अहम होती है। गुरू की कृपा से ही कोई व्यक्ति किसी का इलाज करके उसे स्वस्थ्य कर सकता है। किसी भी व्यक्ति के एक सफल चिकित्सक बनने के लिए गुरू का लग्न, पंचम व दशम भाव से सम्बन्ध होना आवश्यक होता है।
     किसी भी जन्म कुंडली में पंचम भाव का दशम भाव से जितना अच्छा सम्बन्ध होगा, अजीविका के क्षेत्र में यह उतना ही अच्छा माना जायेगा। इन दोनों भावों में स्थान परिवर्तन, राशि परिवर्तन, दृष्टि सम्बन्ध या युति सम्बन्ध होना चाहिए। यदि पंचम व दशम भाव के सम्बन्ध से बनने वाला योग छठें या बारहवें भाव में बन रहा है तो चिकित्सा के क्षेत्र में जाने की प्रबल सम्भावना रहती है।
कुछ मुख्य योग निम्न हैं --
  1. यदि मेष, वृश्चिक, वृष, तुला, मकर या कुम्भ राशि कीं लग्न हो और उनमें मंगल-शनि या चंद्र-शनि या बुध-शनि की युति हो या फिर सूर्य-चंद्र के साथ अलग-अलग तीन ग्रहों की युति हो, तो जातक चिकत्सा विज्ञान की पढाई कर चिकित्सक बनने की प्रबल संभावना रहती है।
  2. चाहे कोई भी लग्न या राशि हो और केन्द्र में सूर्य-शनि या सूर्य-मंगल-शनि या चंद्र-शनि या चन्द्र-मंगल-शनि या बुध-शनि या बुध-मंगल-शनि या सूर्य-बुध-शनि या चंद्र-बुध-शनि की युति में से किसी की भी युति हो व इनमें कोई दो केन्द्रधिपत्य हो और युति कारक ग्रहों में से कोई अस्त न हो, तो जातक के डाँक्टर बनने की प्रबल संभावना होती है ।
  3. सामान्यत: यदि लग्न में मंगल स्वराशि या उच्चराशि का होकर बैठा हो तो भी जातक को सर्जरी में निपुण बनाता है । मंगल चुंकि साहस व रक्त का कारक है ओर सर्जन के लिए रक्त और साहस दोनों से संबंध होता है ।
  4. यदि कुंडली में ” कर्क राशि एवं मंगल बलवान हो तथा लग्न व दशम से मंगल तथा राहू का किसी भी रुप में संबंध हो, तो भी जातक को डॉक्टर बनाता है।
  5. केतु हमेशा डाक्टर की कुंडली में बली होता है । साथ ही सूर्य, मंगल एवं गुरू भी ताकतवर होने चाहिए। चुंकि सूर्य आत्मा का कारक है एवं गुरू बहुत बड़ा मरीज को ठीक करने वाला होता है ।
  6. वृश्चिक राशि दवाओं का प्रतिनिधित्व करती है, अत: इसका स्वामी मंगल भी ताकतवर होना चाहिए ।
  7. भाव 6 एवं उसका स्वामी का यदि भाव 10 से संबंध हो रहा हो, तो भी डॉक्टर बनाने में सहायक होता है |
  8. यदि मंगल या केतू बली होकर दशवें भाव या दशमेश से संबंध बना रहा हो तो जातक सर्जरी वाला डॉक्टर हो सकता है |
  9. मीन या मिथुन राशि गुप्त रोगियों से संबंधित दवाओं के डॉक्टर बनाने में के सहायक होता है ।
  10. यदि पंचमेश भाव 8 मेँ हो, तो भी डॉक्टर बनने की संभावना होती है ।
  11. यदि भाव 10 में चतुथेंश हो और दशमेश भाव 4 में हो, तो जातक दवाऐ जानने वाला दवाओं के माध्यम से जीवन यापन कर डॉक्टरी पेशा अपनाता है ।
  12. जिन जातकों की कुंडली में चंद्र व गुरु का बली संबध होता है, वे भी सफल चिकत्सक होते है ।
  13. यदि कुंडली का आत्म्कारक ग्रह अपने मूल त्रिकोंण का लग्न में पंचमेश से युति कर रहा हो, तो जातक प्रसिद्ध नाम वाला चिकत्सक होता है ।
  14. यदि अकारात्मक ग्रह या भाग्येश या दोनो वर्गोत्त्मी होकर कारकांश कुंडली में लग्न से केन्द्र में हो, तो रसायन से संबंधित दवाओं का व्यवसाय करने की संभावना रहती है ।
  15. यदि सूर्य और मंगल की पंचम भाव से युति हो और शनि अथवा राहू भाव 6 में हो, तो जातक सर्जन हो सकता है।
  16. यदि वृश्चिक राशि में बुध तथा तृतीय भाव पर चंद्र की दृष्टि हो तो जातक मनोचिकित्सक हो सकता है ।
  17. यदि कुंभ लग्न में स्वगृही मंगल दशम भाव से हो तथा चंद्र व सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो, तो ऐसा जातक भी सर्जन हो सकता है ।
  18. यदि समराशि का बुध हो और लग्न विषम राशि की हो तथा धनेश मार्गी हो तथा अच्छे स्थान में हो, मंगल व चंद्र भी अच्छी स्थिति में हों, तो जातक को विख्यात चिकत्साशास्त्री बना सकता है ।
  19. यदि कर्क लग्न की कुंडली के छठे भाव में गुरु व केतू बैठे हों, तो जातक होम्योपैथिक चिकित्सक बन सकता है ।
  20. सिह लग्न कुंडली के दशम भाव में लग्नेश सूर्य हो और दशमेश शुक्र नवमस्थ हो तथा योगकारक पाल शुभ स्थान में बली हो, तो डॉक्टर बनता है ।
  21. कुंडली में यदि मंगल लाभ भाव में हो तथा तृतीयेश भाव 5 में बैठे एवं शुक्र चंद्र व सूर्य भी अच्छी स्थिति में हों, तो जातक का स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ बनने की सभावना होती है
  22. कुंडली के पंचम भाव में यदि सूर्य-राहू या राहू-बुध युति हों तथा ‘दशमेश की इन पर दृष्टि हो, साथ ही मंगल, चंद्र ,गुरु भी अच्छी स्थिति में हो, तो जातक चिकित्सा क्षेत्र में ज्योतिष प्रयोग द्वारा सफल चिकित्सक बन सकता है|
  23. यदि कुंडली में लाभेश और रोगेश की युति ताभ भाव में हो तथा मंगल,चंद,सूर्य भी शुभ होकर अच्छी स्थिति में हो, तो जातक का चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ने की संभावना होती है ।
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